भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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हयात ही मेरे पर क़तर गई..........!!

गुरुवार, 7 मई 2009

कौन सी बात पर अकड़ गयी
बीच रस्ते में ही उम्र अड़ गयी
जिन्दगी लुढ़कती है गोया कि
जाने इसे कितनी चढ़ गयी !!
जब कहा कि अब मरना है
जिन्दगी मुझसे ही लड़ गयी !!
जीते-जीते ऐसा हो गया कि
जीने की आदत ही पड़ गयी !!
शान से जीना चाहता था मैं
हयात ही मेरे पर क़तर गयी
जब से पैदा हुआ हूँ गाफिल
लगता है तकलीफ बढ़ गयी !!
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3 टिप्‍पणियां:

Deepak Tiruwa ने कहा…

शान से जीना चाहता था मैं
हयात ही मेरे पर क़तर गयी
सुन्दर रचना है...

दिलीप कवठेकर ने कहा…

खूबसूरत रचना

BrijmohanShrivastava ने कहा…

जिंदगी चल नहीं रही है लुढ़क रही है मानो इतनी थकी हो कि इसे न जाने कितनी सीढियां चडनी पडी हों जीते जीते जीने की आदत पड़ गई ; जोरदार शेर (यद्यपि शेर के लिए जोरदार शब्द का प्रयोग अच्छा नहीं लगता मगर सभी कर रहे है ) जीना चाहता था (वह भी शान से )मगर जिंदगी ने मेरे पर काट दिया ;उत्तम /पैदा होने के बाद और मरने से पहले आदमी को तकलीफ तो रहती ही है /मगर बढ़ गई शब्द ने बजन बढा दिया है

 
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