भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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दोस्तों......यह सब कितना अच्छा है ना.....!!

गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

इंटरनेट पर समस्याओं पर बात करना कितना अच्छा है है ना.......!!
चाय की चुस्कियों के संग गरीबों पर गपियाना कितना अच्छा है ना.....!!
कहीं बाढ़ जाए,आग लग जाए,भूकंप हो या कहीं मारे जाएँ कई लोग
की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चलाकर उनपर चिंता जताना कितना अच्छा है ना !!
घर से बाहर रहूँ तो पुत्री के छेड़े जाने पर हिंदू-मुस्लिम का दंगा मचवा दूँ....
और किसी ब्लॉग पर एकता की बातें बतियाना कितना अच्छा है ना....!!
हर कोई अपनी-अपनी तरह से सिर्फ़ अपने ही स्वार्थों के लिए जी रहा है
और किसी और को उसकी इसी बात के लिए लतियाना कितना अच्छा है ना !!
अपनी बेटी के लिए तो हम चाहते हैं कि उसे कोई नज़र उठाकर भी ना देखे
दूसरो की बेटियों पर चौबीसों घंटे अपनी गन्दी राल टपकाना कितना अच्छा है ना !!
ये एशो-आराम....ये मज़े-मज़े का जीवन,ना सर्दी की फिक्र,ना बरसात का गम....
.सी.की ठंडी-ठंडी हवा में गाँव की धुप पर चिंता जताना कितना अच्छा है ना....!!
दोस्तों "गाफिल"भी आपसे अलहदा नहीं,वो भी यही सब कर रहा है मज़ा-मज़ा-सा
टैक्स चोरी पर लाड लड़ाना,और फिर सरकार को गरियाना कितना अच्छा है ना !!
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3 टिप्‍पणियां:

BrijmohanShrivastava ने कहा…

वाकई यही हो रहा है और यही सब कर रहे हैं /यही तो लेखन की कुशलता है की ए सी रूम में बैठ कर (चाय की क्यों ?बियर की क्यों नहीं ?) चुस्कियां लेता हुआ लेखक ऐसी सटीक लिखता है जैसे तपती धूप में किसी झोंपड़ पट्टी में बैठ कर लिखा गया हो /सही है अपनी पीठ पीठ दूसरे की पीठ दीवार / बहुत सुंदर लिखा है आपने

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

sahi baat hai internet pe bbate karna har kisee ko psand hai...

not needed ने कहा…

कथनी और करनी में फरक मिट जाये तो सभी गांधी न बन जाएँ ! इस खाई को कोन कितना कम कर पाता है, यही चरित्र की कसोटी है!

 
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