भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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Sunday, September 7, 2008

मैं भूत बोल रहा हूँ !!

कई दिनों से बिहार के ऊपर उड़ रहा हूँ !बहुत सारे लोगों की तरह मैं भी यही सोच रहा हूँ कि क्या किया जाए , मगर जैसे कि कुछ भी करने का कोई बहाना नहीं होता,वैसे ही कुछ न करने के सौ बहाने होते हैं !सो जैसे धरती के लोग जैसे अपने घर के दडबों में कैद हैं,वैसे ही मैं भी बेशक खुले आसमान में तैर रहा हूँ ,मगर हूँ एक तरह से दड्बो में ही ....!चारों और जो मंज़र देख रहा हूँ ,मेरी रूह कांप रही है .....पानी ऐसा सैलाब ....तिनकों की तरह बहते लोग ,पशु और अन्य वस्तुएं ......बेबसी,लाचारी,वीभत्सता,आंसू,कातारता,पीडा,यंत्रणा.....और ना जाने क्या-क्या ...! उपरवाला दुनिया बनाकर क्या यही सब देखता रहता है?सीधे शब्दों में बात कहानी मुश्किल हो रही है,थोड़ा बदलकर कहता हूँ ......
ये जो मंज़र-ऐ विकराल है .....क्या है ............. हर तरफ़ हश्र है,काल है .......क्या है ?
पानी-ही-पानी है उफ़ ...हर जगह ,.................. कोशी क्यूँ बेकरार है ......क्या है ?
डबडबाई है आँख हर इंसान की ,................. बह रही है ये बयार है ...क्या है?
लीलती जाती है नदी सब कुछ को ,.............. गुस्सा क्यूँ इस कदर है .....क्या है ?
.....मुझको अपने ही रस्ते चलने दो ,........... ख्वाहिशें-आदम तो दयार है ..क्या है ?
मैं तो सबको ही भरती चलती हूँ ...,............. तुम बनाते हो मुझपे बाँध ...क्या है ?
मुझको हंसने दो.. खिलखिलाने दो ,................ मुझको छेडो ना इस कदर.. क्या है ?
कोई आदम को जा कर समझाओ,.................... धरती का चाक गरेबां है क्या है ?
हर तरफ़ खौफ से बेबस आँखें हैं,....................... मौत का इंतज़ार है .....क्या है ?
थाम लो ना इन सबको बाहों में ............कर रहे जो ये फरियाद है ...क्या है ?
कोई आदम का मुकाम समझाओ .......हर कोई क्यूँ बेकरार है ....... क्या है ?
जो भी बन पड़ता है इनको दे आओ .....वरना खुदाई भी शर्मसार है ...क्या है ?
किसने छीना है इनका चैनो-सुकून .....वो नेता है, अफसरान है .....क्या है ?
इनके हिस्से का कुछ भी मत खा जाना ,दोजख भी जाओगे तो पूछेंगे क्या है ?
नक्शे पे अब कुछ नज़र नही आता ....बाढ़ है या कि बिहार है .....क्या है ?
साल- दर-साल ये घटना होती है ,होती चली आ रही है ,हजारों लोग हर साल असमय काल-कलवित हो रहे है ,मगर ऐसी लोमहर्षक घटनाओं में भी तो अनेकानेक लोगों की तो चांदी ही कट रही है ! लोग ज़रूरत का सामान भी कई गुना ज्यादा महँगा बेच रहे हैं !नाव वालों का भाव शेयरों की तरह चढा हुआ है ! बहुत सारे राहतकर्मी ग़लत कार्यों में लगे हुए हैं !राहतराशि और सामान बाँटने वाले बहुत सारे लोग यह सब कुछ बीच में ही हजम कर जा रहे है !यह तो गनीमत है कि ऐसे मौकों पर अधिसंख्य लोगों में मानवता कायम रहती है ,सो बहुत काम सुचारू रूप से हो जाता है ,वरना तो पीड़ित लोगों का भगवान् ही मालिक होता !!मैं दंग हूँ कि ऐसे आपातकाल में भी कुछ लोग ऐसे निपट स्वार्थी कैसे हो सकते है ,जो शर्म त्याग कर इन दिनों भी गंदे और नीच कर्मों में ही रत रहे !!हे भगवान् इन्हे माफ़ कभी मत करना !!

"सेल !!" (लघुकथा) __भूतनाथ



"सेल !!" (लघुकथा) __भूतनाथ

"ऐ आशा,चल न,चिंकारा मॉल में सेल लगी हुई है,सभी चीजों पर फिफ्टी परसेंट की छूट है !"लता ने अपनी सहेली से कहा ।
"हाँ-हाँ,मैं भी यही सोच रही थी,अभी मैं तुझे फोन करने ही वाली थी,अच्छा हुआ कि तू ख़ुद ही आ गई ,अरे ये एन नाइंटी फाइव कब लिया तूने ?ये तो थ्री जी है ना ?कितना क्यूट है ?कितने का पड़ा ?"
"कितने का तो पता नहीं,कल ये बॉम्बे से आयें है वही लाये है,अपने लिए भी उन्होंने एप्पल ख़रीदा है,वो तो इससे भी ज्यादा स्मार्ट है,अच्छा-अच्छा चल ना देर हो रही है,फिर बच्चों के स्कूल से वापस आने का समय हो जायेगा,चल जल्दी कर !"
" हाँ-हाँ,चल न मैं तो तैयार ही बैठी हूँ,गाड़ी लायी है ना कि मैं अपनी निकालूं ?"
"लायी हूँ ना,तू क्यूँ चिंता करती है मेरी जान,गाड़ी भी है और मनी से भरा ये बैग भी !"
"बाप-रे-बाप !अरे,सारा का सारा मॉल ही खरीदे कि क्या ?"
"नहीं रे,कई दिन से मार्केटिंग में निकली नहीं हूँ ना,बोर हो गई थी,आज निकल रही हूँ,न जाने क्या-क्या पसंद आ जाए !!"
"लेकिन ये तो बता कि हम लोग आख़िर खरीदेंगे क्या? हमारी आलमारियाँ तो पहले ही सौओं कपडों और पचासों जूतियों से भरी पड़ी हैं "हँसते हुए आशा बोली ।
"तो पहले आलमारी खरीद लेते हैं यार!टेंशन काई कू लेने का !!"लता ने ठहाका लगाया ।
अगले कुछ मिनटों में दोनों मुंहलगी सखियाँ चिंकारा मॉल के भीतर थीं.फूल ऐ.सी.मॉल में जैसे लोग भेड़-बकरियों की तरह चले आ रहे थे,ये सारे वे लोग थे जिनको वास्तव में किसी भी चीज़ की जरुरत ही नहीं थी,वस्तुतः खाने-पीने की चीजों के सिवा अगर वे दस साल भी कोई अन्य चीज़ न खरीदते तो उनका कोई काम हर्ज़ ना होता,मगर सेल थी कि लगी हुई थी और विज्ञापन ऐसे कि सारी चीजें गोया फ्री ही मिल रही हों !!
लोग यों टूट पड़ रहे थे कि आज ही सब-कुछ न खरीद लिया तो कल प्रलय आ जायेगी और अपने मन की इच्छा पूरी किए बगैर वे अल्लाह को प्यारे हो जायेंगे !! मॉल के तमाम कैश-काउंटरों पर ऐसी ही मतवाली व बावली भीड़ एक-दूसरे के ऊपर समाये जा रही थी !!
दोनों सखियाँ जब दो घंटे बाद खरीदारी करके बाहर निकलीं,तो उनके माथे पर इस जद्दोजहद से उपजा पसीना बह रहा था,वे बेहाल थीं और लोगों को कोस रही थीं !मॉल की सीढियों से नीचे उतरते ही एक कातर व मुलायम आवाज़ ने उन्हें टोका ,
"एक रूपया दे ना माईजी !!"
इस वक्त असल में वो अब घर जाने या किसी रेस्टोरेंट में जाने के सिवा कुछ सोचना भी नहीं चाहती थीं मगर वह आवाज़ इतनी भींगी हुई थी कि उनके कान ना चाहते हुए भी उस आवाज़ की और मुड गए ।
यह एक छोटी-सी बच्ची थी,जो अपनी गोद में एक मरियल-से बच्चे को चिमटाये हुए थी ।
"मेरे तो हाथ खाली नहीं हैं,ऐ लता तू अपने पास से इसे कुछ दे-दे ना !"
लता ने अपने पर्स में हाथ डाला ,उसमें उसे पाँच और दो के सिक्के हाथ लगे ,एक का एक भी सिक्का न था ,लड़की बड़ी आशा से उन्हे ताक़ रही थी ।
"छुट्टे नहीं हैं,बाद में ले लेना !!"और दोनों सखियाँ गाड़ी में बैठ गयीं,गाड़ी ने तुंरत रफ़्तार पकड़ ली,धूल उडाती जा रही उस चमकती व महँगी गाड़ी को वह चोटी-सी बच्ची अवाक-सी देखे जा रही थी ,शायद सोच रही थी कि यह "बाद "कब आएगा !!



ये जो हो रहा है !!

जो हो रहा है उसे समझ,ख़ुद को समझाने दे ,
चुप मत बैठ आदम ,दिल को तिलमिलाने दे!!
अपने या घर-दूकान के भीतर घुसा मत रहा,
बाहर निकल,ताज़ी हवा को भी पास आने दे!!
कोई भी किसी को जीने क्यूँ नहीं दे रहा ,
ख़ुद को कभी उनसे ये बात कर के आने दे !!
तेरे कूच करने से ही बदल पाएगी ये फिजां ,
तू अपनी मुहब्बत से जरा इसे बदलवाने दे !!
जन्नत एक तिलिस्म नहीं है मेरे भाई,सच,
मेरे साथ चल,प्रेम के गली में हो के आने दे !!
तू अपनी सोच में अच्छा हो के बैठा मत रह,
तू अपने अच्छे कर्मों को यां खिलखिलाने दे !!
तेरे रहते ही कुछ अच्छा हो,तो हो जाए"गाफिल",
वरना इस बेमुरौवत जिंदगी का क्या,जाने दे !!

आ ना कुछ करके दिखाते हैं !!

आ चल तुझे इक खेल खिलाते हैं,चल ज़रा चाँद को ही छु आते हैं !!
आ ना खुशियाँ बटोर कर लाते हैं,कुछ देर जरा बच्चों को खिलाते हैं !!
हर रोज़ अच्छाई की कसम खाते हैं,रोज़ कसम तोड़कर सो जाते हैं!!
खुदा को तो जरा भी नहीं जानते हैं,और मस्जिद में नमाज़ पढ़ आते हैं !!
असल में कुछ दिखाई तो देता नहीं,लोग सपनों की महफ़िल सजाते हैं!!
ख़ुद तो खुदा से किनाराकशी करते हैं,बच्चों को उसकी कसम खिलाते हैं!!
इक दिन मुझे उदास देख बेटी बोली,पापा चलो ना पार्क घूम आते हैं!!
जिनके भीतर कुछ नहीं होता वे अक्सर,अपने कपड़े...जूते दिखाते हैं!!
बाहर तो चलाते हैं वो गोलियाँ और,घर में खुदा की फोटुयें सजाते हैं !!
बहुत ज्यादा छोटी रखी हुई है हमने,आओ प्यार की चादर और फैलाते हैं !!
इबादत थोडी ना करते हैं हम "गाफिल",वो तो बस अपना दिल बहलाते हैं !! ...आगे पढ़ें!

Thursday, September 18, 2008

"गाफिल"जाने भी दो ना !!

दुनिया बदल रही है,इसे देखने दो ना ,क्या अच्छा है बुरा क्या समझने दो ना !!
रात को आराम से गुजर जाने भी दो,समय से पहले तो रौशनी को पकडो ना !!
खुदा के पास पहुँचने के हैं रस्ते कई ,सबको अपने ही रास्ते पे चलने दो ना !!
तलवारें चलाने से भला खुदा मिला है?हर किसी को उसकी खुदाई बख्शो ना !!
जिसके नाम पे हो जाते हो लामबंद ,कभी उसकी रज़ा को भी तो समझो ना !!
खिंच जाती हैं बात-बात पर तलवारें,अब इतना भी किसी बात को पकडो ना !!
अल्ला को तो खुला-खुला ही रहने दो,अपनी आदतों में तुम उसे तो जकडो ना!!
तेरे होने के भरम में जीता हूँ यारब ,कहाँ हो कभी घर आकर तो मिलो ना !!
तेरे नाम पे ठा-ठा करता है आदम ,यार इसके दिमाग को बदल डालो ना !!
इत्ती-सी बात को दिल में लिए बैठे हो,अब छोड़ो भी "गाफिल"जाने दो ना !!

झारखण्ड की जनता के नाम !!

Sunday, September 21, 2008

भाइयों और बहनों,
आप सबों को साधू भौरा का प्रेम भरा नमस्कार,
दोस्तों देखता हूँ कि इन दिनों स्थानीय अखबारों में बार-बार मेरे किसी पंजैय पोदरी से से सम्बन्ध होने की बातें उछाली जा रही हैं,बिना किसी अकाट्य सबूत के किसी का चीरहरण करना सरासर ग़लत तो है ही,हमारी मानहानि भी है,इसलिए इसे अविलम्ब बंद किया जाए!दोस्तों मैं वर्षों से एक राजनेता हूँ,और जनता की सेवा में मैंने आज तक कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है!बेशक मैंने अपने मुर्ख्अमन्त्रित्वकाल में ख़ुद भी बहुत मनमानियां कीं ,और औरों को भी करने दी!!लोकतंत्र का तकाजा था,सो कभी किसी को कुछ भी करने से नहीं रोका,आपने इसे मेरी कमजोरी समझा,मगर मैं चुप रहा,आपने मेरे सन्दर्भ में भ्रष्टाचार की उलटी-सीधी खबरें छापी मगर मैंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की,मगर आज मैं पहली बार अपना मुंह खोल रहा हूँ,क्योंकि मैं समझता हूँ कि अब पानी सर से गुजर रहा है,और बार-बार मेरी शान में हिमाकत की जा रही है !!
सार्वजनिक जीवन में ऐसा कई बार होता है कि अत्यन्त जरूरी कार्यों के सिलसिले में आपको बहुत सारे लोगों से मिलना-जुलना होता है,ये सारे लोग प्रत्यक्ष ही आते हों,ऐसा नहीं होता,बहुत सारे लोग किसी अन्य चैनल की मार्फ़त भी आते है जिनका नाम याद रखना तो दूर,ठीक से उनकी शक्ल भी याद नहीं रहती !!इससे आप किसी के सम्बन्ध किसी से जोड़ दे,यह नितांत ग़लत है!!
एक मंत्रिमंडल में कई मंत्री होते हैं,हर एक की,कार्यों के सिलसिले में मिलने वालों से कोई व्यक्तिगत जान-पहचान हो,ऐसा हरगिज नहीं होता !! मंत्री बनते ही हम अन्तर्यामी थोड़े हो जाते हैं,आपमें में से भी कोई भी हमसे मिलकर उचित काम कर या करवा सकता है,हरेक काम में कई ज़रूरी कारवायिआं होती हैं और एक ही कार्य के लिए बार-बार मिलना भी अत्यन्त ज़रूरी हो जाता है,इस में आप बेशक किसी का सम्बन्ध किसी से जोड़ सकते हैं मगर ये सच ही हो,ये ज़रूरी नहीं!! तो मैं तो आपकी बातों की काट करूँ,इसमें भी मैं अपनी तौहीन समझता हूँ,मगर कहीं जनता भी आपकी लत-पट बातों से गुमराह न जाए इसलिए मैं अपने विचार संप्रेषित कर रहा हूँ !!
एक नाम,या शक्ल,या एक स्थान,और हुबहू एक ही नाम के माँ-बाप वाले कई व्यक्तियों का होना बिल्कुल लाजिमी होता है मगर आप मिडिया वाले एक नाम के साथ दूसरी सूचनाओं का ऐसा घालमेल कर देते हैं और उसे लैंड-फंड सबूतों से सिद्द भी कर देते हैं कि आदमी साला एकदम से बेचारा हो जाता है,चाहे वो कोई भी हो !!क्या आप नहीं जानते की जिसके ऊपर बिताती है वो ही जानता है!!आप मिडिया वाले हमारे सबसे करीबी होते हैं,आप भी ऐसा करते हैं तो हमें कितना दुःख होता है,ये आप क्या जाने ?कोई राज्य में इन्वेस्ट करने वाला व्यक्ति या उद्योगपति कहीं जाता है,हम उसके किसी कागज पर अपनी अनुशंसा कर देते हैं,या उसकी टिकिट बनवा देते हैं या वो हमारी टिकिट बनवा देता है,या संयोग से एक टिकिट में हमारा नाम या एक ही होटल में हमारा ठहरना ,या सैर-सपाटे के दौरान संयोग-वशात एक ही गंतव्य होने के कारण कहीं आते-जाते हुए रस्ते में भेंटा जाना और भेंटा जाने के कारण कहीं कारण कहीं खाने-पीने बैठ जाना ....इन सबमें आपको साजिश या परिचय वाली क्या बात लगती है?आप भारत के बाहर हों,जम्मू के हों और कोई साउथ-इंडियन आपसे भेंटा जाए और आपसे जड़ों से जुडाव के कारण आपको लंच पर बुलाए ,अथवा अपने साथ रहने को आमंत्रित करे तो क्या आप उसे टूक-सा जवाब दे देंगे ??फ़िर अपने वतन से बाहर कोई अपना-सा मिल ही जाए तो क्या हम पहले उसकी तहकीकात करने लगें कि वो क्या है,कैसा है,बेईमान है कि क्या है ?क्या ऐसा करना सम्भव है ?क्या ऐसा करना उचित होगा?क्या हमारा ऐसा करना हमारे ऊपर उसके विश्वास को ठेस नहीं पहुँचायेगा ??सो आपको सार्वजनिक जीवन जीने वालों के प्रति कोई भी बात अत्यन्त सावधानी पूर्वक कहनी या लिखनी चाहिए!! जनता की समस्स्याओं के लिए हम सतत संघर्ष करते है और उस संघर्ष के दरम्यान अकसर हमसे बहुत सारे लोग जुड़ जाते हैं, और हमारे प्रति अपनी शुभेक्षा के कारण अकसर वे हमारे कहीं आने-जाने,खाने-पीने,रहने-सोने तथा कभी-कभी कुछ मनोरंजन का भी प्रबंध कर देते हैं!!हमारी जिंदगी की जटिलताओं को देखते हुए इस-सब पर किसी को कोई एतराज तो नहीं होना चाहिए,मगर मिडिया का तो जैसे यही एक रोजगार रह गया है कि वो उल्टे-सीधे प्रश्न उठाये या गडे मुर्दे ही उखाडे?सच यह है कि आप नहीं जानते कि यही मिडिया आज-तक हमें ब्लैकमेल करता आया है!!हम इनकी बात माने तो ठीक,वरना ये हमें जन-विरोधी ,भ्रष्टाचारी ,बेईमान और भी ना जाने क्या-क्या कहता है !!मेरी तो जनता से ये गुजारिश है की वो अब ऐसा वातावरण या आन्दोलन तैयार करें,जिससे मिडिया की यह गन्दी दादागिरी ख़त्म हो !!जनता के इस नेक कार्य में देश के तमाम नेता साथ खड़े मिलेंगे ....!!तो बोलिए हम सब मिडिया को मिटा कर रहेंगे !!
हम सबको मिलकर ही राजनीति को स्वच्छ करना है!!मिडिया जनता और नेता के बीच दीवार खड़ी करता है,इस दीवार को अब हमें गिरा देना है!!राजनीति का आनंद आपको और हमको मिलकर ही लेना है,आप पकाएंगे और हम खाएँगे !!हर आदमी एक समय तक अपने माँ-बाप का ही खाता है,हम भी अपने राज्य-अपने देश का खाते हैं तो कौन सा हराम करते हैं,ये बात सबको सोचनी चाहिए !! नेताओं के काम में तो किसी को अपनी टांग ही नहीं घुसानी चाहिए,जो ऐसा करते हैं उन्हें भरसक रोकना ही चाहिए,बल्कि उनकी तो टांग ही तोड़ देनी चाहिए!!आप सब आज ही से ये यत्न करना शुरू कर दे,इसी में हमारी और आपकी भलाई है,हम सदा आपकी भलाई के लिए सोचते हैं,मगर राजनीति में कुछ ग़लत तत्वों के समावेश के कारण कुछ कर नहीं पाते ,आप भी हमारी भलाई की सोचे,आपका भला ख़ुद-ब-ख़ुद हो जायेगा !! आप सबसे बस एक ही छोटी-सी गुजारिश है की किसी भी हालत में मिडिया के बहकावे में नहीं आयें !!आज का मिडिया ख़ुद स्वार्थी है और सदा अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है !!सो दोस्तों,संक्षेप में यही कहूँगा की आप हम नेताओं को ग़लत नहीं समझे ,आप और हम एक-दूसरे के खेवनहार हैं,आपके बिना हम नहीं हैं !!तो हमारे बिना आपकी चिंता और चाकरी भला कौन करेगा ??
आपके प्रति अपनी समस्त सदिच्छाओं के साथ आपका हितैषी और प्रेमी !! भूतपूर्व मुर्खमंत्री
साधू भौंरा !!
(हस्ताक्षर)

बडिए कमा लिए हो भइया !!

बडिए कमा लिए हो भइया !!कहाँ से कमाए हो भइया ??
जनता से ना ...!!तनी सुन जनतवा को लौटा भी दो भइया !!
जनतवा से तनी-तनी सुन करके ना लिए हो भइया ??
तनिये-तनी लौटाने को कह रहे हैं हम तुमको भइया !!
का कहा ..?अपनी मेहनत से ई सब कमाए हो भइया !!
तो इतना घमंड कौन बात का कर रहे हो भैया !!
एतना गुस्सा कऊन बात का करते हो बड़के भैया ??
पईसा तो नहीं रहने का,इतना भी मत ..... भइया !!
तुम अपना सामान किसको बेचे थे,जनता को भइया!!
कि कोई भूत-वूत सामान खरीदता था भैया ??
जिन्दा लोगन ही तुम्हारा सामानवा लेता था भइया !!
जिंदा लोग ही मिलकर तुमको सेठ बनाया है भइया !!
बहुत जरुरी है अब तुमरा सहयोग हे बाबू भइया !!
जिंदा लोगों के अब तुम करो कुछ ओ प्यारे भैया !!
धरती रो रही है तुमको पुकार-पुकार कर ओ भइया !!
उसके बच्चों की कुछ मदद करो ऐ समर्थवान भइया !!
देखो कितना चीत्कार है ई धरती पर ओ भोले भइया !!
तुम्हारे ही पौरूष को ललकार है ये क्षत्रिय भइया !!
तुमको कसम इस माटी की ,जिसका तुमने खाया !!
यूँ मर गए तो माटी कहेगी,हाय नपुंसक !दैया-रे दैया!! ...आगे पढ़ें!

वेश्यागमन करोगे !!??

आज तक समझ ही नहीं पाया कि अलग-अलग व्यक्तियों के साथ सोने वाली स्त्रियाँ वेश्या होती है या अलग-अलग स्त्रियों के साथ सोने वाला पुरूष वेश्या !! वेश्या के बारे में बहुत कुछ कहा जाता रहा है, कहा जाता रहेगा.... लेकिन कोई स्त्री वेश्या क्यूँ है? उसका उत्स क्या है? वह वेश्या क्यूँ है? क्या अब वो इस जीवन से निजात पाना चाहती है? उसने जीवन में क्या चाहा था? क्या माँगा था? दरअसल क्या वह इस धंधे को धंधा समझती है? धंधे के उसूल अपने से पृथक चीजों को बेचना होता है? अपनी ही देह का मजबूरी में पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल करना क्या सचमुच एक स्वस्थ व्यापार कहा जा सकता है?? अगर सचमुच ऐसा है तो एक अच्छी से अच्छी वेश्या की, एक टुच्चे से टुच्चे व्यापारी कि तुलना में क्या साख, मान-सम्मान, हैसियत या रूतबा होता है?? एक वेश्या, जिसका इस्तेमाल हम अपने अनिर्वर्चनीय आनंद के लिए करते हैं, उसको हकीकत में हम क्या इज्जत देते हैं?? यदि नहीं तो क्यों हमने स्त्री जाति के एक विशाल वर्ग को इतना स्तरहीन, इतना मलीन, इतना व्यक्तित्व-विहीन बनाया हुआ है?? क्या सिर्फ़ अपनी विष्ठा-वीर्य उसमें त्यागने के लिए?? वेश्या को बनाए रखने में किसका हाथ है?? यदि हम सच ही में स्त्री को इज्जत देते हैं या वाकई हमारे भीतर उसके लिए पवित्र भावनाएं हैं!! तो क्या हमें इनके उन्मूलन के प्रयास नहीं करने चाहिए?? यदि हम ऐसा कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं तो जमाने से यह क्या चीखना-चिल्लाना करते रहते हैं?? हम सामर्थ्यहीन लोग झूठ-मूठ ही राग अलापते रहते हैं और विभ्भिन्न प्रकार की पोथियों के पन्ने काले करते रहते हैं?? ...स्त्री को जब भोगना ही है, तो बदनामी का भी मज़ा लो ...!! यों चोरी-छुपे भोगकर इज्जतदार होने का भी ढोंग क्यों?? ...यानी कि अन्दर भी बल्ले-बल्ले .... बाहर भी बल्ले-बल्ले !!वाह रे आदमी !! इसे ही तो कहते हैं चित भी मेरी ...पट भी मेरी !!!! ...आगे पढ़ें!

.......सब वादे हैं...वादों का क्या !!

......रिश्ते जिन्दगी को धीमा कर देते हैं!!रिश्ते मतलब,एक -दूसरे की फिक्र!!रिश्ते मतलब,एक-दूसरे को प्यार!!रिश्ते मतलब,रोज-रोज की तकरार-मनुहार!!रिश्ते मतलब,एक-दूसरे को अपना वक्त देना......कुल-मिलाकर वक्त खोटा करना !!और वक्त!!वो तो हम सब के पास बेहद कम है,देखो ना भागा ही जा रहा है!!नामुराद साला!!ठहरता ही नहीं!!जिन्दगी में कित्ते तो काम हैं!!ये करना है,वो करना है!!इससे आगे बढ़ना है,उससे आगे जाना है!!मकान बनाना है,बच्चों की शादी,ऊँचा रहन-सहन,मोबाइल,गाड़ी,कपड़े,टी.वी, फ्रीज,कंप्यूटर,डी.वी.डी.प्लेयर,तरह-तरह के अन्य साजो-सामान....ना जाने कितना और कुछ.....!!जिन्दगी की इन सच्चाईयों के बीच रिश्तों की भला बिसात ही क्या ?? प्लीज रिश्तों की कोई बात ना कीजिये !!रिश्ते दरअसल अन्धकार हैं, आज के दौर की ये चकाचौंध हमारी रौशनी!!हमें अपने समय से बहुत आगे जाना है,हममे से हर एक को,हर एक से आगे जाना है,कहाँ .... पता नहीं !!!! बूढे माँ-बाप... इन्होने तो अपना फ़र्ज़ पूरा किया,किसी पर अहसान थोड़ा ही ना किया!! रिश्ते !!हा-हा-हा-हा!! रिश्ते दर्द हैं!!रिश्ते दुख हैं!!रिश्तों से भला कैसी रिश्तेदारी?? रिश्तों से कोई ना निभाओ यारी !! रिश्ते धुंध हैं !!धुंध के पार जाना है!!अब शायद कोई अपनी माँ से पैदा ना होगा!!अब शायद किसी का कोई बाप ना होगा !! सच !!!

ऐसे लोगों को हमारा सलाम !!

सवेरे-सवेरे ही देखा कि बिहार के बाड़ पीड़ित इलाके में काम कर रहे डॉक्टरों की टीम में से एक डाक्टर की मौत अचानक ही हो गयी,मगर उन विपरीत परिस्थितियों में भी बचे डाक्टरों ने वहां से वापस आने बजाय अब वहीं रहकर काम करने का फैसला किया है,यही उनके अनुसार मृतक डाक्टर को उनकी भावभीनी श्रद्दांजलि होगी !! यह पढ़ते ही आँखें नम हों आयीं, और मन-ही-मन में उनको सैल्यूट को हाथ जैसे माथे पर जा लगे !!आज,जबकि हर ओर पैसे के लिए मारा-मारी,हर ओर प्रतिस्पर्धा के पीछे भागा-भागी,तथा जीवन जीने के तमाम साधनों को पाने के लिए हर प्रकार की लम्पटता को,हर प्रकार के स्वार्थ को अपनाना एक अनिवार्य घटना मान लिया गया है,वहां ऐसे लोगों के इस स्तुत्य जज्बे को सलाम ही किया जा सकता है!!हमारे आस-पास तो घटनाएं बहुत घटती रहती हैं,लेकिन लगभग सारी ही घटनाएं सिर्फ़ व् सिर्फ़ अपने बेतरह एवं अनंत स्वार्थ से अभिप्रेत होती हैं,या स्वजनों की सहायता हेतु किए गए कार्य-मात्र होते हैं ,यहाँ तक की लोग तो अपने रिश्तेदारो को सहयोग करते हुए भी उनपर अपने अहसान का इतना ज्यादा लाड देते हैं की बेचारे रिश्तेदार उस अहसान के बोझ टेल घुट कर मर जाएँ !!और यह सबको मान्य भी है !!इसे बिना स्वार्थ के किया जाने वाला किसी का कोई भी कार्य मानो एक ईश्वरीय घटना ही प्रतीत होता है !!शायद देश के सुपुत्र इन्ही लोगों को कहा जाता है,यही वो प्रेरणाएं हैं,जिनसे मानव की सेवा की सीख ली जा सकती है,अगरचे कोई सीख लेने को हम तैयार हों !!क्या हमारी युवा पीढी की आंखों में अपने देश के लिए भी कुछ सपने बचे हुए है??यदि रत्ती भर भी इसका जवाब हाँ में है,तो यह भी सच है की भारत के भविष्य की तस्वीर कुछ बेहतर है,वरना कुछ गिने-चुने लोगों ने तो इसे बेच ही डाला है !!
मेरे पास ढेर सारी चीज़ें थीं -
मैं उन्हें काफी दिनों तक सहेजता रहा ,
मगर -
अंततः उनमें से एक भी चीज़ न बची !!
और -
मैं बिल्कुल अकेला रह गया !!
तब मैंने जाना कि चीज़ें ,
कभी सहारा नहीं बनती ,आदमी का ,
यहाँ तक कि साया भी नहीं !!
अंततः
आप भी नहीं बचते ,चीज़ों की तरह !!

फिर, एक दिन अचानक -
वे सारी चीजें -
मेरे पास वापस आ गयीं ,
और मैनें उन्हें -
समस्त पृथ्वी-वासियों में बाँट दिया -
मगर तब भी -
मेरे पास कुछ चीज़ें बच ही रहीं !!
तब मैनें उन्हें -
अन्तरिक्ष-वासियों को दे डाला !!
सबने मुझे धन्यवाद दिया,
और मैनें भी उन्हें ,
उनके ढेर सारे प्यार के लिए !!

मैनें पाया कि -
मेरी समस्त चीज़ें तो ,
मेरे पास ही मौजूद थीं ,
और भी सघन होकर -
सबके -
ढेर सारे प्यार के रूप में !!

तमसो माँ ज्योतिर्गमय......अल्लाह हो बुद्दिर्गमय .....!!



 

तमसो माँ ज्योतिर्गमय

तमसो माँ ज्योतिर्गमय......अल्लाह हो बुद्दिर्गमय .....अक्सर ही एक साथ आते है दो कौमों के विशेष पर्व ....क्या संदेश है इसका ? किसी के अल्लाह और किसी के भगवान् अगर एक ही साथ आ रहे हैं तो जरूर इसका कोई फलसफा होगा !क्या इसे हम समझ सकते हैं ?........... या कि बम धमाकों ने अनेकानेक प्राणों के साथ हमारी बुद्दि भी हर ली होती है !!.....दिखायी तो इनमे से कोई भी नहीं देता..... लेकिन अनदेखी और अनचीन्ही अजीबोगरीब भावनाओं की रौ में बहे जाते हम शायद खाभी भी अपने आप नहीं जीते !... बल्कि ना तो ख़ुद जीते हैं और ना ही दूसरों को जीने देते हैं .....हम क्या चाहते हैं यह तो अल्लाह या भगवान् का बाप भी नहीं जानता !! हम हमेशा चीज़ों का सामान्यीकरण कर देते हैं... और इसीसे सब चीजों का भयावह घालमेल हो जाता है!! अब जैसे मैं चोरी करता हूँ,तो इसमें मेरे परिवार का क्या दोष,जिसने मेरे गंदे कर्मों की वजह से मुझसे कन्नी काटी हुई है !! मगर मेरे परिवार को ना सिर्फ़ दोषी मान लिया जाता है,बल्कि मेरे रिश्तेदारों को "भीतर"कर दिया जाता है,ये मंगल कार्य तो पुलिस करती है, मगर अगल-बगल का मेरा पड़ोस का समाज ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोग तक भी मेरे परिवार से घृणा करने लगता है,मेरी बदनामी को लोग ऐसे पर लगाते हैं कि जो कुछ मैंने कभी किया ही नही,वो सब भी मुझसे जोड़ देते हैं..... इस तरह किस्से-दर-किस्से मुझसे जुड़ते चले जाते हैं...... दरअसल जो कुछ भी मैं करता चला आ रहा था,उसके लिए तो मामूली सज़ा ही मुक़र्रर होती.... मगर इन घालमेलों की वजह से मेरा समाज में वापस लौटना असंभव हो जाता है सभी की नज़रों में मैं अंतत मैं देशद्रोही बन जाता हूँ..... एक देशद्रोही कभी भी अपने देशप्रेमी होने के चरित्र का सर्टिफिकेट लाकर नहीं दे सकता !!
किसी भी समाज में कम या बेशी ग़लत लोग होते हैं.... मगर इसकी वजह से कभी भी उस पूरे समाज को ग़लत नहीं समझा जाता ............किसी ख़ास समुदाय में आज ग़लत तत्त्वों की संख्या किसी भी दूसरे समुदाय से ज्यादा है..... तो अवश्य ही इसके कारणों की बड़ी गंभीर तहकीकात करनी चाहिए,बजाय कि इसके आप दिन-रात उसे गरियाते रहो ..... वो कहा है ना .... कुछ तो बात रही होगी..... यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता !! कोई भी समाज सिर्फ़ व् सिर्फ़ तभी बदलता है, जब उसके भीतर मजबूत,आत्मविश्वासी ,उदार विचारों वाले तथा अपने रास्ते से कभी भी डिगने ना वाले लोग पैदा लेते हैं.... वो अपने कर्मो से अपने पैरों के पीछे एक ऐसा सुंदर व् अनुकरणीय राह बना देते है कि उनके जीते-जी उन्हें गालियाँ देता हुआ ये समाज भी उनकी अवमानना नहीं कर पाता !! जिन समाजों में ये मिसालें हैं वो समाज समय के साथ पूरी तरह बदल चुके हैं... दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हर समाज में देर-अबेर ऐसे लोग पैदा होते ही हैं... जो राहबर बन सकें अन्यथा समाज सड़ ही जायेगा !! प्रक्रति की ये स्वाभाविक प्रक्रिया है कि वह ऐसी स्थिति के आने पर उसका उन्मूलन करे और दोस्तों शायद यह स्थिति आज आ गई हुई जान पड़ती है !!..... अब ऐसा प्रतीत होता है कि समुदाय विशेष के लोगों ने अपनी आंतरिक संरचना,अपनी कट्टरता ,रूदिवादिता,विज्ञान की अवहेलना और इन सबसे उत्त्पन्न अपनी समस्याओं को पहचानना आरम्भ कर दिया है.... इन भावों के स्वर अब बड़ी तेज़ीसे देखे जा रहे हैं.... और हलके-हलके ही सही मगर ग़लत चीज़ों के ख़िलाफ़ और सही चीजों के पक्ष में अब आवाजें उठने लगी हैं .... किसी भी चीज़ की शुरुआत एकदम से तो होती नहीं .... पहले थोड़े स्वर उठते हैं फ़िर उन स्वरों में और भी स्वर आ जुड़ते हैं ...... कारवाँ बनता चलता है..... कारवाँ बढ़ता है तो धूल उड़ती है !! आप सब देखते जाओ कि अब क्या होता है .... गोकि अंत भला तो सब भला होता है .... चंद लोगों के साथ मैं भी इसी उम्मीद में हूँ कि अब वाकई भला होने को हो है .... हाँ सच .... सवेरा होने को है !! ..... तमसो माँ ज्योतिर्गमय ..... अल्लाह हो बुद्दिर्गमय ...... हम सब इस ईद और नवरात्रों की मंगल शुभकामनाएं ..... खुदा हाफिज़ !!

ख्वाजा मेरे ख्वाजा...दिल में समां जा !!

कुछ ना कुछ करते रहिये !!

Wednesday, October 15, 2008


कुछ ना कुछ करते रहिये !!

कुछ न कुछ करते रहिये यां जमे रहने के लिए ,
इस जद्दोजहद में ख़ुद के ठने रहने के लिए !!
यहाँ कोई ना लेगा भाई आपको हाथो-हाथ ,
बहुत जर्फ़ चाहिए आपके खरे रहने के लिए !!
इन्किलाब न कीजै रहिये मगर आदमी से ,
रूह का होना जरुरी है अपने रहने के लिए !!
सब मुन्तजिर हैं कि मिरे लब खुले कब ,
कुछ बात तो हो मगर मेरे कहने के लिए !!
इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
हम झगडों के कायल हैं ना अमन के खिलाफ,
कुछ आसमां हो कबूतरों के उड़ने के लिए !!
हम रहना चाहते हैं सबसे मुहब्बत के साथ ,
कोई तैयार ही नहीं है प्यार करने के लिए !!
जो कर रहे हो तुम उसके सिला की सोचो ,
नदिया बही जा रही है बस बहने के लिए !!
पशोपेश में है"गाफिल"क्या करे ना करे ,
क्या य जगह बची है हमारे रहने के लिए !!
 
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