भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला

रविवार, 5 जुलाई 2009

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला
चिडियों को दाने , बच्चों को , गुडधानी दे मौला !!

कई दिनों से आँखें पानी को तरस रही थीं और अब जब पानी बरसा तो कई दूसरी आँखें पानी से तर हो गयीं हैं,पानी उनकी झोपड़-पट्टियों को लील लिए जा रहा है....पानी ,जो सूखे खेतों को फसलों की रौनक लौटने को बेताब है,वहीं शहरों में गरीबों को लील जाने को व्यग्र...!!पानी को कतई नहीं पता है कि उसे कहाँ बरसना है और कहाँ नहीं बरसना !!
शायर ने कहा भी तो है, "बरसात का बादल है.....दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है,किस छत को बिगोना है !!
तो प्यारे दोस्तों ,यूँ तो प्रकृति हमारी दोस्त है...और सदा ही दोस्त ही बनी रही है....लेकिन हम सबने अपनी-अपनी हवस के कारण इसे मिलजुल कर अपना दुश्मन बना डाला है....प्रकृति को हमने सिर्फ़ अपने इस्तेमाल की चीज़ बना डाला है....और अपने इस्तेमाल के बाद अपने मल-मूत्र का संडास....ऐसे में यह कहाँ तक हमारा साथ निभा सकती है.....और जो यह हमारा साथ नहीं निभाती...तो यह हम पर कहर हो जाती है....कारण हम ख़ुद हैं...!और यह सब समझबूझकर भी यही सब करते रहने को अपनी नियति बना चुके हम लोगों को भविष्य में इस कहर से कोई भी नहीं बचा सकता.....उपरवाला भी नहीं...!!पानी भी तो हमारा दोस्त ही है....और हमारी तमाम कारगुजारियों के बावजूद भी हर साल हमारी मदद करने,हमें जीवन देने के लिए ही आता है !हम कब ख़ुद इसके दोस्त बनेंगे ??ख़ुद तो दुश्मनों के काम करना,और इसके एवज में कोई इसकी प्रतिक्रिया व्यक्त करे तो उसे पानी पी-पी कर कोसना, क्या यही मनुष्यता है??
प्यारे मनुष्यों,मैंने तुम्हें यही बताना है कि अपनी हवस को वक्त रहते लगाम दे दो ना...अपने लालच को थोड़ा कम कर दो ना....!!तुम्हारे जीवन में सुंदर फूल फिर से खिल उठेंगे....तुम्हारा जीवन फिर से इक प्यारी-सी बगिया बन जाएगा..!!जैसा कि तुम सदा से कहते रहे हो...."धरती पर स्वर्ग"...तो इस स्वर्ग को बनाने का भी यत्न करो....कि नरक बनाए जाने वाले कृत्यों से "स्वर्ग"नहीं निर्मित होता...कभी नहीं निर्मित होता....यही सच है....!!

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3 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! लिखते रहिये!

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

भूतनाथ जी,

पहली बधाई तो आपका ब्लॉग पुनः आपके बस में हो गया, लोग भी ना जाने क्यों भूत से पंगा ले रहे थे।

धरती के बदलते स्वभाव और प्रकृति के विनाश में हमारी भागीदारी को स्पष्ट करता हुआ आलेख चिंतन जगाता है। और यह चिंतन अमल में आने लगे तो यह वसुंधरा फिर से हरी भरी हो जाये ।

इसी शुभेच्छा के साथ, सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

M VERMA ने कहा…

नरक बनाए जाने वाले कृत्यों से "स्वर्ग"नहीं निर्मित होता...कभी नहीं निर्मित होता....यही सच है....!!
बिलकुल सही

 
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