भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!!

गुरुवार, 21 मई 2009

हम तो बस करतब दिखा रहे हैं......!!
चार बांसों के ऊपर झूलती रस्सी.....
रस्सी पर चलता नट....
अभी गिरा,अभी गिरा,अभी गिरा
मगर नट तो नट है ना
चलता जाता है....
बिना गिरे ही
इस छोर से उस छोर
पहुँच ही जाता है.....!!
इस क्षण आशा और
अगले ही पल इक सपना ध्वस्त....!!
अभी-अभी.....
इक क्षण भर की कोई उमंग
और अगले ही पल से
कोई अपार दुःख
अनन्त काल तक
अभी-अभी हम अच्छा-खासा
बोल बतिया रहे थे और
अभी अभी टांग ही टूट गई....!!
कभी बाल-बच्चों के बीच....
कभी सास बहु के बीच.....
कभी आदमी औरत के के बीच
कभी मान-मनुहार के बीच
कभी रार-तकरार के बीच....
कभी अच्छाई-बुराई के बीच
कभी प्रशंसा-निंदा के बीच
कभी बाप-बेटे के बीच
कभी भाई-भाई के बीच
कभी बॉस और कामगार के बीच
कभी कलह और खुशियों के बीच
कभी सुख और के बीच....
जैसे एक अंतहीन रस्सी
इस छोर से उस छोर तक
बिना किसी डंडे के ही
टंगी हुई है ,और हम
एक नट की भांति
करतब दिखाते हुए
बल खाते हुए
गिरने-संभलने के बीच
चले जा रहे हैं.....
बिना यह जाने हुए कि....
दूसरा जो छोर है....
उस पर तो मौत खड़ी हुई है....
हम संभल भी गए तो
कोई अवसर नहीं है....
कुछ भी पा लेने का.....!!!!
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2 टिप्‍पणियां:

डॉ .अनुराग ने कहा…

हर आदमी सोचता है दौड़ के पकड़ लेगा.....
उस छोर का वो सिरा मगर मिलता नहीं

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

भूतनाथ जी,

सुन्दर भावभरी अभिव्यक्ती।

विस्तृत टिप्पणी प्राची के पार दी है, जरूर देखियेगा।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

 
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