भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

लम्हों ने कुछ खता की है !!

बुधवार, 15 अप्रैल 2009


लम्हे

वक्त की धरती पर
लम्हों के निशाँ
कभी नहीं बनते !!
लम्हे तो वैसे ही होते हैं
जैसे समंदर की छाती पर
अलबेली-अलमस्त लहरें
शोर तो बहुत करती आती हैं
मगर अगले ही पल
सब कुछ ख़त्म !!

आदमी

आदमी बोलता बहुत है
सच बताऊँ !!
आदमी अपनी बोली में
झगड़ता बहुत है !!

सुख

सुख पेड़ की मीठी छावं है
मगर मिलती है वह
धरती के बहुत गहरे से
जड़-तना-डाली-पत्ते बनकर
बहुत बरसों बाद !!

चूहा
आदमी !!
एक बहुत बड़ा चूहा है
जो खाता रहता है
दिन और रात
धरती को कुतर-कुतर

रेपिस्ट

आदमी !!
एक बहुत बड़ा रेपिस्ट है
जो करता है
हर इक पल
धरती का स्वत्व-हरण
और देता है उसे
अपना गन्दा और
दुर्गंधमय अवशिष्ट-अपशिष्ट !!

.............!!
आदमी के अवशिष्ट से
कुम्भला और पथरा गई है धरती
और आदमी सोचता है
कि वही महान है !!

................!!
आदमी !!....सचमुच......
है तो बड़ा ही महान
और उसकी महानता
बिखरी पड़ी है
धरती के चप्पे-चप्पे पर.....!!
और बढती ही चली जा रही है
ये महानता...पल-दर-पल....

और बिचारी धरती....
सिकुड़ती ही चली जा रही है
इस महानता के बर-अक्श ....!!

और मजा यह कि
आदमी कभी अपने-आपको
रेपिस्ट समझता ही नहीं.....!!

वक्त

वक्त.....
इक छोटा-सा मगर
बड़ा ही शैतान-सा बच्चा है !!
जो हर समय
क्षणों की डाली से
लम्हों के फल
तोड़ता रहता है
कभी थकता ही नहीं !!
अपने आगे वक्त
अक्सर ख़ुद ही
छोटा पड़ जाता है !!
Share this article on :

6 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

वक्त की धरती पर
लम्हों के निशाँ
कभी नहीं बनते !!
-------
अपने आगे वक्त
अक्सर ख़ुद ही
छोटा पड़ जाता है !!
--
बहुत खूब हैं ये छोटी कवितायेँ

* મારી રચના * ने कहा…

Aadmi.... bolta bahut hai...kitna sach likha hai apane... aaj kal chunaav prachaar ke dauraan yehi dikhai deta hai...

नवनीत नीरव ने कहा…

baatein to thik hi hain ......par lagta nahi kuchh jyadati kar rahein hain aap.

Science Bloggers Association ने कहा…

अरे वाह, एक साथ इतनी ढेर सारी क्षणिकाएँ। पढकर अच्छा लगा।
----------
जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?

hem pandey ने कहा…

सुख पेड़ की मीठी छावं है
मगर मिलती है वह
धरती के बहुत गहरे से
जड़-तना-डाली-पत्ते बनकर
बहुत बरसों बाद !!

-बहुत सुन्दर कविताएँ प्रस्तुत की हैं. साधुवाद.

चण्डीदत्त शुक्ल ने कहा…

अच्छी क्षणिकाएं हैं...युगातीत प्रश्नों को सामने लाती हुईं...ऐसे ही लिखते रहें.

 
© Copyright 2010-2011 बात पुरानी है !! All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Sakshatkartv.com | Powered by Sakshatkar.com.