अपनी ही धून में गुम हूँ मैं
बस थोड़ा सा गुमसुम हूँ मैं !!
मुझसे तू क्या चाहता है यार
अरे तुझमें ही तो गुम हूँ मैं !!
बस गाता ही गाता रहता हूँ
कुछ सुर हूँ,कुछ धून हूँ मैं !!
याँ से निकलकर कहाँ जाऊं
आज इसी उधेड़बून में हूँ मैं !!
जागने और सो जाने के बीच
किसी और की ही रूह हूँ मैं !!
अल्ला रे मेरा क्या होगा यार
कि ख़ुद तो मैं हूँ ना तुम हूँ मैं !!
"गाफिल"मुझे इतना तो बता
मैं अकेला हूँ कि हुजूम हूँ मैं !!
बस थोड़ा सा गुमसुम हूँ मैं !!
मुझसे तू क्या चाहता है यार
अरे तुझमें ही तो गुम हूँ मैं !!
बस गाता ही गाता रहता हूँ
कुछ सुर हूँ,कुछ धून हूँ मैं !!
याँ से निकलकर कहाँ जाऊं
आज इसी उधेड़बून में हूँ मैं !!
जागने और सो जाने के बीच
किसी और की ही रूह हूँ मैं !!
अल्ला रे मेरा क्या होगा यार
कि ख़ुद तो मैं हूँ ना तुम हूँ मैं !!
"गाफिल"मुझे इतना तो बता
मैं अकेला हूँ कि हुजूम हूँ मैं !!
8 टिप्पणियां:
भूतनाथ जी, मीठी रचना है।काफी दिनों से आपके दर्शन नहीं हो रहे
Sarkar Shandar hai ji
याँ से निकलकर कहाँ जाऊं
आज इसी उधेड़बून में हूँ मैं !!
ये चिंता खतम नहीं होने वाली.....जिन्दगी भर लगी रहेगी...
Regards
waah bahut sunder
बेहतरीन।
’गाफ़िल’ मुझे इतना तो बता
मैं अकेला हूं कि हुजूम हूं मैं’
अति सुन्दर!!! टिप्पणी करने का आपका तरीका भी सुन्दर.धन्यवाद.
हल्की फुल्की, पर दरदार गजल।
-----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
wah bhoot naathji, kaha goom ho gaye?
choti si pankti mai bahut gaheri baat likhi hai...
एक टिप्पणी भेजें