भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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शनिवार, 15 अगस्त 2009

धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!


धर्म जीने देने के लिए है,मिटाने के लिए नहीं......!!
सच कहूँ तो इस्लाम क्या,अपितु सभी धर्मों को आत्म-मंथन की तत्काल ही गहन आवश्यकता है,अगर यह समयानुकूल नहीं हो पाया तो समय इसे ग्रस लेने वाला है,सच कहूँ तो टिप्स मेरे पास भी हैं,मगर इस्लाम के अनुयायी-मौलवी आदि किसी भी टिप्स को स्वीकार करने में अपनी हेठी समझते हैं....दरअसल आदमी का अंहकार कभी आदमी को आदमी नहीं बना रहने देता !!
वह अपने ही दुर्दमनीय हाथों का शिकार हो जाता है,इस्लाम आज एक ऐसे मुकाम पर है,जहां से उसे बदलने की तत्काल आवश्यकता है....जैसा कि हर धर्मों में होता आया है...जैसा कि हम जानते हैं,ये सारी चीज़ें इंसान की ही बनायीं हुई हैं....जैसा कि प्रकृति का अपरिवर्तन-शील नियम ही है...सतत परिवर्तन-शीलता...अगर इंसान इसको ना माने तो पीछे मिट चुकी अनेकानेक चीज़ों और जातियों की तरह उसे भी मिट जाना है......इंसान का असल ध्येय है इंसान होकर जीना....और परमेश्वर की कल्पना उसके इसी ध्येय का एक माध्यम !! परमेश्वर है भी तो आपको उसके एक अंश होकर ही जीना है....और उसके अंश की तरह जीने के लिए अपनी ही रूढ़ पड़ चुकी मान्यताओं की बलिवेदी पर इंसान को मौत अपनाने पर विवश कर देना,यह किसी भी धर्म का ना तो कभी उद्देश्य था...और ना कभी हो भी सकता है....अल्लाह हो या भगवान्....इंसान के जीवन में इनकी महत्ता इंसान की सोच को अपार विस्तार प्रदान करने की होनी चाहिए....बेशक दुनिया में कईयों तरह के धर्म गढ़ लिए जाएँ....मगर धर्म के पागलपन की जगह इंसान होने का पागलपन,एक सच्चे इंसान होने का पागलपन अगर इंसान पर तारी हो सके...अगर अल्लाह या भगवान् के बन्दे अल्लाह और भगवान् के अन्य बन्दों को हंसा सके....उनका दुःख दूर करने को अपने जीवन का उद्देश्य बना सकें....तब तो इंसान होने का कोई अर्थ है....इंसान होने में कोई गरिमा है....और भगवान या अल्लाह के वजूद की कोई सार्थकता......!!मगर यह क्या कि अल्लाह या भगवान् ने आपको भेजा तो है जीने और दूसरों को जीने देने के लिए....और आप यहाँ आकर जीवन को मेटते ही जा रहे हो आप शब्दों की जुगाली में जीवन की गरिमा को नष्ट किये जा रहे हो.... कोई गेरुआ...कोई हरा झंडा उठाये बस एक दुसरे को भयभीत किये जा रहा है....यह सब क्या है....??....क्या यही है जीवन.....आधी आबादी यानि स्त्री जात को आप उसका यथोचित सम्मान से वंचित ही नहीं कर रहे....बल्कि उसे कदम-कदम पर अपमानित करते उसे मौत सरीखा जीवन जीने पर विवश किये हुए हो....यह सब क्या है....तरह-तरह की थोथी मान्यताओं आड़ लेकर इंसान के जीवन को तरह-तरह से प्रताडित किये जा रहे हो..यह सब क्या है...??...अगर सच में ही तुम सबके जीवन का उद्देश्य प्रेम ही है,तो वह सिर्फ तुम्हारे पुराणों और कुरानों में शब्दों तक ही सीमित है क्या....वह तुम्हारे जीवन में कब तलक उतरेगा....तुम्हारा जीवन कुरानानुकुल-पूरानानुकुल कब तलक संभव होगा....तुम्हारे मौलवी और पंडित कब एक दुसरे से हाथ मिलायेंगे.....??तुम्हारे जीवन में कब मानवता का उजाला होगा....??जिसे तुम वाकई प्रेम कहते हो,प्रेम समझते हो,वह जैसा भी हो,वह कब तुम्हारे जीवन को असीम ब्रहामान्दनीय-ब्रहमांडनीय चेतना से पुलकित करेगा....??तुम कब मनुष्य जीवन में अपने मानव होने का यथेष्ट योगदान दोगे....??......कुरान और पुराण के समुचित अर्थ को कब अकथनीय विस्तार दोगे....??जीवन एक बहता हुआ दरिया है दोस्तों....धरम अगर तरह-तरह के दरियायों के नाम हैं....तो इंसान होना इक विराट समुद्र....अगर तुम यह समुद्र हो सको तो सारे धरम तुम्हारे भीतर ही सिमट जायेंगे....और अगर यूँ ही दरिया की तरह उफनते रहे तो समूची मनुष्यता तुम्हारी हिंसा की बाढ़ में विनष्ट हो जायेगी....तुम्हें क्या होना है....यह अब तुम्ही तय करो....ओ मनुष्यों.....यह बात इक भूत तुम्हें तार-तार रोता हुआ बोल रहा रहा है....बोले ही जा रहा है....बोलता ही रहेगा....!!!!
शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

क्या हुआ जो मुहँ में घास है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो चोरों के सर पर ताज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो गरीबों के हिस्से में कोढ़ ओर खाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो अब हमें देशद्रोहियों पर नाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो सोने के दामों में बिक रहा अनाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो आधे देश में आतंकवादियों का राज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या जो कदम-कदम पे स्त्री की लुट रही लाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर आम आदमी हो रहा बर्बाद है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर शासन से सारी जनता नाराज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो देश के अंजाम का बहुत बुरा आगाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
इस लोकतंत्र में हर तरफ से आ रही गालियों की आवाज़ है
बस इसी तरह से मेरा यह देश आजाद है....!!!!

आओ इस जश्न को साझा कर लें....

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

बैठक Baithak

to me



Baithak.....se utha kar yahaan le aaya hun.....!!


Link to बैठक Baithak

आओ इस जश्न को साझा कर लें....

Posted: 13 Aug 2009 08:15 PM PDT

आज़ादी की 62वीं सालगिरह पर ये तस्वीरें ख़ास बैठक के लिए वाघा बॉर्डर से हमारे दोस्त सोहैल आज़म ने भेजी हैं......सोहैल जामिया से मास कॉम की पढ़ाई के बाद बच्चों के लिए काम करने वाली एक संस्था से जुड़े हैं....इसी सिलसिले में वाघा जाना हुआ तो सरहद के बिल्कुल क़रीब से ये सारा नज़ारा अपने कैमरे में कैद कर लिया...सोहैल ने बताया कि सरहद पर इस पार-उस पार का फासला इतना कम है कि वहां अक्सर शाम को होने वाले रंगारंग आयोजनों की आवाज़ें उस पार तक पहुंचती हैं...लोग बॉलीवुड की धुनों के सहारे थिरकते हैं और देशभक्ति की अलख भी जगाए रहते हैं....आइए हम भी सरहद के इस जश्न में शरीक हों और इस पार-उस पार के फासले को थोड़ा कम करें, कुछ पलों के लिए ही सही....


























मंगलवार, 11 अगस्त 2009

सुनो-सुनो-सुनो.....गरीब देशवासियों सुनो....

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
सुनो-सुनो-सुनो.....गरीब देशवासियों सुनो...!!
सुनो-सुनो-सुनो....देश के समस्त गरीब देशवासियों सुनो....हम इस देश की सरकार बोल रहे हैं.....इसलिए तुम सब लोगन हमारी बात कान खोल कर सुनो....हम आपके लिए एक तोहफा लाये हैं...अभी-अभी हमने तुम सबके बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का विधेयक पास कर दिया है...अब आज से तुम सब लोगन अपने गरीब बच्चों को स्कूलों में भेज कर पढ़ा और लिखा कर नवाब बना सकते हो...अब तुम सब लोगन आने वाले दिनों में अमीर लोगों से टक्कर भी ले सकते हो......हालांकि हम जानते हैं कि करोडों-करोड़ बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करा पाना बिल्कुल ही टेढी खीर है....लेकिन इसके बावजूद यह बीडा हमने उठा ही लिया है....न-न-न-....अब आप हमसे यह ना पूछो कि इसके लिए लाखों-लाख करोड़ रूपये का धन कहाँ से आएगा....कम-अज-कम हम अभी तो यह नहीं जानते...मगर यह अवश्य जानते हैं....कि जब हमने यह विधेयक पास कर ही दिया है तो आगे का काम भी भली-भांतिपूर्वक निपटा ही लेंगे.....!!....बेशक कैसे....यह हमको तनिक भी मालूम नहीं....!!
दरअसल हम शुरू से क्रांतिकरी रहे हैं...और हमारी ही की हुई क्रांति से यह देश आजाद भी हुआ है....इसलिए बिना कुछ जाने-समझे ऐसे कदम उठाना हमारे स्वभाव में स्वाभाविक रूप से शुमार रहा है......यह क्रांतिकारी कदम भी हमने अपने स्वभाव की इसी क्रांतिकारी स्वाभाविकता के कारण ही तो उठाया है.....!!हमें मालूम नहीं कि इसके लिए संभवतः करोडों शिक्षक कहाँ से आयेंगे....हमें यह भी मालूम नहीं कि हमारे देश के वो करोडों लोग दो रोज आधे पेट जीते हैं....और भूखे ही सोते हैं....जो अपने तन को ढकने के लिए कपडा तक नहीं खरीद सकते....जो अपने बच्चों को दुकानों-कारखानों और अन्य जगहों पर कमाने के लिए झोंक देते हैं.....कि कम-अज-कम वो अपने पेट की आग को तो बुझा सके... वो अपने बच्चों को कैसे और क्यूँ स्कूल भेजेंगे....??.......उनके पेट को भरने और तन को ढकने के लिए हमारे इंतजामात और दायित्व क्या क्या हैं....हमको नहीं मालूम....!!
.....हमने तो यह भी फरमान जारी कर दिया है कि समूचे निजी स्कूलों को भी २५% बच्चों को मुफ्त शिक्षा देनी होगी....यह मुफ्त शिक्षा वो आपको क्यूँ देंगी...इसका कोई दायित्व-बोध या कर्त्तव्य बोध उनको है या नहीं....या इसका अहसास हमने उनको कराया है या नहीं....यह भी हमको नहीं मालूम....हमारा काम है फरमान जारी करना...क्योंकि हम रजा हैं....सो हमने फरमान जारी कर दिया है....सो उसे पूरा होना ही होगा....!!{और ना भी पूरा हो तो क्या फर्क पड़ता है,क्योंकि हम तो घोडे बेचकर मूत कर सोये हुए होंगे...कोई भी कानून किस गति या नियति को प्राप्त होता है,सो हमको भला क्या मालूम....!!}
गरीब बच्चे अगर गलती से निजी स्कूलों में पहुच भी गए तो वे क्या पहने हुए होंगे.....क्या स्टेशनरी-किताब-बस्ता उनके पास होगी.....क्या जूते आदि उनके पैर में होंगे....सो भी हमको नहीं मालूम....!!उनकी समूची फीस का वहन निजी स्कूल का वह प्रबंधन,जो शिक्षा को सबसे बेहतरीन और सबसे जबरदस्त मुनाफे का व्यवसाय बनाये हुए है, जिसकी पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कडाही में है,क्यूँ करेगा ??.....और तो और,ये गरीब बच्चे,जो भाषा के नाम पर सिर्फ व् सिर्फ अपनी मातृभाषा,जिसका शहर वाले कान्वेंटी बच्चे ना तो अर्थ समझते हैं,और ना उसे सभ्य मानते हैं.....इन बच्चों के द्वारा ऐसी ही अबूझ भाषा बोले जाने पर इन बच्चों से कैसा उपहास पूर्वक बर्ताव करेंगे....इसकी कोई आशंका या सूचना हमारे पास नहीं है...और सबसे बड़ी बात तो यह कि इन नव-नौनिहालों द्वारा अंग्रेजी या हिंग्रेजी नहीं बोल पाने की विवशता पहले से मौजूद उन बच्चों के बीच इनकी क्या स्थिति पैदा करेगी.....सो भी हमको नहीं मालूम....हमने बस फरमान जारी कर दिया.....अब आप समझे बस......!!
इसी अंग्रेजी के कारण किसी जमाने में हमारे आज के महानायक,ना भूतो-ना भविष्यति,अमिताभ बच्चन को ना कॉलेज में दाखिला और ना नौकरी तक मिल पायी थी, ऐसा खुद बच्चन साहब ने फरमाया है....संजोग या दुर्योग से ऐसे बच्चन,जो अंग्रेजी नहीं जानते,गली-गली...मोहल्ले-मोहल्ले करोडों की संख्या में घूम रहे हैं....जिन्हें कभी महानायक भी नहीं बनना है.....बस किसी कारखाने की भट्टी में सदा के लिए झूंख जाना है....!!....ऐसी शिक्षा,जो अपनी ही मातृभाषा को भुलवा देती हो,उसे हेय बना देती हो,उसे बोले जाने को पीडादायक बना देती हो....अपने ही लोगों से खुद को सदा के लिए दूर कर देती हो,अपनी ही पहचान छिपाने को मजबूर कर देती हो....अपने ही देश के सम्मान की क़द्र करना भूला देती हो....अपनी ही भाषा के जानने वाले को उपहास का केंद्र बना डालती हो.....और कैरियर {कैरियर बोले तो लाखों की सालाना तनख्वाह का पैकेज,चाहे वो किसी देश में भी मिले,चाहे वो किसी भी कीमत पर मिले....!!??}
खैर ये वक्त इस ग्लोबल वक्त में इस प्रकार की टुच्ची बातें करने का नहीं है....इसलिए हे मेरे अमीर और शहंशाह मंत्रियों-अफसरों-सेठों के देश के गरीबतम लोगों हमने कानून बना दिया है...और आप नहीं जानते कि इसके लिए हमने और पिछली सरकारों ने ना जाने कितनी मेहनत और मश्शकत की है.....किसके लिए...आप ही सब के लिए ना......अब आप इसका लुत्फ़ उठाईये....उठाते ही जाईये.....और वह भी बिल्कुल मुफ्त....जी हाँ एकदम मुफ्त.....!!??
गुरुवार, 6 अगस्त 2009

ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश

ऐसी ही कार्रवाईयों से तो जल उठता है देश


पता नहीं क्यों इस देश की तमाम सरकारें यही समझती हैं कि उसके और उसके कर्ता-धर्ताओं के अलावे तमाम भारतवासी “चूतिये”हैं !!{दरअसल यहाँ मुझे इससे खराब कोई शब्द नहीं मिल रहा,मैं इससे भी ज्यादा गंदे शब्द का इस्तेमाल करना चाहता हूँ,इसके लिए पाठक मुझे माफ़ करें !!}
इस देश के तमाम खेवनहारों में यह कमी अनिवार्य रूप से पाई जाती है,कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों की अनदेखी ही करते हैं, गोया जनता मनुष्य ना होकर जानवर हों,और उनके मुख से किसी भी अर्थ वाली आवाजें नहीं उठनी चाहिए!!और अगर जो उठीं,तो जनता को गोलियों से भूने जाने के तैयार रहना चाहिए !!यह सब देश के तारणहर्ताओं की चरमरा चुकी सोच का परिचायक है,यहाँ यह ध्यान रख लेना चाहिए कि चरमरा चुकी चीज़ों की या तो मरम्मत की जाती है,या फिर उन्हें बदल दिया जाता है,यह नहीं कि ऐसी राय देने वालों की जान ही ले ली जाये,मगर जैसा कि इस देश में जो ना हो जाए,वो कम है,सो हमें इस देश की तमाम सरकारों के द्वारा यही सब देखने को मिलता है !!
मणिपुर की राजधानी इम्फाल में कल यही हुआ,पुलिस द्वारा फर्जी मुठभेड़ में एक नागरिक की अमानुषिक हत्या के बाद हुए जनांदोलन और बंदी के आखरी दिन के अंत में सुरक्षा-बलों की गोली-बारी के पश्चात इम्फाल में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया!!यहाँ यह विदित हो कि उससे पहले आत्मसमर्पण कर चुके एक प्रदर्शनकारी युवक चोंग्खाम संजीत को सुरक्षा-बलों द्वारा सड़क पर घसीटकर एक मॉल में ले जाया गया था,जहां फिर उसकी निर्ममता-पूर्वक हत्या कर दी गयी थी!!इम्फाल में “अपुंगा लूप “नामक संगठन द्वारा इसी फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ प्रदर्शन बुलाया गया था.मगर जैसा कि हम जानते हैं कि भारत नाम के इस देश की तमाम राष्ट्रीय और राज्य-सरकारें पहले किसी भी जनांदोलन को बेरहमी और भीषणता से कुचलती हैं,मगर जब इससे स्थितियां उनके नियंत्रण के और भी ज्यादा बाहर हो जाती हैं,तो संबद्द संगठनों को बातचीत का प्रस्ताव भेजती हैं,मगर ज्यादातर तो वह बातचीत की इच्छुक ही नहीं दिखती क्योंकि जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि जनता की आवाज़ को,उसकी इच्छा,आवश्यकता और अधिकारों को उसका “चुतियापा”,बेवजह का क्रंदन या अपने अंहकार पर चोट समझती है.और इसी का परिणाम है,देश में जगह-जगह पर हो रहे तरह-तरह के मुद्दों पर जनव्यापी आन्दोलन-प्रदर्शन या आखिरकार हिंसा !!
हो सकता है कि इनमें से बहुत सारे आन्दोलन फर्जी ही हों मगर अधिकाँश तो सच्चाईयों पर या तथ्यों पर आधारित ही होते हैं,जिनकी सरकारें अनदेखी ही करती जाती हैं,और समय के साथ इन प्रदर्शनों या आन्दोलनों का रूप कुरूप या वीभत्स होता चला जाता है,वर्तमान में मणिपुर इसकी जीवंत मिसाल है!!ज्ञातव्य हो कि यह वही मणिपुर है जहां कुछ ही समय बीता जब यहाँ की महिलायें भारत के सुरक्षा-बलों के अमानुषिकता-बर्बरता और मणिपुरी महिलाओं पर उनके यौनिक दुर्व्यवहारों के खिलाफ पूर्ण-नग्न होकर सड़क पर उतर आयीं थीं….!!क्या भारत जैसे पर्मप्रवादी देश में ऐसे दृश्य की कल्पना भी कर सकते है......?? यदि ऐसा वहां की महिलाओं ने किया तो आप खुद ही विचार करें कि वहां हमारे सुरक्षा बलों या कमांडों ने मणिपुरी महिलाओं के साथ ऐसा क्या सलूक किया होगा?? किसी भी घृणापूर्ण सुलूक के बगैर कहीं किसी देश या समाज की महिलायें ऐसा कठोर और शर्मनाक लगने वाला कदम नहीं उठा सकतीं…..!!मगर ऐसा लगता हैं कि हमारी सरकारों को सत्ता के रुतबे और ताकत के मद में किसी भी बात की,चाहे वह बात कितनी ही लोमहर्षक क्यों ना हो,कोई सुध ही नहीं रहती और यह बात यहाँ का अज्ञानी-से-अज्ञानी गंवार भी सरकार को बता या चेता सकता है!!इसका दूसरा अर्थ यह भी तो है हमारी सरकारें इनसे भी ज्यादा गंवार है{असभ्य और बेगैरत तो खैर वो पहले से ही हैं....!!}
जब सरकारों के कानों पर कोई जूं नहीं रेंगती या जब सरकारें कान में रुई डाल कर चैन की नींद सोई रहती हैं,उस वक्त भी,जब आम नागरिक में सरकारों के“चुतियापे” की वजह से भयंकर गुस्सा खदबदाता रहता है,तब सडकों पर वो सब होता है,जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता और सरकारें तो कतई नहीं….!! ......मणिपुर, झारखण्ड,छत्तीसगढ़ ,कश्मीर,बिहार,महाराष्ट्र,तेलंगाना,नदीग्राम……..!!.....कितने-कितने नाम लिए जाएँ.....कितने उदहारण गिनाएं जाएँ….!!अगर इस सबको गिनने या चेताने का कोई अर्थ ही ना निकले ……!!यदि ऐसा ही है तो आने वाले दिनों जनहित का कोई भी मुद्दा आन्दोलन किये बिना संसद तक पहुँचाया ही ना जा सके…..हिंसा किये बगैर कोई मुद्दा सुलझाया ही ना सके…..!! और दोस्तों मेरा विश्वास कीजिये कि यदि ऐसा हुआ तो सरकारें भी जनता के अतिशय क्रोध का शिकार बन जाएँगी……तब संसद भी नहीं रहेगी…..सच…..!!!!!
गुरुवार, अगस्त 06, 2009
रविवार, 2 अगस्त 2009

सब कुछ पगला क्यूँ रहा है....??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

सब कुछ पगला क्यूँ रहा है....??

पानी कहीं नहीं बरस रहा है....चारों तरफ़ हाहाकार मच चुका है....पिछले साल यही पानी जब झूम-झूम कर बरसा था...तब भी इसी तरह का हाहाकार मचा था....पानी इस तरह क्यूँ पगला जाता है...कभी तो बावला-सा मतवाला तो कभी बिल्कुल ही मौन व्रत....!!
दरअसल इसके जिम्मेवार हम ही तो हैं....इसके बनने के तमाम रास्तों में,इसके बहने के तमाम रास्तों में, इसके खिलने के तमाम रास्तों में हमने अपने नाजायज़ खूंटे गा दिए हैं....एक बिल्कुल ही स्वतंत्र "आत्मा" को अनेकनेक तरह से बाँध दिया है....जो पेड़ अपने असीम प्यार से इन्हें अपने घर से बांधे रहते हैं,या अपनी प्यार भरी मनुहार से रोके रखते हैं,उन पेडों को काट-काट कर अपना फर्नीचर बना लिया है,और ना जाने क्या-क्या दुर्गति कर दी है हमने पेडों की....!!....धरती को हमने बाँझ बना दिया है....धरती अपना कटा-फटा दामन समेटती सहमती-सकुचाती पानी को रोक तक नहीं सकती,रोके तो उसे ठहराए कहाँ ??....और ठहराए तो बिठाए कहाँ....हमने तो हर जगह मलीन और गंदली कर दी है....!!
अपनी नाजायज हरकतों से हमने धरती मा को गोया नेस्तनाबूद कर दिया है.....धरती की तमाम अभीप्सा....जरुरत....अपेक्षा...और अन्य तमाम तरह की अपनी जिम्मेवारियों से अपना पल्ला झाड़ लिया है हमने !!....यह बिल्कुल वैसे ही है,जैसे माँ-बाप अपने बच्चों को तमाम तरह की दुश्वारियों को झेलते हुए,ख़ुद किल्लत बर्दाश्त कर उनकी सब ज़रूरत पूरी करते हुए....उन पर अपना असीम प्रेम उड़ेलते हुए...उन्हें इंच-इंच बड़ा होते हुए देखते हुए....उन्हें सालों-साल पाल-पोस कर बड़ा करते हैं.....और बड़ा होते ही यही बच्चे....उन्हें "बोझ"करार कर
देते हैं....उन्हें "ठिकाने" लगा देते हैं....उन्हें सेंट्रिंग में डाल देते हैं....उनकी उपेक्षा करने लगते हैं.....ठीक वैसा ही हमने धरती के संग भी किया है.....और धरती के साथ जो भी कुछ हम करते हैं....उसका सिला हमें मिलने लगा है....पानी पगला रहा है... हवा पगला रहा है....मौसम पगला रहा है....!!.....नदियाँ पगला रही हैं....!!...और न जाने क्या-क्या उलट-पुलट हो रहा मौसमों में....कब गर्मी है....कब सर्दी...और कब बरसात.....किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा....!!??
अगर हम नहीं रुके तो आने वाले बरसों में इसका परिणाम और भी ज्यादा भयावह होने वाला है....धरती हमें चीख-चीख कर कह रही है....अब बस....अब बस....अब बस .....क्या यह चीख हमें सुनाई पड़ रही है....क्या यह आर्तनाद हमें कभी सुनाई पड़ भी पायेगा.....!!क्या हम खुद को रोक सकते हैं .....????

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

आईये दोस्तों !!करें देश की इज्ज़त की नीलामी....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
आईये ना प्लीज़ आप भी यहाँ,
हम आपकी भी नुमाईश कर देंगे!!
बेशक आपने खोले नहीं हों अपने कपड़े बाथरूम में भी कभी
लेकिन हम आपको यहाँ बिल्कुल नंगा कर देंगे!!
हम यहाँ सबका सामना सच से कराते हैं
बेशक इस सच से हम सबको अधमरा कर देंगे !!
नई लाइफ-स्टाइल में कुछ भी गोपनीय नहीं होता
हर कोई एक बार कम से कम अधनंगा तो होना ही चाहिए !!
और हर सच भले ही चाहे कितना ही कुरूप क्यूँ ना हो
उस भयावह कुरूपता को परदे पर उजागर क्यूँ नहीं होना चाहिए??
परदे पर कुरूपता सुंदर-वैभवशाली और परिपूर्ण लगती है!!
इसलिए हर कुरूपता को खोज-खोज कर हम इस परदे को भर देंगे !!
भारत के तमाम भाई और बहनों
अब भी तुम सबमें कुछ तमीज-संस्कार और परम्परा यदि बाकी बची है
तो यहाँ आओ, इस तमीज की कमीज हम ही उतारते हैं!!
सभ्यता नाम की कोई चीज़ अगर आदमी में बाकी बच रही है,
उसे इन्हीं दिनों में ख़त्म होना होना है !!
ये बात बाबा"........"जी बता कर गए हैं !!
अरे भारत-वासियों,अब तो आप सच से मुकर मत जाना !!
और गली-गली से-हर नाली और पोखर से गंदे-से-गंदे
हर सच की बदबूदार सडांध को ढूँढ-ढूँढ कर इस मंच पर लाना !!
हम सच बेचते हैं,जी हाँ हम सच बेचते हैं!!
सच के साथ हम और भी बहुत कुछ बेचते हैं!!
ईमान-धरम की बात हमसे ना कीजै,
ये सब कुछ तो हम मज़ाक-मज़ाक में ही बेच देते हैं...!!
तो फिर साहिबान-कद्रदान-मेजबान-मेहमान !!
आज और अभी इस मंच पर आईये,
और हमसे मज़ाक का इक सिलसिला बनाईये,
और अपनी इज्ज़त के संग ख़ुद भी बिक जाईये!!
नोट-देश की इज्ज़त की नीलामी फ्री गिफ्ट के रूप में ले जाईये !!
 
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