मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
किसी भी बात पर गुस्से में तोड़-फोड करना इस बात का इशारा है कि आप निहायत ही बददिमाग-बदमिजाज हैं और तमीज से परे हैं....और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसा भी कह सकते हैं कि आप खुद भी लातों के भूत है....
किसी भी बात पर गुस्से में तोड़-फोड करना इस बात का इशारा है कि आप निहायत ही बददिमाग-बदमिजाज हैं और तमीज से परे हैं....और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसा भी कह सकते हैं कि आप खुद भी लातों के भूत है....
अपने कार्य को मेहनत...और दुसरे के कार्य को ओरा-बारा कहना सामने वाले का अपमान है.....
जो लोग कभी किसी की राय को आत्मसात नहीं करते...वो जीवन में कभी आगे नहीं जा पाते....
आप समझदार हो सकते हो मगर इसका अर्थ यह कतई नहीं कि सामने वाला बावला है....!!
अपनी बात को सज्जनता पूर्वक-शालीनतापूर्वक नहीं कहना इस बात का परिचायक है कि आप खुद को बहुत सुपीरियर समझते हैं....किन्तु असज्जन मनुष्य की सुपिरीयती का कोई भी मायने नहीं होता....और ना ही उसे कोई भाव देता है....
हर व्यक्ति के काम के तरीके भिन्न होते हैं....मगर यह भिन्नता किसी को दुसरे से छोटा या बड़ा साबित करने के लिए नहीं होती.....
क्रोध वह अवगुण है,जो आपके समस्त गुणों को पूरी तरह से ढँक लेता है...यहाँ तक कि आप जबरदस्त मेहनती होकर भी अंततः नाकारेपन को प्राप्त होते हैं,क्योंकि इसी क्रोध के कारण आप सभी जगहों से दरकिनार कर दिए जाते हैं....
बहुत दम है फिर भी भारत में.....बस अपने चरित्र का दम दिखाईये....त्रियाचरित्र का नहीं....!!
गौरव की मिठाई खाने के लिए चरित्र का चाशनी होना अनिवार्य है.....!!!
तिरंगा शान से फहराने के लिए खुद के चरित्र का डंडा मजबूत होना चाहिए....!!
लोग सोच रहें हैं कि कुछ बदलेगा.....मैं जानता हूँ कि हम नहीं बदलेंगे.....!!!!
पागलों की तरह चीखे जाईये.....लोग आपको पागलखाने में बंद कर देंगे.....अब ज़रा सोचिये....आपस में मिलिए....तय कीजिये कि अब क्या करना है...मगर सबसे पहले अपना खुद का चरित्र कायम रखना है.....आपकी आवाज़ सिर्फ और सिर्फ तभी अपना वास्तविक वजूद रख पाती है....जब आपका खुद का चरित्र उस ऊँचाई पर कायम हो....जिस ऊँचाई तक ले जाना चाहते हैं आप अपने वतन को... मादरे-हिंद को....भारत शब्द कहने से कुछ होता है क्या आपके भीतर.....अब तक नहीं सोचा तो अब सोचिये....भारत खुद बदल जाएगा.....जब आप खुद को खुद से आंसुओं से धो लेंगे....अपनी आत्मा को निर्मल कर लेंगे...(निर्मल कहा है मैंने....निर्मल(ढोंगी) बाबा नहीं....!!
साथ-बासठ-पैंसठ साल से तमाम बाबा-बुद्धिजीवी-नेता-मीडिया आदि चीखे-चिल्लाये जा रहे हैं....मगर आज तक कुछ भी नहीं बदला.....मर्ज है कि बढ़ता ही जा रहा....तो अब तो सोचो भाई कि कि इस मर्ज का मूल क्या है....और कहाँ है.....बिना यह जाने हमने भारत नाम के एक जीव को सरकारी ऑपरेशन-टेबल पर पैंसठ साल से लिटाया हुआ है....और कोई इस मर्ज का मूल नहीं जानता....और अरबों व्यक्ति डॉक्टर बने हुए हैं....दोस्तो....डॉक्टर तो हम भोगियों की कृपा से हरेक क्षण बढते ही जा रहे हैं....मगर ईलाज करने से पूर्व उसका सिम्टम तो समझ लें.....बताऊँ क्या है यह...??हमारी खुद की आत्मा.....जी हाँ....भारत के ईलाज से पहले हमारी खुद की आत्मा कलुष को धो-पोंछ लेना अनिवार्य है....किसी भी देश में रहने वाले लोगों का खुद का चरित्र ही उस देश का कुल जमा गौरव होता है....!!
सदा दूसरों को कोसने वाले हम....अब ऐसा करने से कुछ बदलाव नहीं होगा....हम सब अपने नकारा चरित्र के कारण इस सारे सिस्टम की बर्बादी का पहला कारण हैं....हमारे भारत की अशिक्षा-लालच और जातिवादिता इस वोटतंत्र के नोटतंत्र में बदल जाने का मूल कारण है....समूचा भारत जब तक पूर्णरूपेण शिक्षित नहीं हो जाता और साथ ही जातिवादिता के अभिशाप को खुद से मिटा नहीं देता,तब तक भारत में किसी बदलाव की बात सोचना भी एक कपोल-कल्पना है....हाँ यह भी हो सकता है कि पढ़े-लिखे और भले लोग आगे बढ़कर किसी बदलाव के वाहक बने.....मगर किसी के ललकारने से नहीं अपितु खुद की आत्मा से धिक्कारने से प्रेरित होकर....बिलकुल स्वतःस्फूर्त.....!!!
निर्मल बाबा का प्रसंग निर्मल बाबा की अपनी करनी से ज्यादा हमारे चरित्र पर ज्यादा मौजूं बैठता है,आज भी हम भारतीयों का जिस तरह का चरित्र है,वह मेहनत से ज्यादा हराम की कमाई का चरित्र है,हर वह भारतीय जिसे चाहे जितनी भी तनख्वाह क्यूँ ना मिलती हो,मगर जब कभी अवसर मिले वह हरामखोरी से बाज नहीं आता यहाँ तक कि हरामखोरी की अपनी इसी प्रवृति के कारण वह अपनी कमाई बढाने के लिए तरह-तरह के टोने-टोटकों और चमत्कारों का सहारा लेने से भी बाज नहीं आता,मेहनत से जी चुराने और अपने जीवन की रोजमरा की समस्याओं से भागने या पलायन करने के हमारे फालतू के चरित्र में ही निहित है ऐसे बाबाओं की सफलता....जिस दिन भी हम अपनी समस्याओं को ऊपर वाले की नेमत,जीवन का अन्तर्निहित सत्य समझ कर व्यवहार करने लगेंगे,उस दिन इन बाबाओं का अस्तित्व खुद-ब-खुद मिट जाएगा....बल्कि बाबा बनने से पहले यह सौ बार सोचेंगे....!!
भ्रष्टाचार हटाओ या बाबा भगाओ....ये दोनों दरअसल एक ही बातें हैं....इससे बड़ा नारा अब मेरी नज़र में है.....हरामखोरी भगाओ.....इस नारे में एक खास बात पता है,क्या है...??कि यह हम सब भारतीयों पर लागू होता है.....!!!
सब कहते हैं....सिस्टम करप्ट है....सिस्टम करप्ट है....मगर यह सिस्टम क्या है.....किनसे बना है......कौन हैं सिस्टम में,,,,????मतलब सिस्टम जो है...वो कहीं और आया है.....शायद ऊपर कहीं से उतरा है....हमारे बीच से लोग नहीं गए हैं सिस्टम में....किसी और जगत से ही आये हैं....!!दोस्तों आज मैं एक बात कहना चाहता हूँ आप सबसे....जो हमारे बीच से वहाँ[सिस्टम]में जाकर बदल जाते हैं,,,,,और सिस्टम को बिगाड़ते हैं,उन्हें हटा क्यूँ नहीं देते....जो देश को बर्बाद करते हैं.....उन्हें मिटा क्यूँ नहीं देते......!!!
यह सब देखकर ऐसा मानने को जी चाहता है की यह देश आज भी सांप-संपेरों,साधू-बाबाओं आदि का देश है !! इस अर्ध-साक्षर देश के पढ़े-लिखे लोग तो और भी अनपढ़ प्रतीत होते हैं...जो किसी चमत्कार के साहारे अपनी समस्याओं का समाधान....और धन-प्राप्ति चाहते हैं....ऐसे मति-मंद और मति-भ्रम लोगों के देश में बाबा के रूप में ठग ना उभरें....तो ज्यादा आश्चर्य होगा....और क्या कहूँ...!!
ताकत का मतलब जानते हो आप....??
ताकत का मतलब यह होता है कि आप कभी भी-किसी को भी धौंसिया दो..मार दो....पीट दो...किसी का कुछ भी हड़प कर लो.....किसी की बहन-बेटी की इज्ज़त से खेल लो....यानी कोई भी अपकर्म कर लो....!!या होता है ताकत का मतलब...!!और इसे अगर थोड़ा और विस्तार दूं तो यह कहूँगा कि अगर बड़े देश हो तो किसी छोटे देश की कुछ जमीन या समूचा देश ही हड़प कर लो और फिर भी खुद को बुद्ध को मानने वाले कहो....उस छोटे देश के सारे संसाधनों पर अपना कब्जा कर लो अपने लोगों को वहाँ बसाकर वहाँ की संस्कृति ही बदल डालो....दुसरे छोटे देशों को या तो खरीद लो या भय के सहारे उनका दोहन करो....वहाँ के व्यापार पर छा जाओ....यह होता है ताकत का मतलब....!!क्यूँ दोस्तों क्या ख्याल है आप सबका इस मुद्दे पर....??(सिर्फ मजेदार बातों पर मजा लेने का या फेसबुक जैसे विराट साझा मंच को एक गंभीर मंच बनाने का....???)
ताकत का मतलब यह होता है कि आप कभी भी-किसी को भी धौंसिया दो..मार दो....पीट दो...किसी का कुछ भी हड़प कर लो.....किसी की बहन-बेटी की इज्ज़त से खेल लो....यानी कोई भी अपकर्म कर लो....!!या होता है ताकत का मतलब...!!और इसे अगर थोड़ा और विस्तार दूं तो यह कहूँगा कि अगर बड़े देश हो तो किसी छोटे देश की कुछ जमीन या समूचा देश ही हड़प कर लो और फिर भी खुद को बुद्ध को मानने वाले कहो....उस छोटे देश के सारे संसाधनों पर अपना कब्जा कर लो अपने लोगों को वहाँ बसाकर वहाँ की संस्कृति ही बदल डालो....दुसरे छोटे देशों को या तो खरीद लो या भय के सहारे उनका दोहन करो....वहाँ के व्यापार पर छा जाओ....यह होता है ताकत का मतलब....!!क्यूँ दोस्तों क्या ख्याल है आप सबका इस मुद्दे पर....??(सिर्फ मजेदार बातों पर मजा लेने का या फेसबुक जैसे विराट साझा मंच को एक गंभीर मंच बनाने का....???)
एक बात बताऊँ ...??....धरती पर सबसे ज्यादा सस्ता जमीर बिकेगा....कौडियों के भाव....और तब भी उसे कोई खरीदने वाला नहीं होगा,क्यूंकि उस बाज़ार में सब जमीर को बेचने वाले ही होंगे....खरीदार कहाँ से मिलेगा...!!
..आदमी (मतलब हमलोगों समेत)है ही ऐसा कि धरती को स्वर्ग बनाना चाहता है मगर दरअसल वो सिर्फ अपना घर स्वर्ग बनाने का प्रयास करता है....और धरती आदमी की इसी छीना-झपटी में उचाट-उदास-बेजान और अंततः नरक बनती जाती है....!!
एक बात है मगर.....चाहे कितनी भी गरीबी और भूखमरी क्यूँ ना हो धरती पर मगर रोटी के कारण अपराध नहीं होते,जैसा कि लोग कहते हैं कि क्या करें भाई पापी पेट का सवाल है.....सारे अपराध आदमी के लालच-वासना और अहंकार के कारण होते हैं....!!
जब भी कोई धार्मिक उत्सव हम मनाते हैं दोस्तों....तब ज़रा-बस ज़रा-सा यह सोच कर देखो कि उसमें सच में ही धार्मिकता कितनी और कैसी है....या कि है भी कि नहीं...!!
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