भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

मंगलवार, 27 मार्च 2012


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

कहते हैं एक राजा हुआ,और एक बार उसके दरबार में तीन ऐसे चोर एक साथ लाये गए,जिन्होंने एक ही तरह की चोरी की थी,मगर राजा ने तीनो को ऊपर से नीचे देखते हुए तीन प्रकार के दंड दिए तब उसके एक मंत्री ने इसका कारण पूछा तो राजा के कहे-अनुसार उन तीनों सजा पाए हुए चोरों का पीछा किया गया और तब यह पाया गया कि जिसे सबसे कम सजा मिली थी उसने रात ही आत्महत्या कर ली,दूसरा,जिसे थोड़ी ज्यादा सजा मिली,उसने खुद को एकांत में कैद कर लिया था मगर सबसे ज्यादा सजा जिसे मिली थी वह अब भी लोगों के बीच बोल-हंस-बतिया रहा था !!इस प्रकरण से लोगों को अपने प्रश्नों का उत्तर और राजा के न्याय की तर्कसंगतता का प्रमाण भी मिल गया !!
       मगर उपरोक्त उदाहरण के परिप्रेक्ष्य में आज के दौर को परखें तो हम पाते हैं कि हर कोई वह तीसरा चोर बनने को ही आतुर-आकुल-व्याकुल है और उसे इस बात की तनिक भी परवाह नहीं कि समाज तो समाज,कोई भी बन्दा उसके बारे में क्या सोचता-समझता और कहता है !!अपनी अंतहीन वासना में रत हर कोई गोया एक-दुसरे पर चिल्ला रहा है मगर उसे अपना गिरेबान नज़र नहीं आ रहा है ,इधर सारे पत्र-पत्रिकाएं अपने सम्पादकीय और अन्य स्तंभ काले-पर-काले किये जा रहे हैं,बरसों-बरस से तरह-तरह के हज़ारों-हज़ार घोटालों-गबन और तमाम तरह की मक्कारियों-बेईमानियों पर चौक-चौराहों-गली-नुक्कड़-कैंटीन-दफ्तर-घर-बाहर-फुटपाथ-सेमीनार-गोष्ठियों से लेकर संसद-विधानसभा तक में चर्चा पर चर्चा और निंदा पर निंदा हुई जा रही है मगर परिणाम...??टायं-टायं-फीस !!
        ये तीसरी तरह का चोर आज हर कहीं काबिज है और कोई कितना भी हल्ला करे या शोर मचाये या अनशन करे या आंदोलन मगर कहीं कुछ होने की संभावना ही नहीं...क्यूंकि चोर ही जब शोर मचाने लगते हैं तब सच-और झूठ फ्रेम से गायब हो जाते हैं और सब एक-दुसरे को पकड़ने-कूतने-धकियाने-लतियाने की कवायद और नौटंकी करने लगते हैं और इस नौटंकी का कभी कोई परिणाम नहीं निकलने को जब जब लीडर का चरित्र राष्ट्रीय तो क्या बचा...निजी चरित्र भी खत्म हो चुका है !!  
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