भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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अब अगर अन्ना को कुछ हुआ तो.......!!

बुधवार, 24 अगस्त 2011

अब अगर अन्ना को कुछ हुआ तो.......!!
             दोस्तों कल रात टीम-अन्ना के साथ हुई बातचीत को सत्ता के अहंकार ने विफल कर कर दिया है,क्योंकि सभी दलों के सांसदों के साथ हुई बातचीत में हमारे देश के,हमारी सेवा करने के लिए हमारे द्वारा चुने गए हमारे जन-प्रतिनिधियों ने बेमिसाल और अपूर्व एका दिखाया....उससे हमारे द्वारा नियुक्त किये गए इन जन-प्रतिनिधियों 
की स्वार्थ-मंशा बिलकुल साफ़-साफ़ उजागर होती है,और यह भी स्पष्ट होता है कि संसद और विधानसभाओं में भेजे गए हमारे जन-प्रतिनिधियों ने राजनीति को स्पष्ट तौर पर अपना पेशा बना लिया है और इस पेशे से पर्याप्त लाभ बटोरने के लिए अब वे किसी भी हद तक जा सकते अथवा उसे पार कर सकते हैं....और यही कारण है कि लगभग समस्त सांसदों के सूर इस भयानक मुद्दे पर जनता की राय के बिलकुल विपरीत हैं....उस जनता के हिमायतियों को ये नपुंसक-स्वार्थी और कायर लोग नकार और धिक्कार रहें हैं....जिनके बूते ये (हरामखोर!!)लोग आज सत्ता पर आसीन है....और मजा यह कि हमहीं पर शासन भी कर रहें हैं...मगर केवल यहीं तक होता तो जनता बर्दाश्त भी करती....मगर जिन्होंने बरसों-बरस से देश और राज्यों में शासन के स्थान पर सिर्फ-व्-सिर्फ लूट और खसोट ही की है....और तो और अब तो पिछले कुछेक बरसों से तो ये साहिबान तो मवालीगिरी भी करते चले आ रहे हैं...उस सत्ता का ऐसा दंभ...!!कि वह एक संत-एक निस्वार्थी सामाजिक कार्यकर्ता की बिना अन्न-जल ग्रहण किये हुए आन्दोलन की आवाज़ ही अनसुनी कर दे....??अगर ऐसा है तो अब हमें भी ऐसी सत्ता और इस जैसी समस्त सत्ताओं को उसकी औकात बता ही देनी चाहिए...!!और साथ ही अपनी....यानी अरबों की अपनी इस जनसंख्या की ताकत का अहसास भी.....!!
                  दोस्तों....अब तक तो हम इस देश का अन्न खाते आयें हैं...इसका दिया हुआ वस्त्र हमने पहना है....इसीकी मिटटी पर हमनें मल-मूत्र भी त्यागा है....मगर इसकी सरजमीं ने हमें आसरा दिया है....और इसके गौरव से हम खुद गौरवान्वित महसूस करते चले आयें हैं...तो फिर आज वक्त का यह तकाजा हो गया है....कि अब अपने छोटे-छोटे स्वार्थों को ज़रा-सी देर के लिए भूल-भाल कर इस देश के कूड़े-कचरे को साफ़ करने के लिए किये जा रहे इस आन्दोलन का साथ देने के लिए हम भी उठ खड़े हों....!!यह इस करून वक्त की पुकार है....कि एक व्यक्ति हमारे लिए खुद को मिटाने की कगार पर पहुँच चुका हो....और हम सब सिर्फ अपने स्वार्थ की नालियों में कीड़ों की तरह निमग्न रहें...अगर ऐसा हुआ तो इतिहास भले हमें माफ़ कर दे...मगर हमारे खुद के बच्चे तक भी हमें माफ़ नहीं करेंगे...!!
                अन्ना का आन्दोलन इस देश के इतिहास का वह मोड़ है...जहां से जनता ही इसे वह राह-वह दिशा प्रदान कर सकती है...जहां जाने और जिस जगह को पाने के लिए इस देश के विवेकवान लोगों की अंतरात्मा कराहती रही है....भारतमाता का ह्रदय छटपटाता रहा है...!!अरबों भूखे-नंगों लोगों के इस देश को और भी कंगाल बनाने पर उतारू रहें हैं सदा से मुट्ठी भर लोग....इन मूठी भर लोगों का क्या हश्र किया जाना चाहिए....अब यह हम सबको बैठकर तय करना ही होगा...और यह भी अभी की अभी ही....!!अब अन्ना हजारे सिर्फ एक व्यक्ति नहीं....एक नारा हैं....एक सैलाब है....एक आंधी हैं....एक तूफ़ान हैं....और अगर इस बहाव में हम सब नहीं उठ खड़े होंगे तो सच बताऊँ....??हमपर धिक्कार होगा...और वतन पर एक बहुत बड़ी प्रताड़ना...!!
                इसी वक्त इस आन्दोलन को एक भीषण जन-आन्दोलन में तब्दील कर डालना होगा...व्यवस्था परिवर्तन-सत्ता-परिवर्तन....और अपने खुद के आचरण में भी आमूल-चूल परिवर्तन के लिए अब हमें अपने मन में ठान लेनी चाहिए....!!एक बार इस सत्ता के अहंकार को उसकी औकात बताने के लिए एक दिन के लिए समूचा देश बंद कर अरबों लोगों को एक साथ सड़क पर आ जाना चाहिए....हरेक सांसद-विधायक-ठेकेदार-अफसर और हमारी दृष्टि भी जो भी भ्रस्थ कर्मी है....उसका घेराव कर सत्ता को सुस्पष्ट सदेश देना ही होगा कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है....कि सिंहासन खाली करो जनता आ रही है....और अब भी तुम नहीं हते या बदले तो यही जनता तुम्हारे सीने पर मूंग डालेगी.....जिसकी छाती पर तुम इतने बरसों मूंग डालते आये थे....!!
                 जाते-जाते एक नसीहत सत्ता और उसके सहयोग से नाच रहे समस्त लोगों को कि बेशक अब उनकी नज़र में अन्ना का अनशन उनकी अपनी निजी समस्या है...मगर अन्ना को अब कुछ भी हुआ तो......तो....तो....!!!!
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