भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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जश्न मनाइए दोस्तों....कि अब तो हम आजाद हैं !!

रविवार, 14 अगस्त 2011

जश्न मनाइए दोस्तों....कि अब तो हम आजाद हैं !! 
                     दोस्तों,हर साल की भांति इस साल भी यह आज़ादी का दिवस हमारे माथे पर खडा है.हमारे चारों और देश-प्रेम के गीत थोक के भाव में सुनाई दे रहे हैं और संजोग ऐसा है कि समस्त भारत में इसमें हो रहे घोटालों के गूँज और इसकी अनुगूंज समस्त विश्व में हो रही है.भारत आज चरित्र के सबसे निचले पायदान पर खडा है और भ्रष्टतम  देशों का सिरमौर !!सिरमौर का क्या अर्थ होता है,क्या वो आप जानते हैं....सिरमौर का अर्थ होता है सबसे ऊपर....आपके माथे-सर से इतना ज्यादा ऊपर कि जिसे देखने के लिए आपको आपना माथा या गर्दन ऊपर उठानी पड़े और यह शब्द प्रमुखतया गौरव के अर्थों में ही प्रयुक्त किया जाता है !!वह तो भला हो भारत के शासक वर्ग और उससे जुड़े तमाम तरह के सफेदपोशों का,जिन्होंने समस्त पवित्र शब्दों का अर्थ तो गलीच और समस्त घटिया शब्दों के अर्थों को जन-जन में ऐसा व्याप्त कर दिया है कि अब यही शब्द हर किसी की जुबां पर हैं....आम आदमी हो या मीडिया...या अन्य कोई भी हो !!
कहीं-कहीं आन्दोलनों की भरमार भी है,जिसके परिणाम हम आने वाले दिनों में पायेंगे किन्तु इस सबके बीच एक घोर चिंता का विषय है जिस पर किसी की दृष्टि ही नहीं जाती !!
                  दोस्तों हर जगह तरह-तरह की शक्ल में हो रहे इन आन्दोलनों में बहुतेरे ऐसे लोग भी शरीक हैं,जिनके विरुद्द यह आन्दोलन  है,अपने ही खिलाफ हो रहे इन आन्दोलनों में बड़े ही मजे से शरीक इन लोगों के लिए चित्त और पट्ट दोनों ही इनकी है!!यहाँ तक कि जो मीडिया इस सबको हवा देता है और जो मीडिया भ्रष्ट लोगों का नकाब उतारता है...वो मीडिया भी एक बहुत बड़े अंश में उसी वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सेदार है और सच तो यह कि जिस तरह मीडिया का यह प्रभावशाली वर्ग चलता है वो सत्ता में हिस्सेदारी के बगैर संभव भी नहीं है और मज़ा यह कि सबकी पोल खोलने वाले इस विचित्र तंत्र की पोल खोलने वाला कोई है भी नहीं....इस तरह आप देखोगे कि जो जितना ज्यादा हरामखोर है (देश के प्रति)वो उतना ज्यादा चीख रहा है-चिल्ला रहा है....और इतना ज्यादा चीत्कार कर रहा है कि लगता है उससे ज्यादा पवित्र कोई अन्य है ही नहीं !!
दोस्तों दरअसल जनता को कुछ भी नहीं पता होता...उसे सिर्फ वही पता चल पाता है जो छपता है...जो दिखाई देता है...यानी कि जो उसके कानों और आखों के रास्ते सबसे ज्यादा गुजरता है...अगर आँख खोलने वाले ज़रा सी भी आँख खोल कर देख पायें तब उन्हें पता चले कि पत्रकारिता के जगत में भी उतना ही बड़ा गोरखधंधा है,जितना नेताई के या किसी भी सफेदपोश के क्षेत्र में....सबसे ज्यादा पोल खोलने वाले या शब्दों की सबसे ज्यादा जुगाली करने वाले कुछ ऐसे लोग भी पाए जायेंगे जिनके खुद के पास उनकी कमाई का हज़ारों गुना धन और संपत्ति है,वो जिसकी पोल खोलते हैं वो अपनी तिजोरी खोल देता है और ऐसा होते ही पोल खोलने वाला आँख,मूंह,नाक,कान और सभी कुछ के द्वार बंद कर लेता है...हराम की खाने वाले के बाद वह उससे भी ज्यादा कमीना और थेथर हो जाता है,जिसकी पोल खोली थी उसने....!!
                         अभी-अभी जिस पत्रकार की खबर(आलेख)पढ़कर मैं उठा हूँ,उसने भारत के बीते बीस सालों के भ्रष्टाचार का जायजा लेते हुए सन इक्यानबे-छियानबे-अनठानबे-और दो हज़ार फलां-फलां-फलां समय के प्रमुख घोटालों की चर्चा करते हुए कई नाम भी लिए और कई नामों को जानबूझकर छोड़ भी दिया...??शायद जनता के स्वयं समझे जाने के लिए !!बहुत बार बहुत से नाम संबंधों की वजह से छोड़ दिए जाते हैं....जिन्हें कोई विपक्षी पत्रकार उघाड़ेगा....मगर बहुत से नाम कभी सामने नहीं आ पाते जिन्होंने हर किसी को कृतार्थ किया होता है....हर राजनीतिक-पत्रकारिता-अकादमिक-संस्थानिक और हर उस ऐसे शख्स या संस्था को,जो उसे "उघाड़"सकता है !!जो समझदार बिक जाते हैं...उनका घर "घर"बन जाता है...जो बेवकूफ नहीं बिकते उन्हें किनारे छोड़ दिया जाता है...उनकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बन कर रह जाती है.....जो भी हो मगर समय-असमय सब उघाड़ दिए जाते हैं....एक बच जाता है तो पत्रकार भर....जो कभी इधर-कभी उधर का होकर अपनी गोटी चलता अपनी रोती सेंकता रहता है...यह मजाक नहीं है कि हज़ार-दो हज़ार के घोटालों पर सबसे ज्यादा चीख-पुकार मचाते हुए किसी ऐसे ही पत्रकार की पोल को आप खोल पाओ तो आप पाओगे कि साला वो भी दो-चार सौ करोड़ का मालिक है...और उसे आप मंच पर हार पहना रहे हो,उसे फेलोशिप दे रहे हो,उससे जनता को भाषण पलवा रहे हो.....मीडिया वाले बंधू यह भली-प्रकार जानते हैं....आन्दोलन करने वाले थोड़ा-बहुत.....मगर आम जनता तो बिलकुल नहीं...!!??
                         
                   इसीलिए मुझे डर है दोस्तों कि इस रास्ते यह आन्दोलन उन्हीं के हाथों के क्लच और एक्सीलेटर में ना आ जाए !!और अक्सर होता भी यही है कि जब आप कोई अच्छा काम करते हो तो कई-एक ऐसे बुरे लोग भी भी उसमें शरीक हो जाते हैं,जिन्हें आप ठीक से नहीं जानते....वो आपको चन्दा देता है...आपकी मदद करता है....आपसे चिकनी-चुपड़ी बातें करता है....दरअसल दोस्तों,सारे नटवरलाल लोग ऐसे ही होते हैं....बातें ही तो उनका हथियार होती हैं....और इस तरह जनता कई बार उसे महान बना डालती है,जो बरसों बाद जेल की सलाखों के बीच सड़ता हुआ नज़र आता है...और उसका दोष ऐसा होता है,कि कोई कुत्ता भी उसपर "मूतना"ना चाहे !!जनता उसकी शक्ल भी ना देखना चाहे....उसपर थूकना तो दूर....समाज में...शासक वर्ग में...हमारी नुमाईंदगी करने वाले...उनसे जुड़े ठेकेदार-कोओपरेट और खासकर पत्रकारिता का अंधा जगत एक हद तक इसी तरह का है....!!
                           इस तरह कोई आन्दोलन कर रहा....उसकी पीठ के पीछे बैठा कोई उसकी पीठ थपथपा रहा है....उसके चरण छु रहा है....उसके सुर -में-सुर मिला रहा है....जनता में उस आन्दोलनकारी के साथ अपना चेहरा दिखा रहा है,अपनी फोटो खींचा रहा है....(??)  आन्दोलन करने वाले का ह्रदय गदगदा रहा है....और जनता तो बावली है...वो भला क्या जाने....जब आन्दोलनकारी ही यह ना जाने कि  दरअसल क्या हो रहा है....उसके आस-पास ही ऐसा व्यक्ति मौजूद है जो उसके लिए गड्ढा खोद रहा है....और कोई नहीं जानता कि इस तरह वो उस आन्दोलन की कब्र बना रहा है....!!इसलिए जश्न मनाईये दोस्तों की अब हम आजाद हैं....!!
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http://baatpuraanihai.blogspot.com/


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