भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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kya kahun......??

रविवार, 29 अगस्त 2010

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

चीज़ें जब पढ़ते-सुनते-देखते हैं हम
 तो हमारी आँखें भी चमकने लगती हैं ना....??
जब कुछ अच्छा होता है हमारे सामने...
तो खुश हो जाते हैं हम.....है ना....??
अच्छाई अकसर हमारे दिल को कोई सुकून-सा देती है...है ना....??
अच्छाई हमारे भीतर ही कहीं होती है....ये भी सच है ना....??
फिर अच्छा होना हमारी तलाश क्यूँ नहीं होती....??
फिर अच्छाई हमारी मंजिल क्यूँ नहीं होती....??
हम क्यूँ है यहाँ....इस धरती पर दोस्तों....
अच्छाई अगर सचमुच हमारे भीतर ही कहीं है....
तो हमारे आस-पास का माहौल ऐसा क्यूँ है....
अगर हम सचमुच ही अच्छे हैं....
तो अच्छाई हम-पर हमेशा तारी रहनी ही चाहिए....
और हमारी इस अच्छाई से ये धरती हरी-भरी रहनी ही चाहिए....!!!
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4 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!

Unknown ने कहा…

hum achchayee chahte toh hain par,sada doosroin se umeed rakhte hain....yahi mushkil hai....sarwpratham hum doosroin ko dena sikhein.....tabhi yeh dharti swarg ka roop legee......

Unknown ने कहा…

jo badal ghumad pada wah hi toh krishn prem ko pane ki lalsa hai....thnx! 4 sharing.....

Shabad shabad ने कहा…

बिलकुल सही कहा है आप ने .....
अच्छाई तो हमारे भीतर ही है लेकिन...????
जैसे कई बार घर में पड़ी कोई वस्तु हमें नहीं मिलती तो हम उसे खोजने लगते हैं ...कहाँ रखी है.....और वह मिल जाती है....
शायद इसी तरह अपने भीतर भी अच्छाई को खोजना होगा....लेकिन हम में से बहुत ऐसा करने की कोई जरूरत ही नहीं समझते क्योंकि उन्हें बुराई की इतनी आदत जो हो गई है....इसी लिए अच्छाई भीतर होते हुए भी कहीं खो गई है।

 
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