भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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तुम सब मेरे पास मेरे पास आ जाओ ना.......!!

शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
तुम सब मेरे पास मेरे पास आ जाओ ना.......!!
ए हवा,थोडा-सा मेरे पास तो आ ना.....
मेरे कानों को तेरी सरसराहट का अहसास तो होने दे....
मेरे गालों को सहला दे ना ज़रा....
ए छाँव,मेरे पहलू में आकर बैठ ना....
मुझे अपने आँचल की पनाह तो दे....
ए चुलबुली धूप,अब तू क्यूँ रोने लगी....
थोड़ी देर मुझे अपनी बहन(छाँव)के संग खेलने दे,
रास थोड़ी ना रचा रहा हूँ मैं उसके संग...
ए बादल,तू क्या टुकुर-टुकुर उधर से ताके जा रहा है..
तू भी आ जा....आ मेरे कंधे पर बैठ...मस्ती कर....
मेरे भी जिस्म को दरअसल तेरी ही फुहार चाहिए...
तेरे जैसे कोई मुझे मेरे आर-पार चाहिए....
ओ नदी...तू मुझसे अनजानी कैसे हुई भला...
मेरे भीतर से होकर बह ना रे पगली....
मेरे सीने को तेरी गीली-सी ठंडक चाहिए यार....
ओ पहाड़....मुझे भी यार अपने जैसा बना डाल ना...
बिना झुके मैं सबको अपने ऊपर ले सकूँ....
अबे ओ चाँद....बड़ा मुस्कुरा रहा है तू....
व्यंग्य कर रहा है ना तू मुझपर,,,,
अबे मैं झूठ नहीं बोलता....सच यार....
मुझे तुझसे बहुत प्यार है....बड़ा सारा.....
ओ तारों...मेरे दामन में सिमट आओ ना प्लीज़...
मुझे प्रकृति की पूजा के लिए तुम्हारी दरकार है...
ओ समय...मुझे ले जाने की खातिर इतना भी मत फुदक 
मेरा समय जब आयेगा ना....
तब मैं तुझे खुद बुला लाउंगा....
मैं अपने साथ तुझे वहां ले चलूँगा....
जहां से शुरू होता है तेरा खुद का वुजूद....!!!!



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