भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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एक था बचपन

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

एक था बचपन !!
बड़ा ही शरारती,बड़ा ही नटखट !!
वो इतना भोला था कि
हर इक बात पर हो जाता था हैरान
बन्दर के चिचियाने से,तितली के उड़ने से
मेंढक के उछलने से,चिड़िया के फुदकने से !!
वो बड़ो को बार-बार करता था डिस्टर्ब.....
काम तो कुछ करता ही नहीं था,और साथ ही
खेलता ही रहता था हर वक्त !!
कभी ये तोड़ा,कभी वो तोड़ा और कभी-कभी तो
हाथ-पैर भी तुडवा बैठता था खेल-खेल में बचपन
तो कभी कुछ जला-वुला भी लेता था अनजाने में बचपन
बचपन कभी किसी की कुछ सुनता भी तो नहीं था ना....!!
बस अपनी चलता था और तब.....
मम्मी की डांट खाता तो सहम-सहम जाता था बचपन
पापा मारते-पीटते तो सुबकने लगता था बचपन
मगर अगले कुछ सेकंडों में ही सब कुछ भूल-भुला कर
वापस खेलने लगता था बचपन !!
और मम्मी की गालों की पप्पी ले लेता
और पापा के गले में झूल जाता था बचपन...!!
सब कुछ तुरत ही भूल जाता था बचपन
मम्मी की डांट....पापा की मार.....
और बदले में वह उन्हें देता था
अपना प्यार....अपना दुलार.....!!

बचपन की बातें ख़त्म....
और बड़प्पन की शुरू.....!!
बड़ों के बारे में तो बस इतना ही कहना है कि
जिंदगी बचाई जा सकती थी
अगरचे बचा कर रख लिया जाता
अपना ही थोडा सा भी बचपन.......!!!!
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7 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और मनमोहक रचना लिखा है आपने! सही में बचपन के वो सुनहरे दिन हर पल याद आते हैं- दादा दादी का प्यार, मम्मी पापा का डांटना फिर प्यार से समझाना, दोस्तों के साथ खेलना, सुबह उठकर स्कूल जाना और न जाने कितनी सारी बातें जो फिर कभी लौटकर नहीं आ सकता पर उन सुनहरे पलों को हमेशा याद करते हैं ! आपकी इस लाजवाब रचना को पढ़ते हुए मैं आपने बचपन के दिनों में चली गयी! इतना बढ़िया लगा कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती ! इस बेहतरीन और उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

कडुवासच ने कहा…

...सुन्दर रचना!!!!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बचपन की बातें ख़त्म....
और बड़प्पन की शुरू.....!!
बड़ों के बारे में तो बस इतना ही कहना है कि
जिंदगी बचाई जा सकती थी
अगरचे बचा कर रख लिया जाता
अपना ही थोडा सा भी बचपन.......!!!!

आज ही आपके बारे सोच रही थी और आप आ गए .....!!

क्या बात है कुछ उदास से लग रहे है पंक्तियों में .....???

Fauziya Reyaz ने कहा…

pehle to ye ki aapne as usual achha likha hai...

ab baat ho jaaye mudde ki....bhootnath ji aap gayab kahan hain...mere blog par sadiyon se nahi aaye...ab sharafat se aaiye aur pichle kuch posts par bhi reham kariye...aur haan agar phir lapata hue to hum bhi bhoot pakadne wale ojha ko bula lenge

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बचपन की बातें ख़त्म....
और बड़प्पन की शुरू.....!!
बड़ों के बारे में तो बस इतना ही कहना है कि
जिंदगी बचाई जा सकती थी
अगरचे बचा कर रख लिया जाता
अपना ही थोडा सा भी बचपन.......!!!!

बचपन की मनमोहक चित्रण और अंत में बड़प्पन का यथार्थ ...एक सच्चाई..और मासूम सी रचना. बधाई.

डॉ 0 विभा नायक ने कहा…

bhootnaath ji, kavita bahut pyari hai, ise padhkar,thoda sa gunkar,
mahsoos hota hai ki bachpan ke bina ye zindgi kitnee khali hai....

vah vah vah, aapki kavita padh kar dekhiye hum bhi kavi ho gaye,....

कुलवंत हैप्पी ने कहा…

रिधम के ब्लॉगर पर भूतनाथ देखता तो हँसते हँसते लोट पोट हो गया।

बचपन-कविता एक दम मस्त।
एक दम मस्त।

 
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