भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

महँगी शिक्षा से ठहर जाएगा देश !!

शनिवार, 6 मार्च 2010


पिछले दो सालों में जिस रफ़्तार से महंगाई बढ़ी,उस रफ़्तार से लोगों की कमाई नहीं बढ़ पाई,सिर्फ राशन-खर्च से बेहाल आम आदमी इस कदर परेशां है कि और किसी खर्च के बारे में सोच पाना उसके बस के बाहर हो गया है.तिस पर स्कूलों में होती दो-गुनी-तिगुनी फीस-वृद्धि ने सबकी कमर जैसे तोड़ कर रख दी है.
ज्ञातव्य है देश में अभी पिछले वर्ष ही स्कूलों की फीस दोगुनी तक बढ़ा दी गयी थी,मगर जैसे उस वृद्धि से स्कूल मैनेजमेंट का दिल नहीं भरा और इस साल फिर से स्कूलों की फीस में एक बार फिर विभिन्न फंडों में सौ-पचास रूपये बढ़ा कर तीन-चार सौ रूपये तक प्रति-माह तक बढ़ा दिए गए हैं,इसके अलावा सेसन फीस को दोगुना-तिगुना किया जाना अलग है.
भारत विश्व के कुछेक सर्वाधिक अनपढ़ लोगों की संख्या के देश की लिस्ट में शुमार है.गरीबी की वजह से लोग शिक्षा के बारे में सोचना तो दूर,दो-जून रोटी भी जुटा पाने में असमर्थ होते हैं,साथ ही यहाँ की एक बहुत-बड़ी आबादी निम्न-मध्यम आय-वर्ग वाला है,जो हैण्ड-टू-माउथ की स्थिति में जीता है.थोडा-बहुत कमा-खाकर कुछेक अन्य शौक भर पूरे कर लेने वाला वर्ग,जिसके लिए अपने बच्चों के लिए एक अच्छे से स्कूल में पढ़ा पाना पहले से ही एक भारी-भरकम बोझ के सामान है,तिस पर दो सालों तक लगातार फीस-बढ़ोतरी उन्हें अपने ऊपर एक अन्याय के समान लग रही है.क्या यह शिक्षित-भारत के सपने की राह में एक रोड़ा नहीं है ??
एक और बात यह है कि महंगाई क्या स्कूलों के लिए ही अतिरिक्त रूप से बढ़ी है ??क्या स्कूलों को दूसरे अन्य धंधों की भांति इस प्रकार अपनी मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया जाना चाहिए??क्या स्कूल अब सिर्फ अनाप-शनाप कमाई के "मॉल" हैं??क्या सच में स्कूल के टीचरों को इस वृद्धि के अनुरूप वेतन दिया जाता है ?? क्या स्कूल चलाने की लागत इस वृद्धि के अनुपात में है ??
एक सवाल और भी उठता है कि जिन माँ-बापों ने अपने बच्चों को किसी स्कूल की फीस को अपनी आय के अनुरूप पाकर दाखिला दिलवाया है,वो अब इस अप्रत्याशित स्थिति पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करें,क्या वो अपने बच्चों को वहां से वापस निकाल लें??और सरकारी स्कूलों के सुरक्षित-सुन्दर प्रांगण में छोड़ आयें??
किसी भी देश का कोई नागरिक अपने बच्चों को अगर अच्छी शिक्षा दिला पाता है तो एक तरह से वो अपने देश की सेवा ही करता है !!और एक ऐसा देश जो अपनी अशिक्षा के लिए पहले से ही बदनाम है,उसके लिए तो यह बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है,इसलिए बच्चों के अभिभावकों के साथ ही यह बात देश के कर्णधारों के लिए भी उतनी ही चिंता-जनक होनी चाहिए,मगर उनके बच्चे तो विश्व के किसी भी कोने में पढ़ पाने समर्थ हैं,इसलिए उनको कोई खाज नहीं नहीं उठती!!
कहीं ऐसा ना हो कि यह एक अभिशाप बन जाए भारत के लिए,भारत,जो आज आई.टी. के क्षेत्र में एक सिमौर राष्ट्र बना हुआ है,उसकी यह पोजीशन शिक्षित होनहारों के कारण ही हो पायी है,और यह अमीर लोगों के अलावा गरीब लोगों में भी किसी प्रकार पैदा हो पायी शिक्षा की भूख के कारण ही संभव हो पाया है,ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार की अतार्किक और अमानवीय वृद्धि कहीं एक-बार फिर भारत को कई सालों पीछे धकेल कर इसे वापस सांप-संपेरों और बिच्छुओं का देश ना बना डाले !!
....यह सोचने की आवश्यकता आज देश के नेताओं की ही है,अगर वो अपने संकुचित दड़बे बाहर आकर देख सकें तो !! ध्यान रहे कि आई.टी.के क्षेत्र में चीन आज भारत से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है,बल्कि वह बहुत ही ज्यादा तेजी से आगे बढ़ रहा है,उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि वह इस क्षेत्र में भी कहीं भारत को खा ही ना जाए....आज यह अनुमान-भर लग सकता है,लेकिन स्थितियों को देखते हुए इस अनुमान को सच होने में ज्यादा देर नहीं है...!!
स्कूलों में होती फीस-बढ़ोतरी पर बिना देर किये सोचे जाने की जरुरत है,अगर सच ही यह बढ़ोतरी महंगाई-वृद्धि के अनुरूप है तब भी बजाय फीस-बढ़ोतरी के उन्हें सरकार द्वारा शिक्षा-सब्सिडी दिया जाना देश की सेहत के लिए ज्यादा अच्छा होगा !! क्योंकि शिक्षा का उजाला सब तरफ फैले और सबको ही इसकी रौशनी प्राप्त हो तब ही किसी राज्य का कल्याणकारी स्वरुप अपना सही अर्थ पा सकता है और अपने नागरिकों का हित दरअसल राज्य का हित ही होता है,इसलिए सभी राज्य-सरकारों से यह अपेक्षा है कि इस दिशा में त्वरित करवाई कर शिक्षित भारत सम्पूर्ण संप्रभु भारत ऐसा विचार कर तदनुरूप नव-नौनिहालों का भविष्य सुनिश्चित करे !!
Share this article on :

1 टिप्पणी:

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! सुन्दर प्रस्तुती!

 
© Copyright 2010-2011 बात पुरानी है !! All Rights Reserved.
Template Design by Sakshatkar.com | Published by Sakshatkartv.com | Powered by Sakshatkar.com.