भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!

गुरुवार, 10 सितंबर 2009


यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है
मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!
कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगी
हर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!!
अब तो मैं अपने ही लहू को पीऊंगा
इक दरिंदगी भरी अब मेरी प्यास है!!
मेरे भीतर तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा
मुझपर ऐ दोस्त अंधेरों का लिबास है!!
हर तरफ पानियों के मेले दिखलाती है
उफ़ ये जिंदगी है या कि इक अजाब है!!
हर लम्हा ऐसा गर्मियत से भरा हुआ है
ऐसा लगता है कि हयात इक आग है !!
हम मर न जाएँ तो फिर करें भी क्या
कातिल को हमारी ही गर्दन की आस है!!
रवायतों को तोड़ना गलत है "गाफिल"
यही रवायतें तो शाखे-दरख्ते-हयात हैं!!
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4 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

अब अंधेरों का लिबास उतार भी दीजिये ...यूँ आग को लपेटे ना रखिये ..
बहुत शुभकामनायें ..!!

KK Yadav ने कहा…

Bahut sundar rachna..bas yun hi likhte rahen..mubarakvad !!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बात पुरानी में दिखी नई बात |मर न जाएँ तो फिर क्या करें ""यूं तो घबराके वो कह्देते हैं मर जायेंगे ,मर कर भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे ""मेरे चरों तरफ आग है -""दहकता ख्याल ,तपता बदन ,आग ही आग ,कहाँ पे छोड़ गया कारवां बहारों का ""मेरे भीतर तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा =""अपने हाथों की लकीरें तो दिखादूं लेकिन ,क्या पढेगा कोई किस्मत में लिखा ही क्या है ""कातिल को हमारी गर्दन की आस है -""दौनों ही पक्ष आये हैं तैयारियों के साथ ,हम गर्दनों के साथ है वो आरियों के साथ ""

vijay kumar sappatti ने कहा…

bhoot bhai ,

bahut hi acchi gazal , bahut si baate kahati hui aur dil ko chooti hui ..

meri badhai sweekar karen..

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

 
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