भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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एक बार की बात है...... उल्लू राज की बात है......!!

मंगलवार, 15 सितंबर 2009


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
एक बार क्या हुआ कि जम्बुद्वीप के भारत नाम के इक देश में उल्लू नामक एक जीव का राज्य कायम हो गया.....फिर क्या था,पिछले सारे कानून बदल दिए गए...नए-नए फरमान जारी किए जाने लगे, बाकी चीज़ों की बात तो ठीक थी मगर जब "उलूकराज" ने जब राज्य की जनता को यह फरमान जारी किया कि अब से दिन को रात और रात को दिन कहा जाए....तब लोगों को यह बड़ा नागवार गुजरा.मगर चूँकि इस देश के लोगों को राजाज्ञा की किसी भी आदेश का नाफ़रमानी करने की आदत ही ना थी....सो टाल- मटोल करते हुए भी आखिरकार लोगों ने असंभव सी लगने वाली यह बात भी शिरोधार्य कर ली...!! आख़िर कार अपने पुरखों की संस्कृति और परम्परा की अवहेलना ये लोग कर ही कैसे सकते थे.....एक बात और भी थी कि इस देश के लोगों को अपनी समूची परम्पराओं,चाहे वो कितनी भी गलीच या त्याज्य क्यूँ ना हों,का पालन करना अपने देश के गौरव-भाल को ऊँचा रखने सरीखा प्रतीत होता था....इस कारण भी लोगों के मन में राजाज्ञा को ठुकराने की बात मन में नहीं आई !!
लेकिन प्रथम दिवस से ही इस आज्ञा को मानने में व्यवहारिक कठिनाईयां शुरू हो गयीं, सवेरे सोकर उठते ही राजा के सिपाहियों ने लोगों को वापस घर में धकेलना शुरू कर दिया कि जाओ अभी राज्य के अनुसार रात होनी शुरू हुई है और इस समय किसी को कोई भी कार्य करने की आज्ञा नहीं दी जा सकती....लोगों को हर हालत में अभी सोना ही सोना होगा.....अब बेचारे लोग-बाग़ जो अभी-अभी अपनी नींद भरपूर पूरी करके उठे ही थे,सब-के-सब बगलें झाँकने लगे....सोयें तो कैसे सोयें....मगर अब कुछ किया तो जा सकता नहीं था....लोगों में विरोध करने की शक्ति तो थी ही नहीं....वापस सोने को उद्यत हुए....मगर नींद किसी को भला कहाँ आती....दिन-भर करवट बदल-बदल कर लोग पैंतरे बदलने लगे और मारे भूख के सबका बुरा हाल......बच्चे आदि भूख की जोर से रोयें,सबको शौच की तलब ,मगर हर घर पर राजा के सैनिकों का पहरा......बाप-रे-बाप......तौबा-तौबा ......!!और जब शाम हुई तो घबरा कर सब लोग बिस्तर से उठना शुरू हुए और फटा-फट सब दिन-चर्या और "शौच-चर्या"के कार्य निपटाने शुरू किए लेकिन...... लेकिन अब सबके पेट की हालत नाजुक हो चुकी थी...... सबकी हालत यह कि सब के सब आलस से भरे और उंघते हुए दिखायी देते थे....कोई कार्य करना जैसे दूर की बात थी.....अब हालत यह कि कोई इधर अंगडाई ले तो कोई उधर,कोई उबासी ले,तो कोई बदन तोडे…कुल-मिलाकर यह कि किसी के भी लिए कोई कार्य करना अत्यन्त कठिन-सा हो गया,बल्कि असंभव प्रायः हो गया ……खैर एकाध-दिन तो लोगों के राम-राम करते यूँ ही बीते,फिर आदत तो पड़नी ही थी,सो इस सबकी आदत भी लोगों को पड़ने लगी…राजा के सिपाही जो सर पर सवार रहते थे…!!
दिक्कत तो यह भी थी ना कि बहुत सारे काम हर हालत में दिन में ही सम्भव थे…किसी का बाप भी उन्हें रात में संपन्न नहीं कर सकता था…जैसे खेती-बाड़ी पशुपालन इत्यादि…मगर महाराज उल्लू को समझाता तो कौन समझाता…सब जगह उसी के आदमी…..कौन जाने कि भला कौन उनका गुप्तचर ही निकल जाए…और उल्लू जी को इस बात से भी क्या मतलब कि खेती-बाड़ी किस तरह की जाती है,और इसी प्रकार और भी अन्य कार्य,जो सिर्फ़ दिन में ही निपटाए जा सकते हैं…दुनिया के सभी जीवों में यही एक बात समान रूप से लागू है कि अगर ख़ुद को कोई फर्क ना पड़ता हो तो दूसरा किस तरह जीता है इस बात से किसी को कोई मतलब नहीं होता….हर कोई यही चाहता है कि “दूसरे” के किसी कार्य से उसे ख़ुद को कोई व्यवधान ना पहुंचे….!!

उल्लू राजा ने सभी जगह अपने आदमी फिट कर दिए,हर महत्वपूर्ण जगह पर अपने "वफादारों"को बिठा दिया,कहीं दूसरे उल्लू…कहीं चमगादड़….कहीं लोमडी….कहीं सियार….और इस तरह सभी मंत्रालयों….इस प्रकार इस सभी सम्मानित पदों को इसी तरह के तमाम निशाचर जीव ही सुशोभित करने लगे….सर्वत्र अंधेरे या यूँ कहूँ कि "अंधेरगर्दी"का राज कायम हो गया….बेशक किसी भी मनुष्य को यह राज “सूट” नहीं कर रहा था….और ना ही यह सब उसके स्वभाव के अनुकूल ही था….मगर अपनी सुखपूर्वक रहने...अपनी दिनचर्या में किसी प्रकार का खलल ना पड़ने की इच्छा और अपनी कायरता के चलते वह इन परिस्थितियों में रहने पर ख़ुद को विवश कर लिया था….या यूँ कहूँ कि वह मनुष्यता ही भूल गया था….और धीरे-धीरे ख़ुद भी उल्लू या इसी भाँती का निशाचर याकि पशु ही बन चला था…सभी उल्लुओं को वाह महाराज....वाह महाराज कहने का आदि बन चला था… अपनी अकर्मण्यता के कारण वाह उन्हीं उल्लूओं की हुक्म-उदूली करता था,जिनके चलते उसका जीवन इस कदर तबाह हो गया था……!!....उन्हीं निशाचरों की चरण-वन्दना करता था...जिनको सारे वक्त गरियाता रहता था....या तो चुपके-चुपके या फिर "अपने ही लोगों या किसी मित्र के बीच"....!!

देखा जाए तो धरती के अनेक देशों में समय-समय पर इस प्रकार का उलूक-राज कायम होता रहा है किंतु कभी भी दुनिया के समस्त मनुष्य इसे दूर करने या भगाने के लिए "एक"नहीं हुए....कि यह मामला उनका नहीं था......!!इस प्रकार समय बीतता गया…इस उल्लू-राज में अनेक साधू-संत आदि आए और इस लगभग उल्लू याकि पशु बन चुके मनुष्य को उसकी सच्चाई…उसकी आत्मा का अहसास कराने हेतु अनेकानेक वचन और अन्य प्रकार की बातें कहकर उसे वापस मनुष्य बनाने की अथक चेष्टा की….मगर इसने अपने उल्लुपने को ही अपनी सच्चाई समझ कर इसी तरह जीने को आत्मसात कर लिया है….और कहते हैं पृथ्वी पर जम्बू-द्वीप में भारत नामक के उस देश में आज तक “उल्लू-राज” कायम है…और मज़ा यह कि उसके निशाचरी नागरिक किसी मसीहा की बात भी नहीं जोहते…ऐसा लगता है कि वो पशुओं की तरह जीने को ही अभ्यस्त हो चुके हैं…।!![वो देश कहाँ है…सो लेखक नहीं जानता…॥!!]


किसकी है ये ज़मीं,किसका आसमा
हम तो खड़े हैं बिल्कुल तन्हा यहाँ !!
क्या सबको इतनी नफ़रत है मुझसे
कोई आता जाता तक नहीं अब यहाँ !!
मेरी तिशनगी मिट क्यूँ नहीं पाती
समंदर तो फैला हुआ है नीला नीला !!
कुछ दर्द को छुकर निकला हूँ अभी
अभी दामन मेरा है थोड़ा गीला गीला !!
अक्सर मेरे भीतर कोई दिखाई देता है
खुदा है या है फिर और ही कोई मेरा !!
मेरे आस पास है यह किसका वुजूद
ये कौन है चारो ही तरफ फैला हुआ !!
अब चुप भी हो जाओ ओ गाफ़िल तुम
शी ई ई देखो कोई है तुम्हे सुनता हुआ !!
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3 टिप्‍पणियां:

Vineeta Yashsavi ने कहा…

Desh to mujhe nahi pata ki kaun sa hai par kahani bilkul sahi hai...

kavita bhi khub rahi...

शोभना चौरे ने कहा…

AVTARO KI DHRTI PAR SAB INTJAR ME RHTE HAI KI AB KOI AVTAR LEGA AUR HMARE DUKH DARD DOOR KAREGA AUR KALUG ME AVTAR LENE VALE BHGVANO KI HOD LGI HAI APNA SAMARAJY BNANE KI .
BEHTREEN POST
BADHAI
SHUBHKAMNAYE

Riya Sharma ने कहा…

Kahani va desh ka to nahi pata aapko ...

magar ye sundar ,arthpoorn kavita ke rachyeta ke baare main to bata den ...:))

Aapke lekhan kee gahraaii jara fursat se naapne padegi...kuch jyada hee gahri nazar aa rahi hai mujhe ...

 
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