भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मौत का एक दिन मुअयन्न है..........!!

बुधवार, 18 मार्च 2009

जिन्दगी किसके साथ किस प्रकार का खेल खेलती है...यह किसी को भी नहीं पता...अलबत्ता खेल पूरा हो चुकने के बाद हमारा काम उसपर रोना-पीटना या हंसना-खिलखिलाना होता है...किस बात का क्या कारण है...हमारे जिन्दा रहने या अकाल ही मर जाने का रहस्य क्या है....यह भी हम कभी नहीं जान सकते....हम सिर्फ चीज़ों को देख सकते हैं...गर सचमुच ही हम चीज़ों को गहराई से देख पाते हों....तो किसी की भी....किसी भी प्रकार की मौत हमारे इंसान होने के महत्त्व को रेखांकित कर सकती है....क्या हम सच में इस बात समझ सकने के लिए तैयार हैं......?????
.........जेड गुडी ही क्यों....किसी भी कोई भी इंसान किसी भी दुसरे इंसान की तरह ही उतना ही महत्वपूर्ण है....अपनी अर्थवत्ता और अपने महत्त्व को इतना सभ्य.... ..इतना शिक्षित....इतना विवेकशील कहलाने वाला इंसान भी नहीं समझता और तमाम तरह के दुर्गुणों....लालचों.....व्यसनों....और अन्य बुराईयों में जानबूझकर जकडा हुआ रहता है....
हर वक्त किसी से भी झगड़ने को तैयार रहता है....और तरह-तरह के नामों के खांचे में खुद को सीमित कर तरह-तरह की लडाईयाँ लड़ता रहता है....!!
............आखिर क्या बात है.....??.....आखिर इंसान को चाहिए तो आखिर क्या चाहिए.....???....कितना कुछ उसके शरीर के और मन के पेट भरने को काफी है...??.... सच तो यह है.....की हम पाते हैं कि कितना भी कुछ इंसान को क्यूँ ना मिल जाए....उसकी हवस उसको मिले कुल सामान से "द्विगुणित" हो जाती है....हमारे चारों और तरह-तरह के जेड़ गुडी बिखरे पड़े हैं....जो विभिन्न तरह के कैंसरों से लड़ते-लड़ते जीते-जी मर रहे हैं....और अंततः जिन्दगी की तमाम जंग हार जा रहे हैं...जो मीडिया में है...या जो मीडिया को दिखाई पड़ता है...सिर्फ उतनी ही यह धरती नहीं है....और ना ही उतने ही धरती के दुखः......!!
...........हम सब....या हममे से कुछ लोग भी अगर बेहतर इंसान होने का मदद अपने भीतर भर लें.....तो समाज के बहुत तरह के कैंसर एक क्षण में दूर हो सकते हैं...क्या हम एक बेहतर इंसान बनाने को तैयार हैं.....??क्या हम अपने कर्तव्यों को समझते हैं....??क्या हम समझ पाने को व्याकुल हैं कि धरती को सच्चे इंसानों की बहुत से समय से तलाश है...??क्या हम समस्त इंसानों की थोडी सी खुशियों के लिए अपने थोड़े से स्वार्थों की तिलांजलि देने को तैयार हैं....??...................याद रखे धरती हमें यह नहीं कहती कि हम दुखी हो जाएँ....बस इतना ही चाहती है कि हम अपने थोड़े से सुखों को किसी और को सौंप दें.....और इसमें बड़ा मज़ा आता है....हमारे अपने सुखों से कहीं बहुत ही ज्यादा....सच....हाँ दोस्तों मैं बिलकुल सच ही कह रहा हूँ.....सिर्फ इक बार आजमा कर देखें ना....बार-बार आजमाने को जी चाहेगा...सच....सच...सच.....हाँ सच.....!!!!
................बाकी मौत का तो एक दिन मुअयन्न है ही......है ना...........????
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5 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

याद रखे धरती हमें यह नहीं कहती कि हम दुखी हो जाएँ....बस इतना ही चाहती है कि हम अपने थोड़े से सुखों को किसी और को सौंप दें.....और इसमें बड़ा मज़ा आता है....हमारे अपने सुखों से कहीं बहुत ही ज्यादा....सच....हाँ दोस्तों मैं बिलकुल सच ही कह रहा हूँ।

सच्ची बात कह दी जी आपने।

बेनामी ने कहा…

'मौत का एक दिन मुअय्यन है' यह जानते हुए भी इन्सान को 'नींद क्यों रात भर नहीं आती?'

BrijmohanShrivastava ने कहा…

विल्कुल सही कहा आपने /प्रकृति का या कहलो ईश्वर का संबिधान प्रेम का है -परस्पर प्रेम बाँटने का ,और ईस्वर कभी यह नहीं चाहेगा कि उसके संबिधान का उलंघन हो /मगर जब स्वार्थ का पर्दा आँखों पर पद जाता है तब व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है -भलेही उसे सिकंदर का उदहारण दो या किसी और का /कल्पना कीजिये व्यक्ति सब कुछ छोड़ कर जाता है तब यह आलम है अगर साथ ले जाता होता तो क्या होता ?

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

..............दोस्तों , सबसे पहले जैक ट्वीड के उस जज्बे को हमारा सलाम.......और सच कहूँ तो इन सब घटनाओं से हममें मानवता के प्रति फिर से विश्वास पैदा हो जाता है....वो vishvas जो कम-से-कम प्रेम के अर्थों में हममे से पूरी तरह छीज चुका है.....और उसकी जगह अब हमेशा लिए एक वितृष्णा हममे जन्म ले चुकी है....दोस्तों.....ट्वीड भाई सचमुच इक मिसाल के रूप में हमारे सामने हैं....और जेड़ गुडी का साहस भी मौत पर उनके अटूट विश्वास को रेखांकित करता करता है.........जब मरना तय हो ही गया........तो रोना काहे का.......हंसते हुए क्यूँ ना मरा जाए....दोस्तों.....मैं कहना तो यही चाहता हूँ कि जब मरना तय है ही तो फिर जीकर ही क्यूँ ना मरा जाए.........आईये ना इसी बात पर हम सब जी लें........सच्चे इंसानों की तरह....जेड़ गुडी जी....ट्वीड जी...आप सबको हमारा बहुत-बहुत-बहुत प्रेम............!!

निर्मला कपिला ने कहा…

hamne to aapka pathh yaad kar liya bahut bahut dhanyvaad

 
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