भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

धर्म के नाम पर मर जाने वाले इंसान को शहीद नहीं कहते



 धर्म कभी-कभी किस तरह आदमी को पगला देता है,यह अभी कुछ दिन पूर्व मैंने देखा.मेरे एक विद्वान मित्र अचानक कुछ दिनों बाद मेरे पास आये और धर्म विषयक चर्चा करने लगे,ऐसा जान पड़ता था कि वे किसी धर्म-विषयक संस्थान में में कोई खास अध्ययन करके आये हैं,उनकी बौडी-लैंग्वेज और उनकी भाषा पूरी तरह लड़ाकू थीऔर उनके मुख से निकलने वाला प्रत्येक कथन जैसे एक आप्त-वाक्य और मजा तो यह था कि अपने हर कथन को अविवादित मान कर चल रहे थे,क्योंकि वे तो धर्म-ग्रंथों का सम्यक अध्ययन और उनपर सम्यक चर्चा जो करे आये थे,उनके द्वारा अपनी हर बात रखने में जो ढीतता थी,वो सामने वाले को कोई विमर्श करने ही नहीं देती थी,ऐसे में किसी के द्वारा अपनी बात किसी को समझा पाना लगभग असंभव ही था और मैं स्वयं भी इस अप्रत्याशित हमले से सन्न और अचंभित !!
खैरघंटों इस एकतरफ़ा विमर्श के पश्चात् अपनी तरह से वो मुझे जो ज्ञान प्रदान कर गए उसके पश्चात् मैं सोच में पड़ गया कि क्या सचमुच धर्म के यही मायने है,जो कि ये मित्र साहब फरमा कर गए हैं,कि वस्तुतः हर धर्म मानवता कि शिक्षा देने वाला है,जैसा कि मैंने समझा है !!
            सचमुच दोस्तों अगर आप धर्म को सिर्फ व् सिर्फ तठस्थ दृष्टि से देखो तो इसमें वाकई कट्टरता के लिए कोई जगह ही नहीं है,बल्कि हम कमजात लोग अपनी अल्प-बुद्धि के कारण धर्म की तरह-तरह की "भयानक" व्याख्याएं कर  इसे एक राक्षस बना देते हैं,सच तो यह है कि धर्म को हम किस तरह से लेते हैं यह हमारी अपनी निजी सोच है और दूसरा इसे किस तरह से ले,यह उसकी अपनी निजी सोच और किसी को भी इस सोच में दखल देने को कोई अधिकार नहीं है,क्योंकि यह भी सच है कि जैसे ईश्वर को कोई नहीं जानता और न ही उसे किसी ने देखा है और इस नाते यह भी कहा जा सकता है कि उसने क्या कहा है यह भी कोई नहीं जानता और ये सब जो ग्रन्थ आदि हैं वे सब मनुष्य के दिमाग की ही उपज हैं और फिर वही बात कि जितने तरह के मनुष्य उतने तरह के विचार और जितने तरह के विचार-समूह उतनी तरह की विचारधाराएँ भी हैं और ये सब विचारधाराएँ खुद को श्रेष्ठ मानने के चक्कर में दूसरी विचारधारा को घटिया या कमतर मानने लगे, यही झगडे का मूल कारण है जो हमारे दिन-प्रतिदिन के व्यवहार में परिलक्षित भी हुआ करता है !!
             मगर मैं दोस्तों, आपसे यही बात कहना चाहता हूँ कि धर्म के नाम पर मर जाने वाले इंसान को शहीद नहीं कहते बल्कि इंसानियत के लिए मर जाने वाले को सच्चा धर्मी कहते हैं !धर्म अपने लिए यह नहीं कहता कि तुम मेरे लिए तलवार भांजो,या गोलियां चलाओ बल्कि धर्म यह कहता है कि दूसरों को इतना अपना बना लो कि उसके लिए भी तुम्हें मरना पड़े तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो !धर्म एक दुसरे की जान लेने का नाम नहीं,बल्कि एक-दुसरे के साथ एक-दुसरे को जीने देने का नाम है !अल्लाह-राम या जीजस सब रहम-दया और करुणा के नाम है जो मानवता का परिपूर्ण रूप हैं ना कि किसी तरह के कट्टरता-पूर्ण धार्मिक खांचे,जिन पर हमारे एक्सीलेटर का दबाव बढ़ जाए तो सारी मानवता का विनाश ही हो जाए !!  

दोस्ती बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन॥जाएँ कैसे...!!

जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है॥ उलझने....जद्दोजहद॥खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर है तो फ़िर जिंदगी क्या है...और इसके मायने हमारे लिए क्या....ये भी समझ से बाहर ही है....फ़िर हम क्या करें....एकरसता को ही जीतें रहें??.....इसका भी क्या अर्थ ?...अर्थ...अर्थ...अर्थ ....क्या करें...करें...क्या करें॥?













एक पुलक,,,,,,, एक हँसी
कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !!
आँखों में जल लिए बैठा हूँ ,
मुझसे ... रूठी है,,,,,,तिश्नगी !!
होठों पे बस लफ्ज हैं प्यार के ,
दिल्लगी,,,,दिल्लगी,,,दिल्लगी !!
फूल बटोर कर लाया हूँ मैं ,
आती नहीं मगर मुझे बंदगी  !!
जो भी होता है वो होता रहेगा ,
कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !!
आसमां जैसे है इक दीवाली 
तारों -ग्रहों की है जैसे फुलझड़ी  !!
इतना सपाट -से तुम रहते हो क्यूँ ,
लगते हो मुझे जैसे इक अजनबी !!
ये लो तुम अपनी प्रीत संभालो ,
अरे जाओ जी अजी तुम जाओ जी !!
तारीकी -सी फैली हुई है क्यूँ ,
जाकर थोड़ी -सी लाओ रौशनी !!
अंधेरे में कुछ जुगनू चमके ,
आज शब् भी इनसे अब ..... खेलेगी !!
ख़ुद में उलझा हुआ है "गाफिल ",
अब रूह इसकी अपने लब खोलेगी !!






गुरुवार, 21 मार्च 2013

क्या लिखूं....क्यूँ लिखूं....कैसे लिखूं ??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
क्या लिखूं....क्यूँ लिखूं....कैसे लिखूं ??
.....रोज-ब-रोज जो कुछ आखों के सामने घटा करता है...मन को गहरे तक बेध देता है....आदमी अपने-आप में कुछ नहीं है....बल्कि वो जो भी कुछ है....एक समाज होकर ही है...और एक समाज होकर ही वो समूचे ...समाज को कुछ दे सकता है....और उसके पश्चात ही उसे इस समाज से कुछ लेने का अधिकार भी है...किन्तु ऐसा होता कहीं दिख ही नहीं पड़ता...बल्कि हर कोई और खाऊं-और खाऊं वाले आचरण से बुरी तरह चिमटा मिलता है....जो आदमी सब कुछ को अकेले ही हजम कर लेने को तत्पर है,वो किसी दुसरे को क्या ख़ाक देगा !?
......रोज सुबह अखबार पढता हूँ...रोज मन खट्टा हो जाता, दिल बेतरह तपड़ता है आदमी की करतूतों पर....मगर कुछ नहीं कर पाता...सो और भी ज्यादा तड़पता है....और इतना ज्यादा तड़पता है कि जार-जार रोता है यह भीतर-ही-भीतर....!!

आज अभी-अभी पढ़ा है कि एक प्रेमी ने अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर अपनी ही प्रेमिका की अस्मत लूट ली...और प्रेमिका ने खुद को आग के हवाले कर अपना प्राणांत कर लिया....अब इस पर मैं लिखूं तो क्या लिखूं.... क्यूँ लिखूं...और लिखूं तो कैसे लिखूं ??...मैं किसको पकड़ कर झकझोर दूं कि अबे साले !ये तूने क्या किया....क्यूँ किया....??और अब वो कैसे लौटेगी इस दुनिया में....??उसका क्या कसूर था....??और ऐसे में प्रेम पर कौन और क्यूँ विश्वास करेगा....?
.......अबे साले ! प्रेम के बूते ही तू ज़िंदा रहा है....तेरी माँ ने अपने प्रेम के कारण ही तुझे अपने स्तनों से दूध पिला-पिलाकर तुझे ज़िंदा बनाए रखा....तुझे बड़ा करती रही.....अरे हरामजादे....किसी की अस्मत लूटने से पहले कभी तो यह सोच कि जिस राह को तू अपनी ताकत से कूच-कूच कर देना चाहता है....उसी राह के रास्ते तू इस दुनिया में आता है ....!!...जिन स्तनों को तू अपनी हथेलियों से मसल डालना चाहता है.....उन्हीं से तूने दूध पीया होता है...!!??

......तेरी वासना ....तेरा फरेब दुनिया की हर माँ-बहन-बेटी के विश्वास को ख़त्म- ख़त्म कर देता है....जिनके सहारे तेरी यह दुनिया चलती है....सुन्दर बनी रहती है... जिनकी आगोश में तेरा जीवन मधुर बना करता है !!
....अबे हरामी...!तू कब अपनी वासना के पंजे से निकलेगा....??तू कब एक स्त्री की आबरू को अपनी आबरू समझेगा ??...और तू कब स्त्री की संवेदना को समझेगा...??

अबे साले !तू कब स्त्री को इतना अपना समझेगा कि उसका दर्द तुझे अपना दर्द लगे...और हर स्त्री एक अति-सम्मानित देवी.....!!...अबे कुत्ते !!तुझे एक स्त्री का भरोसा तोड़ कर भला क्या मिलता है....??और एक भरोसे....एक प्रेम का विश्वास तोड़ कर तू भला क्या पाता है.....??महज अपनी पिपासा शांत करने के लिए तू इतना वीभत्स कुकर्म कैसे कर डालता है…क़ि एक स्त्री का दामन,उसकी अभीप्सा,उसका प्रेम,उसका विश्वास सदा-सदा के लिए तार-तार हो जाए ??

और कभी यह भी तो सोच कि जब दुनिया की सारी स्त्रियाँ तेरे अत्याचार के कारण मर ही जायेंगी तो तू कैसे अपनी वासना की प्यास बुझाएगा....और तब तू किसकी इज्ज़त लूटेगा....!!क्या तेरे खुद के घर में बची....माँ....की या बहन की....या फिर खुद की ही बेटी की ??!!
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शनिवार, 10 नवंबर 2012

समय सबका हिसाब किताब साफ़ करेगा !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

  
कुछ सालों पहले की बात है एक ताकतवर किरायेदार हुआ करते थे,जो बरसों से एक शहर में उस शहर के सबसे पाश और व्यापारिक इलाके में अवस्थित अपेक्षाकृत कमजोर व्यक्ति के व्यापारिक प्रोपर्टी पर किरायेदार थे,और बरसों से उन्होंने अपने मकान मालिक को अपने राजनैतिक रसूख और ताकत के बल पर किराया देना भी बंद कर रखा था मगर उस जगह के कई पार्ट कर उन्होंने कई किरायेदार लगा रखे थे और इस तरह वो इस हराम की संपत्ति से हज़ारों रूपये हर माह कमा रहे थे और मकान मालिक उनका मूहँ ताक रहा था,देखा जाए तो देश में ऐसे बहुत से किरायेदार अब भी हैं !!मगर यह उदाहरण निजी लोगों के मामलों का है,देश के मामले में अगर इसे  देखा जाए तो स्थिति की भयावहता का आम आदमी तो अंदाजा भी नहीं लगा सकता क्योंकि जिन लोगों को देश की जनता कुछ सालों के लिए सत्ता सौंपती है वो इसके सारे संसाधनों को जिस बेशर्मी और थेथरई से हराम के माल की तरह कमाते और लुटाते हैं वो दरअसल देश-द्रोह का जघन्यतम उदाहरण है और इस सबका अंत कहाँ जाकर होना है,वह भी समझ नहीं आता !!आज आम आदमी यह समझ पाने में असमर्थ है कि ऊपर आखिर हो क्या रहा है,देश आखिर जा कहाँ रहा है ??क्या इस सबका अंत किसी गृहयुद्द में जाकर होना है या कि कुछ और ही होना है फिर भी इतना तो तय है कि वतन के साथ गद्दारी करने वालों को समय कभी माफ़ नहीं करेगा और इतिहास तो क्या ,गद्दारों के मूंह पर खुद उनके बच्चे ही कालिख पोतेंगे !! 
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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

ये फुल-टू-फटाक मस्ती लेता हुआ वतन....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

थोड़ा चिंतित हूँ और व्यथित हूँ,मगर मेरी जैसी मानसिक दशा वाले लाखों लोग इसी वतन में अपनी चिंताओं को इस तरह प्रकट कर रहे हैं,अगर आपको लगे कि यह वाजिब है तो हमें जगह दें ,हम आपके आभारी रहेंगे !!
ये फुल-टू-फटाक मस्ती लेता हुआ वतन....!!
              अन्ना-टीम के अनशन समाप्त होने के बाद शायद अब आगे अनशन जैसे कार्यक्रमों की संभावना कम ही दिखाई पड़ती है !,अनशन समाप्त करने की वजह प्रकट में चाहे जो भी बतायी जाए मगर अप्रकट में बहुत सारे रहस्य हैं,जिनका प्रकटीकरण अब शायद कभी नहीं हो,ऐसी संभावना भी बनती है,सबसे बड़ी बात तो यह है कि असंवेदनशील-दम्भी-हरामी और चाटुकारों से घिरे शासकों के सम्मुख बीन बजाने का फायदा भी क्या ?
               मगर यहीं पर आगे चीज़ों के उग्र रूप धारण कर लेने की संभावना भी बनती दिखाई पड़ती है !मोटी-सी बात यह है कि आज की परिस्थितियों में साधारण से साधारण चीज़ों के लिए भी,जनता को अपने निम्नतम हक़ के लिए भी सड़क पर आने को विवश होना पड़ता है तो शासकों की यह अंधेरगर्दी भला कब तक चल सकती है ?
               इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि टीम-अन्ना जैसी प्रतिभाशाली लोगों की टीम ने अब तक सिर्फ एक सवाल भ्रष्टाचार को लेकर ही यह आन्दोलन खडा किया है,जिससे शायद शहर की जनता के सिवा किसी को कोई सरोकार नहीं है,बल्कि इस आन्दोलन के चलते अन्य बहुत सारी जन-उन्मुखी समस्याएँ और देश के अन्य कुछ हिस्सों में अन्य कुछ लोगों द्वारा किये जा रहे बहुत से अत्यंत महत्वपूर्ण आन्दोलन भी हाशिये पर डाल दिए गए हैं !
               टीम-अन्ना को अब यह मंथन करना ही होगा कि अगर सच में वो एक राजनीति-दल होने की राह में है तो देश में बेशक भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है मगर साथ ही अन्य बहुत सारे प्रश्न भी हैं और वो प्रश्न इतने ज्यादा अहम् हैं कि ये सारे प्रश्न एक साथ ही अपने हल किये जाने की मांग करते हैं,किसानों-मजदूरोंऔरतों-बच्चों और ऐसे ही आम लोगों से सम्बंधित ऐसे हज़ारों-हज़ार सवाल हैं जो अपने अति-शीघ्र हल किये जाने की तलाश में हैं .
               अब एक प्रश्न मीडिया का भी है,विदेशी पूँजी की चकाचौंध में डूबा इतराता और अपनी पीठ आप ही ठोकता यह मीडिया आज सबसे सिरफिरा दिखाई देता है,भले ही इस मीडिया ने सैंकड़ों पर्दाफ़ाश किये हों मगर सत्ता के साथ इसके गठजोड़ को कौन नहीं जानता है और इस सांठ-गाँठ से यह क्या-क्या हासिल करता है अगर सच में जनता इसे समझ-जान जाए तो आम जनता इसे भी किसी दिन ठोक डालेगी,समझने वाले लोगों ने तो दरअसल इसका विश्वास करना भी छोड़ दिया है क्योंकि अब वो जानते हैं कि बहुत सारे पर्दाफाशों के बाद बहुत सारी बंदरबांट हुआ करती है और इस बंदरबांट के पूर्ण होते ही वही मीडिया अपना मुहं ऐसा सीम लेता है जैसे इसने कभी मूंह खोला ही नहीं था !मगर अब यह रहस्य भी अब बहुत छिपा नहीं रह गया है !
               बीजिंग ओलिम्पिक के बाद इस ओलिम्पिक तक हम ना सिर्फ खेलों में बल्कि तमाम चीज़ों में चीन नामक एक पडोसी देश के उभार को देखते आ रहे हैं !कल तक भारत से भी फिसड्डी यह देश अगर आज विश्व का सिरमौर बनने जा रहा है,बल्कि तकरीबन बन ही चुका है तो इसके पीछे ऐसा क्या है,ऐसी कौन-सी बात है जिसने सवा-डेढ़ अरब लोगों का बोझ ढ़ोते एक भूमि को सबसे आगे ला खडा कर दिया है !!और मज़ा यह है कि इसके पीछे कोई रहस्य नहीं है दोस्तों बल्कि सिर्फ एक वजह है मेहनत-मेहनत और मेहनत !!सिर्फ कार्यकुशल कर्मठता ही बेहतर परिणाम दे सकती है मगर इसके ठीक उलट हम क्या हैं काहिल-नकारा....मेहनत से जी भरकर जी चुराने वाले,सिर्फ सपने देखने और ज़रा-ज़रा सी सफलता पर फूल कर कुप्पा हो जाने वाले एक बेवजह की भीड़.....धरती पर एक बेवजह का बोझ....ज़रा अपने इस फालतुपने पर क्षण भर के लिए ही सही,मगर विचार करें हम एकाध करोड़ मीडिया से जुड़े हुए और विचारों में खुद को बड़े तीसमार खाँ समझते हुए लोग !!
                  फिलहाल टी.वी-इंटरनेट-मोबाइल-आईपॉड और अन्य एप्स के चटखारे लेता हुआ कुछ करोड़ मध्यवर्गियों का यह वतन फुल-टू-फटाक मस्ती की नींद सो रहा है,बिना यह जाने और समझे हुए कि बाकी के अरबों लोगों के साथ दरअसल क्या हो रहा है !जिस किसी भी दिन यह जागेगा और और उन अरबों प्रताड़ित लोगों के दुःख-दर्द से खुद को जोड़ेगा तभी कोई सच्ची और संभावना नज़र आती है और एक बात बता दूं अभी तो यह नज़र ही नहीं आ रही !इसलिए आन्दोलनों की परिणिति ऐसी हुई जा रही है !!
                बिना किसी दिशा के कुछ भी करना एक बहुत बड़ा पागलपन है और यह बेतुका पागलपन सबसे पहले तो यहाँ सत्ता करती है,और उससे भी बड़ा उसका विरोध करने वाले जबकि सबका स्वार्थ महज एक है कि शाम-दाम-दंड-भेद किसी भी प्रकार से अपना घर भरना !!और जब जनता को बार-बार "........"बनाकर सिर्फ सरकार बदलना भर आपका मकसद हो तो जनता आखिर कब तक खुद को ठगा जाता महसूस करके भी आपका साथ देगी....मज़ा तो यह है कि सौ अरब लोगों को तो यह तक मालूम नहीं है कि विभिन्न सरकारों द्वारा उनके लिए तरह-तरह की योजनायें लागू हैं और वो पूरी-की-पूरी या कुछ या बहुत सारे अंशों में कुछेक हजार लोगों द्वारा हाइजैक कर ली जा रहीं हैं इसमें सत्ता-दलाल-स्वयंसेवी संगठन-मीडिया और कुछ महत्वपूर्ण लोग पूरी तरह से लिप्त हैं और मैं यह सोच कर चिंतित हूँ कि जब जनता को इस भयानक "घोटाले"(इसके अर्थ को पाठक कई गुणा कर लें !!)का पता चलेगा तब वह इस सबमें लिप्त इन सब लोगों का क्या हश्र करेगी !!??

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

i-next men mera aalekh

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
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सोमवार, 30 जुलाई 2012

हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

हमारे लिए इस दौर के लिए कुछ सबक.....आमीन.....!!
बस एक बात बता दे मेरे पगड़ी वाले भाई.....अगर तूने कोई करप्शन नहीं किया है तो ये थेथरई काहे की....लोकपाल ला दे ना.....इसमें दिक्कत क्या है भला.....जैसे मिलजुलकर राष्ट्रपति दे दिया...वैसे ही एक लोकपाल भी दे दे.... !!
एक और बात बता मेरे पगड़ी वाले भाई.....क्या जंतर-मंतर पर बैठे लोग पागल हैं....??वहशी हैं....??दरिन्दे हैं....कि राक्षस.....??....या फिर निजी रूप से तेरे दुश्मन.....??......यार क्या तू और तेरी टीम ही देश की सच्ची खेवनहार है.....??बाकी सब चोर हैं....??अरे यार.....तू इतना बड़ा पढ़ा-लिखा अर्थशास्त्री है.....काहे को ये निर्लज्जता भरी बेईमानियाँ कर रहा है यार....??.....जब सारा देश पुकार रहा है....अन्ना....अन्ना.....अन्ना.....और तू और तेरी टीम शर्म-हीन बयान दे रही है.....अरे यार कुछ तो रहम करो....देश पर नहीं तो खुद पर ही....उम्र के अंतिम पायदान पर भी क्या तुम लोगों को बुद्धि नहीं आती....!!??
एक सवाल मन को हमेशा मथता रहता है...कि जो दर्द वतन के लिए सबको होता है......वो भारत के रहनुमाओं को कभी भी क्यूँ नहीं होता....क्या वो मिटटी खाते हैं कि टट्टी.....!!?? 
अब एक बात आप सब बताईये ना दोस्तों....अगर अगर आपके पास ढेर सारा पैसा हो मगर आपके कामों के कारण आपके वतन की संसार में कोई इज्ज़त ही ना हो तो आप क्या ज्यादा पसंद करेंगे.....अपना पैसा.....या वतन की इज्ज़त ?? 
मैं अन्ना बोल रहा हूँ.....केवल सत्ता ही नहीं.....हम सब भी अपने-अपने स्तर पर तरह-तरह की हरामखोरियाँ-बेईमानियाँ और करप्शन करते हैं.....और यह समाज के प्रत्येक स्तर पर होता है.....आन्दोलन के इस चरण में अपने भीतर झाँक कर हम सब अपने भीतर देखकर अपने बारे में भी सोच लेन कि हममें से कौन कितना बड़ा कमीना है !!
आप ऐसा मत कहिये कि मैं आपलोगों के प्रति कुछ कड़े अथवा असंसदीय शब्दों का उपयोग कर रहा हूँ....सच तो यह है कि जब तक हम खुद के प्रति कड़े नहीं हो जाते.....तब तक धरती पर कोई भी आन्दोलन सार्थक नहीं हो सकता !!
सिर्फ एक मेले या मीनाबाजार की तरह कहीं किसी जगह विशेष पर भारी भीड़ कर देने से कुछ हल नहीं होने को....अगर हम नागरिक भी भ्रष्ट हैं तो लोकपाल तो क्या उसका बाप या उसके बाप का बाप भी इस देश का उद्धार नहीं कर सकता......!!
एक बात जान लीजिये मेरे देश के इज्ज़त-परस्त नागरिकों.....आज हम जो सत्ता को गालियाँ दे रहे हैं.....दिए जा रहे हैं....मगर हम खुद भी कौन से ऐसे पाक-साफ़ हैं....और ऐसा कौन सा काम हमने किया है जिससे हमारा खुद का कोई देश-प्रेम या वतनपरस्ती साबित होती है....??खुद हरामी रहकर दूसरों को उपदेश देने वाले हम....कल को सोचिये कि हमारे बच्चे ही हमसे पूछ बैठे कि "क्या पापा आप भी....??मैंने तो सोचा भी नहीं कि आप भी इन देश-द्रोहियों और हरामियों की तरह कमीने हो.....!!??".....दोस्तों सबसे पहले खुद से कुछ खड़े कीजिये...आप खुद समझ जायेंगे कि आपमें किसी आन्दोलन में शरीक होने कि योग्यता है भी कि नहीं....!!  
बड़ा मज़ा आ रहा है ना आन्दोलन करने में......मगर अगर सत्ता ने लाठियां बरसाई.....तब देखेंगे कि किस्में कितना दम है....!!दोस्तों इस देश को दरअसल आज़ादी कभी मिली ही नहीं थी....सिर्फ गोरे अंग्रेजों द्वारा काले अंग्रेजों को सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ था....इसलिए अंग्रेजों के बनाए हुए काले कानूनों को ढोती हुईं तमाम सरकारें आज तक जनता के साथ हर स्तर पर हैवानियत भरा नंगा खेल खेलती रही !!
दोस्तों !बहुत सारे लोग इस आन्दोलन में शरीक होकर अपने सारे पुराने पापों को धो लेना चाहते हैं....वे इस आन्दोलन में शामिल होकर गंगा नहा लेने का लाभ ले लेने की फिराक में हैं....ऐसे लोगों को भी पहचानिए....और उन्हें मार भगाइए....वरना इस आन्दोलन की धार कुंद पड़ जायेगी....!!
और अंत में यही कि एक सच्चे-अच्छे एवं दुर्भावना-हीन समाज को गढ़ने के लिए खुद के भी सच्चे समर्पण की आवश्यकता होती है....ऐसा कभी भी नहीं हो सकता कि हम तो लालच-फरेब-दुर्भावना-उंच-नीच-धर्म-सम्प्रदाय की अपवित्र भावनाओं से भरे हों....और एक अच्छे समाज का बेतुका सपना देखते रहें.....हमेशा एक बात याद रखिये.....कि जिन हथियारों से आप लैस हो....वैसा ही समाज आप गढ़ पाओगे...जय-हिंद....वन्दे-मातरम्.....सत्यमेव-जयते.....!!!  
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

रविवार, 29 जुलाई 2012

शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

शायद अब हम कुछ भी नहीं बचा सकते.....!!??
               बहुत अजीब हालत है मेरे मन की !!बहुत कुछ लिखना चाहता हूँ, कहना चाहता हूँ,गाना चाहता हूँ,मंचित करना  चाहता हूँ....पल-दर-पल आँखों के सम्मुख बहुत कुछ घटित होता रहता है,जो मानवता को शर्मसार और मुझे व्यथित करता रहता है,जिससे पीड़ित होकर खुद को व्यक्त करना चाहता हूँ मगर साथ ही कुछ भी लिखने में लगने वाले वक्त की अपेक्षा अपने लिखे जाने के "अ-परिणामों " पर विचार करता हूँ तो अपने लिखे हुए को बिलकुल "अ-सार्थक " पाता हूँ !!और इस कारण लेखन-कर्म मुझे एकदम से बेकार और वाहियात कर्म लगने लगता है !!
               रोज जब भी नेट पर बैठता हूँ तब कई प्रकार की वेदना होती है मन में,जो कभी भी बिलकुल से निजी समस्याओं की वजह से नहीं,बल्कि अपने आस-पास घटने वाली दुःख देने वाली घटनाओं के कारण उपजती हैं,जिन्हें मैं मिटा नहीं सकता,मिटा भी नहीं पाता...और कुछ भी नहीं बदल पाने का यह गम मुझे सालने लगता है....जी घुटने लगता है...मगर कोई उपाय भी नहीं होता मेरे पास खुद को राहत देने का...क्योंकि गैर-तो-गैर अपने भी सीधी-सच्ची और सूरज या आईने की तरह साफ़ सी चीज़ तक को नहीं मानते....कोई भी व्यक्ति महज अपने आत्ममुग्ध अहंकार की वजह से अपनी गलतियों को नहीं मानता और ना सिर्फ वो अपनी गलती नहीं मानता बल्कि सीधा-साधा यह तक भी एलान कर डालता है की मैं ऐसा ही हूँ...मेरे साथ मेरी शर्तों पर निभाना है तो ठीक...वरना मैं चला....यह थेथरई धरती के तकरीबन समस्त मानवों में है,जो दरअसल धरती की सारी समस्याओं की जड़ भी है !!
               मगर किसी समस्या का दरअसल कोई ईलाज नहीं है क्योंकि आप किसी को उसकी गलतियों की माफ़ी के लिए विवश तो दूर,उसे इस बात को मानने को भी तैयार नहीं कर सकते कि उसने कोई गलती भी है !! और इस तरह सारी धरती पर ऐसी-ऐसी बातों पर बाबा आदम के जमाने से ऐसे-ऐसे झगड़े होते चले आ रहे हैं, जिनका की मानव जाति से दूर-दूर तलक का भी नाता नहीं होना चाहिए था,मगर ना सिर्फ ऐसा होता चला आ रहा है,बल्कि ऐसा ही होता भी रहना है,तो फिर मेरे या किसी के भी किसी भी माध्यम से खुद को अभिव्यक्त करने का कोई अर्थ भी है ??.....है तो भला क्या अर्थ है....??
               हर महीने की किसी तारीख पर जब  नेट का कनेक्शन ख़त्म हो जाता है तब कई दिनों तक इसी उधेड़-बून में रहता हूँ कि उसे फिर से भरवाऊँ कि ना भरवाऊँ....क्योंकि मेरा जो काम है वो सिर्फ मेरे कुछ भी व्यक्त-भर कर देने से खत्म नहीं हो जाता....दरअसल मेरा काम तो मेरे खुद को व्यक्त करने के बाद ही शुरू होता है।....जो कि कभी शुरू ही नहीं होता.....मेरे भीतर वेदना चलती रहती है....चलती ही रहती है !!
              इस वेदना का क्या करूँ मैं....लोगों की आत्मा को जगाने के प्रयास में लगी मेरी अभ्यर्थना....मेरा लेखन अपने किसी लक्ष्य को पाता नहीं प्रतीत होता ऐसे में फेसबुक का क्या करना है...ब्लॉगों का क्या करना है...या अन्य किसी भी अभिव्यक्ति का क्या होना है.....और जब कुछ होना ही नहीं है...तब मुझे भी भला क्यूं होना है......इन्हीं सब छिछली बातों में मैं झूठ-मुठ का वक्त शायद जाया करता आया हूँ,और शायद मरने तक ऐसा ही चलता भी रहेगा.....!!
             ऐसे में, मैं नहीं जानता कि मैं धरती पर अपने होने का क्या करूँ......मैं नहीं जानता कि हम सब धरती पर खुद को धोने के अलावा अपने होने से अपने होने का क्या साबित कर रहें,जबकि धरती आदमी से कलंकित है......और मानवता भी आदमी से शर्मसार है....!!??
शनिवार, 28 जुलाई 2012

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
                एक बार फिर आमिर मैं तुम्हारे प्रोग्राम को देखते हुए कई बार भीतर ही भीतर रोता रहा,ये आंसू किन्हीं लोगों के जज्बे के,ईमानदारी के,हिम्मत के और अपने काम द्वारा समाज के सम्मुख एक मिसाल बन जाने वाली प्रेरणा के लिए थे,मैं रोया इस बात पर भी कि नौ साल का एक बच्चा,सब्जी बेचने वाली कोई औरत,कोई अशक्त-विकलांग व्यक्ति,तो कोई अशिक्षित व्यक्ति या कोई बूढ़ा-बुजुर्ग व्यक्ति किसी दर्द या समस्या को सामने पाकर बजाय हिम्मत हारने के उसके सामने कैसे दहाड़ कर खड़ा हो जाता है और वह समस्या या वो दर्द कैसे उसके सामने दुम दबाकर भाग खड़ी होती है !! मेरे सामने इससे भी बड़ी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति किस प्रकार किसी विकट परिस्थिति के सामने आने पर अपने हौसले से उसे बौना साबित कर कर देता है और अपने कर्म के लिए वो जिस भी किसी क्षेत्र का चुनाव करता है उस क्षेत्र का कद भी विराट हो जाता है....आमिर इन बुलंद हौसलों को सलाम मगर एक सवाल मुझे अपने आप से भी है हम पढ़े-लिखे लोग जो अपनी जिन्दगी में टाईम नहीं है-टाईम नहीं का रोना रोता रोते है और अपनी जिन्दगी की अनगिनत समस्यायों को लोगों को गिनाते नहीं थकते....और इस तरह इन बहानों से खुद को अखिल/अखंड सामाजिकता और सरोकारों से बचाए रखते हैं.....ऐसे कार्यक्रमों से शायद हम जैसों को भी कोई दिशा मिले और हम जैसे समाज के लिए नकारा लोग भी समाज की इन जद्दोजहदों में खुद को शामिल कर खुद का ज़िंदा होना साबित कर सकें !!जय-हिंद....वन्दे-मातरम्...सत्यमेव-जयते !!    

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

रविवार, 22 जुलाई 2012

भाई आमिर,नमस्कार !!

भाई आमिर,नमस्कार 
               सत्यमेव जयते के सारे एपिसोड देख-देखकर द्रवित और उद्वेलित होता रहा हूँ,हर बार कुछ कहना भी चाहा,मगर रह गया.मगर अब देखा कि अगला एपिसोड आखिरी होगा तो सोचा कह ही डालूं !बड़े अनमने मन से कह रहा हूँ हालांकि,क्यूंकि बहुत कुछ बहुत सारे लोगों द्वारा कहा/लिखा जाता रहा है,कहा/लिखा जाता रहता है,कहा/लिखा जाता रहेगा....मगर बात उसके प्रभाव की है,उसके परिणामों की है और यह अगर हर बार शून्य ही रहना है तो कुछ भी कहना/लिखना या किसी भी माध्यम से कुछ भी व्यक्त करना है तो पागलपन या सिरफिरापन ही फिर भी यह सब कुछ सिरफिरों या पागलों द्वारा किया जाता रहेगा और उनमें से सदा मैं भी एक रहूंगा ही !!
               पता है आमिर,हमारी समस्याएं या उनकी जड़ कहाँ हैं ??हमारी हर समस्या की जड़ है हमारा देश के प्रति मानसिक रूप से विकलांग होना !!हम कभी नहीं समझते कि हमारा जीना और और अपने बाल-बच्चों के लिए कमाना-खाना भर ही हमारा जीवन नहीं है !हमारे जीने के लिए अपनाए जा रहे साधनों से अगर दूसरों की आजीविका या जीवन के अन्य प्रश्नों पर कोई गहरी मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है !!हमारे रहने के,जीने तौर-तरीकों से दूसरों पर कोई मुसीबत आती हो तो यह एक समस्या है,हमारी गन्दी आदतों से मोहल्ला/शहर/देश परेशान होता हो तो यह एक समस्या है !!
               पता है आमिर कि हमारे जीवन में हुआ क्या है ??हुआ यह है कि जीवन जीने की आपाधापी में हमने ना सिर्फ अपने परिवार को खोया है बल्कि अपने उन सारे जीवन सामूहिक जीवन मूल्यों को भी खोया है जिन पर हम नाज करते थे और अपनी सामूहिकता के कारण जीवन जीने की बहुत सारी उपयोगी चीज़ों को बचाए रखते थे,चूँकि बहुत सी चीज़ें हमारी आदतों के कारण सामूहिक थीं इसलिए उन्हीं चीज़ों के कारण हम अपने आप एक दूसरे से जुड़े हुए होते थे !अब इस जुड़ाव के कारण क्या-क्या होता है, सुनों.....हम एक-दूसरे के साथ बैठते हैं....गप्पें लडातें हैं...हंसी-ठठ्ठा भी हो जाया करता है....आपस में संवाद भी कायम होता है और बातों-बातों में एक-दूसरे की समस्याओं का भी पता चलता है और उन्हें साथ मिलकर हल करने का अवसर भी....तो अनजाने में ही पाल ली गयी आदतों का सूत्र हमें स्वाभाविक रूप से एक-दूसरे के साथ जोड़े हुए रखता है !!
              अब जब बेतरह साधनों के जुगाड़ ने हमारी ऐसी कमर तोड़ डाली है कि हम अपने खून के परिवार के रिश्तों से ही मरहूम होते चले गए हैं तो फिर गाँव-मोहल्ले-देश और समाज की सामूहिकता की बात करना मजाक सा ही लगता है !!अब मज़ा यह है कि समस्याएँ तो समूह की ही हैं मगर समूह पूरी तरह से ना सिर्फ बिखर ही चुका है बल्कि एक-दूसरे को जानता तक नहीं है !!तो जो समूह (भीड़ कहूँ तो अच्छा होगा !!)एक दूसरे की शक्ल तक से परिचित नहीं है, वो एक-दूसरे की मदद तो क्या ख़ाक करेगा !!...तो हमारे समाज की समाज की सारी समस्याएं यही हैं !! मगर फिर भी एक बात थी जो हमें एक-दूसरे से जोड़े रखने में बड़ी मदद कर सकती थी,वो एक संभावना थी "देश-प्रेम !!"मगर देश-प्रेम को तो हम कब का गटर में डाल कर रोज उसपर अपना टट्टी-पेशाब डाल रहें हैं....तो फिर आमिर क्या संभावना है हमारे समूह की समस्याएँ आसानी से हल हो जायेंगी....!!
              फिर भी आमिर यह भी सच है कि इसी देश अलग-अलग जगहों पर बहुत सारे लोग निजी तौर पर बहुत सारे प्रयास करते आयें हैं और कर भी रहें हैं मगर मेरी दिल में तब भी इस बात पर दर्द भर आता है कि वो किन्हीं अन्य लोगों की प्रेरणा का कारण नहीं बन पाते या हमारे प्रशासन या हमारी सरकारें अपनी जनम-जनम की नींदों से नहीं जाग पाती कि हम हम सबके अलग-अलग या सामूहिक मानस में अवश्य ही कोई खोट है कि ऐसे बहुत सारे वन्दनीय लोगों के अनुकरणीय उदाहरण भी हमें जगा नहीं पाते....हमें उद्वेलित नहीं कर पाते....ये कैसी गड़बड़ है हमारे भीतर कि हम ना तो खुद ही कुछ करते हैं और ना ही किसी करने वाले का आगे बढ़कर साथ देते हैं.....और इस तरह सारे अनुकरणीय लोग   "अकला चलो रे !!" की तर्ज़ पर अकेले ही चले जा रहें हैं !!बस ईश्वर के लिए मेरे लिए राहत की बात यही है कि ये अकेले लोग भी अपने-आप में इतने मजबूत-दिल हैं कि इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इनके साथ कोई है भी कि नहीं है !!
              मगर मेरा मुख्य प्रश्न यही है कि हम भारतीय इतने जिद्दी....इतने थेथर क्यूँ हैं कि कैसी भी बात पर अब हम नहीं पसीजते....बहुत सी ऐसी चीज़ें जो महज हमारी बुरी आदतों के कारण हैं,अपनी उन आदतों को नहीं छोड़ते ! बहुत-सी ऐसी समस्याएँ जो चुटकियों में हल हो जाए उन्हें अपने किस अहंकार के कारण टाले हुए रखते हैं !तो बहुत सारी समस्याएँ तो हमारी घटिया मानसिकताओं से सृजित हैं और हम अपनी मानसिकता को बदलने को तैयार ही नहीं होते !!.....हम इतने बूरे क्यों हैं आमिर कि हम अपने देश के लिए.....कि हम खुद अपने खुद के लिए... कि हम अपने सब कुछ की बेहतरी के लिए भी कोई सामूहिक प्रयास करने को उद्दृत नहीं होते.....!!हम अपने निजी गुस्से के अलावा किसी भी सामूहिक हित के लिए उद्वेलित नहीं होते !!....हम अपने शहर-राज्य या देश के सम्मान की परवाह करना तो दूर,उसकी अवहेलना तक करते हैं !हमारे खुद के हित के लिए बनाए गए उसके कायदे-क़ानून तक की अवहेलना करते हैं !!
              और आमिर !!हमारे द्वारा हर पल की जाने वाली यही अवहेलनाएं अंततः हमारे गर्त में जाने का रास्ता बनाए जा रही हैं,यह भी तो हम नहीं जानते !!....आमिर चाहता तो हर एपिसोड के हर विषय पर अलग-अलग ही कुछ लिखता....मगर आपके पास शायद इतना वक्त नहीं होता...और फिर मेरे द्वारा लिखी गयी हर बात में सार तो यही होता....और रही वक्त की बात...तो वक्त तो हम सबके पास इतना होता है कि हम सब जीते हैं,अपनी-अपनी समस्याएँ सुलझाते हैं....ऐश-मौज करते हैं....ना जाने क्या-क्या करते हैं....अपने परिवार की शान भी बनते हैं....कभी-कभी तो हम ऐसे-ऐसे भी काम करते हैं कि उससे शहर-राज्य और देश की शान में इजाफा होता है मगर असल में प्राथमिकता हमारा देश नहीं होता.....हमारा खुद का अहंकार ही होता है.....काश कि हम सब में से सब लोग थोड़ा-थोड़ा ही बस भर देश के लिए भी जी जाएँ तो इस मादरे-वतन की शक्लो-सूरत सदा-सदा के लिए बदल जाए....!!                                                           जय-हिंद !!सत्यमेव-जयते !!          

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