भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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क्या लिखूं....क्यूँ लिखूं....कैसे लिखूं ??

गुरुवार, 21 मार्च 2013

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
क्या लिखूं....क्यूँ लिखूं....कैसे लिखूं ??
.....रोज-ब-रोज जो कुछ आखों के सामने घटा करता है...मन को गहरे तक बेध देता है....आदमी अपने-आप में कुछ नहीं है....बल्कि वो जो भी कुछ है....एक समाज होकर ही है...और एक समाज होकर ही वो समूचे ...समाज को कुछ दे सकता है....और उसके पश्चात ही उसे इस समाज से कुछ लेने का अधिकार भी है...किन्तु ऐसा होता कहीं दिख ही नहीं पड़ता...बल्कि हर कोई और खाऊं-और खाऊं वाले आचरण से बुरी तरह चिमटा मिलता है....जो आदमी सब कुछ को अकेले ही हजम कर लेने को तत्पर है,वो किसी दुसरे को क्या ख़ाक देगा !?
......रोज सुबह अखबार पढता हूँ...रोज मन खट्टा हो जाता, दिल बेतरह तपड़ता है आदमी की करतूतों पर....मगर कुछ नहीं कर पाता...सो और भी ज्यादा तड़पता है....और इतना ज्यादा तड़पता है कि जार-जार रोता है यह भीतर-ही-भीतर....!!

आज अभी-अभी पढ़ा है कि एक प्रेमी ने अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर अपनी ही प्रेमिका की अस्मत लूट ली...और प्रेमिका ने खुद को आग के हवाले कर अपना प्राणांत कर लिया....अब इस पर मैं लिखूं तो क्या लिखूं.... क्यूँ लिखूं...और लिखूं तो कैसे लिखूं ??...मैं किसको पकड़ कर झकझोर दूं कि अबे साले !ये तूने क्या किया....क्यूँ किया....??और अब वो कैसे लौटेगी इस दुनिया में....??उसका क्या कसूर था....??और ऐसे में प्रेम पर कौन और क्यूँ विश्वास करेगा....?
.......अबे साले ! प्रेम के बूते ही तू ज़िंदा रहा है....तेरी माँ ने अपने प्रेम के कारण ही तुझे अपने स्तनों से दूध पिला-पिलाकर तुझे ज़िंदा बनाए रखा....तुझे बड़ा करती रही.....अरे हरामजादे....किसी की अस्मत लूटने से पहले कभी तो यह सोच कि जिस राह को तू अपनी ताकत से कूच-कूच कर देना चाहता है....उसी राह के रास्ते तू इस दुनिया में आता है ....!!...जिन स्तनों को तू अपनी हथेलियों से मसल डालना चाहता है.....उन्हीं से तूने दूध पीया होता है...!!??

......तेरी वासना ....तेरा फरेब दुनिया की हर माँ-बहन-बेटी के विश्वास को ख़त्म- ख़त्म कर देता है....जिनके सहारे तेरी यह दुनिया चलती है....सुन्दर बनी रहती है... जिनकी आगोश में तेरा जीवन मधुर बना करता है !!
....अबे हरामी...!तू कब अपनी वासना के पंजे से निकलेगा....??तू कब एक स्त्री की आबरू को अपनी आबरू समझेगा ??...और तू कब स्त्री की संवेदना को समझेगा...??

अबे साले !तू कब स्त्री को इतना अपना समझेगा कि उसका दर्द तुझे अपना दर्द लगे...और हर स्त्री एक अति-सम्मानित देवी.....!!...अबे कुत्ते !!तुझे एक स्त्री का भरोसा तोड़ कर भला क्या मिलता है....??और एक भरोसे....एक प्रेम का विश्वास तोड़ कर तू भला क्या पाता है.....??महज अपनी पिपासा शांत करने के लिए तू इतना वीभत्स कुकर्म कैसे कर डालता है…क़ि एक स्त्री का दामन,उसकी अभीप्सा,उसका प्रेम,उसका विश्वास सदा-सदा के लिए तार-तार हो जाए ??

और कभी यह भी तो सोच कि जब दुनिया की सारी स्त्रियाँ तेरे अत्याचार के कारण मर ही जायेंगी तो तू कैसे अपनी वासना की प्यास बुझाएगा....और तब तू किसकी इज्ज़त लूटेगा....!!क्या तेरे खुद के घर में बची....माँ....की या बहन की....या फिर खुद की ही बेटी की ??!!
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1 टिप्पणी:

Alpana Verma ने कहा…

स्त्रियों को उपभोग की वास्तु मात्र समझने वाली यह धारणा न जाने कब बदलेगी.
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बहुत अरसे बाद आप की पोस्ट दिखी.

 
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