भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं? http://www.amankapaigham.com/2011/07/blog-post_28.html

शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!

क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं?

          

इस पोस्ट को पढने से ज्यादा वक्त इस पर आये वक्तव्यों को पढने में लगा,और जहां जिसके साथ जिन कारणों से विवाद हुआ लगा,वहां और तल्लीनता के साथ पढ़ा...और मुझे ऐसा भी लगा की रचना जी के वक्तव्यों का अर्थ स्थूल रूप में,या कहूँ कि गलत सन्दर्भों से जोड़कर गलत तरीके से गलत ही लिया जा रहा है,जबकि यहाँ वस्तुतः कोई है ही नहीं,बस ज़रा सोच के तरीके का फर्क है,एक जाना टांग पकड़ रहा है,तो दूसरा सर...जबकि सच तो यह है कि दोनों हिस्से दरअसल एक ही धड में है,भाई लोगों एक बात मैं आपसे आज्ञा लेकर कहना चाहता हूँ,कि स्त्री जाति के कपड़ों के छोटे होने के कारण भी बलात्कार होते हैं,इस बात से मैं भी पूर्णतया सहमत हूँ,रचना जी आप भी इसे ठीक तरह से समझ लें,क्यूंकि दो-तीन-चार साल की बच्चियों के साथ भी तो शायद इसीलिए बलात्कार किये जाते हैं,क्यूंकि वो नंगी होती हैं...!!है ना भाईयों...??क्या ख्याल है आप सबों का ??अधेड़ औरतों के संग भी बलात्कार होता है,शायद वे भी समाज में नंगी ही घूमा करती हैं....है ना दोस्तों....??क्यूँ अपनी कमियों को छुपाता है यह पुरुष नाम का जीव....जो औरत को कपड़ों के भीतर भी नंगा देख लेता है,आप सुन्दर स्त्रियों से जाकर पूछिए कि उन्हें आपादमस्तक कपड़ों से परिपूर्ण होने के बावजूद अक्सर बहुत सारे पुरुषों की किस प्रकार की प्रशंसनीय नज़रों का शिकार होना पड़ता है स्कूल जाती हुई छोटी-छोटी छात्राओं से जाकर पूछिए कि प्रत्येक-चौक चौराहों पर हर उम्र के पुरुष की उन पर किस प्रकार की सुन्दर दृष्टि हुआ करती है...!!औरत पुरुष की दृष्टि-मात्र के आगे पानी-पानी हो जाया करती है,ऐसी है पुरुष नाम के इस जीव की दृष्टि,जिससे बचने के लिए औरत नाम की जीव सदा नज़रें झुका कर चलती है !!
                   दोस्तों अपनी जाति के दोषों को छिपाने से अपना कुछ भला होने को नहीं है,जो सच है,उसे स्वीकार कीजिये ना....आप भी अपने भीतर झांकिए ना कि तरह-तरह की औरतों के अपने सामने से जाते हुए देखने पर आपके भीतर उसके प्रति किस प्रकार के सम्मान की भावना हिलोर मारती है!!मेरा ख्याल है उस जाति हुई औरत से ही पूछ लीजिये ना,जिसे जाता हुआ देखते उसके आपके बगल से पार हो जाने के बाद आपकी आँखों से ओझल हो जाने तक भी आपकी दृष्टि उसके शरीर पर टिकी हुई हो सकती है,मैं बताऊँ कहाँ पर...??"उसके भारी नितम्बों पर !!"
                  दोस्तों,समस्या तो वह ठीक की जा सकती है ना,जिसे सबसे पहले उसकी बुनियाद से ही समझ लिया जाए....मान लो कि कोई स्त्री आपके सामने से कम कपड़ों में गुजर ही जाए...तो इससे आपके शरीर के अंग भला क्योंकर हिलोर मारने लगेंगे....??सच कह दो ना यार...कि तुम्हारा चरित्र अभी कच्चा है !!किसी रचना या किसी और नाम की औरत पर कीचड फेंकने से भला क्या प्राप्त होगा....उनकी तरफ से भी वही...यही ना...??कपड़ों और अदाओं में बलात्कार की वजह खोजने वालों तुम सब भला क्यूँ यह स्वीकारो कि पुरुष के चरित्र में ही कहीं कोई गड़बड़ है,कि वह स्त्री को सम्मुख पाकर सिर्फ उसे दैहिक रूप में ही देख पाता है,बहुत से लोग तो मन-ही-मन उसे भोग भी लेते ही हैं !!
                 तो मेरे प्यारे-प्यारे-प्यारे दोस्तों स्त्री के कपड़ों में कोई गड़बड़ हो ना हो...हमारे चरित्र में तो अवश्यमेव ही है जो कि स्त्री के सन्दर्भ में ज़रा कमजोर पड़ जाता है,स्त्री से मिलते ही अपनी आवाज़ में आयी हुई तब्दीली को महसूसा है कभी आपने में से किसी ने....??यदि नहीं तो अगली बार किसी स्त्री से मिलते हुए इसे समझने की चेष्टा अवश्य करना आप सब...!!यार मान क्यूँ नहीं लेता यह मर्द कि स्त्री उसकी कमजोरी है और उसे अपनी वस्तु समझना उसकी सीनाजोरी !!अब कमजोरी वाली बात तक तो ठीक है,मगर सीनाजोरी वाली बात गलत हो जाती है....जन्मों से पुरुष के हर कार्य में अपनी पूरी आत्मा से हाथ बंटाती यह औरत पुरुष की हर तरह की जायज-नाजायज हिंसा की शिकार बनती है,क्या यह जायज है....??छोटी-बच्चियां तक पुरुष की कामुक नज़रों का शिकार बनाने से बच नहीं पाती...क्या यह जायज है... ??ज्यादातर वह पुरुष से हेय समझी जाती है....और उसी तरह दोभात होती हुई पाली जाती है....क्या यह जायज है....??समूची धरती पर जहां भी वह पेशेवर है...पुरुष के बराबर काम करने पर उसका मेहताना पुरुष से कम है....क्या यह जायज है...??समूची धरती पर वह अपने दारुबाज रिश्तेदारों द्वारा प्रताड़ित और शोषित की जाती है...अपने ही लोगों द्वारा बेचीं तक जाती है...क्या यह जायज है.....दोस्तों मामला सिर्फ बलात्कार का नहीं है....यह मामला स्त्री को अपनी जबरिया बनाने का है....बलात्कार तो उसका एक हथियार भर है...आप अपने गुलाम के संग कुछ भी कर सकते हैं...पुरुष की स्त्री के साथ इसी तरह की यह घोषणा भर है...कि वह सिर्फ पुरुष की बपौती है,इसके अलावा उसका कोई औचित्य नहीं है...यह पुरुषना थेथरई भर है....और जब तक पुरुष अपनी यह थेथरई मार कर दूर नहीं भगा देता...तब तक औरत के साथ हो रहे किसी जुल्म का खात्मा तो दूर की कौड़ी....वह इसकी बाबत सोच पाने में भी असमर्थ है,बेशक वह दावे वह बड़े-बड़े करे....यह तो वह बाबा आदम जमाने से करता आ रहा है....उसने अपने कितने दावे पूरे किये हैं,यह हम और आप सब जानते हैं....!!    

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