भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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धरती के उपर है एक और समन्दर....!!

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

                                धरती के उपर है एक और समन्दर....!!

                          शीर्षक देखकर बेशक थोडा अजीब लग सकता है मगर मेरे जानते धरती पर मौजूद उस समन्दर,जिसमें धरती का सत्तर प्रतिशत जल भरा है,के अलावा भी एक समन्दर है,जिसके बारे में हम जानते ही नहीं और शायद जानना भी नहीं चाहेंगे और इस समन्दर से धरती की एक बेहद छोटी-सी आबादी बडे भरे-पूरे ढंग से,जैसा कि वो अपने बाकी के अन्य साधनों के समुचित उपयोग करता है,उसी भांति वह इस समन्दर का भी अपने मन-माफ़िक इस्तेमाल करता है और मज़ा यह कि यह पानी उसे कभी कम नहीं पडता भले ही धरती की एक बडी आबादी पानी के आभाव में प्यासी मर रही हो या भले ही धरती के करोडों लोग (मर्द-औरत-बच्चे)अहले-सुबह मूहं-अन्धेरे ही पानी के जुगाड में मीलों दूर तक जा-जाकर अपने तसलों में पानी भर-भर लाते हैं,सौ-दो सौ सालों पहले ऐसा नहीं हुआ करता था मगर जबसे शहरीकरण का प्रकोप बढा और उद्योग-धंधों की आंधी आयी...और पानी का उपयोग एक आम आबादी के सम्यक उपयोग के उलट उपरोक्त लोगों(शहरी लोगों और उद्योगपतियों)की भेंट चढ गया.मज़ा यह कि लोगों की सभ्य जमात को पानी भी भरपूर चाहिये था मगर साथ ही इस पागल और मुर्ख समाज को पानी के तमाम श्रोतों को अपने पास रखे जाने से भी एलर्जी थी.इस करके पानी आदमी के आस-पास से दूर होता चला गया,मगर पानी के इस तरह दूर होने का कोई असर इस समाज को कभी नहीं भुगतना पडा,बल्कि इस छोटे से समाज की करनी,उसकी अंड-बंड आवश्यकताओं के पैदा पानी के अनाप-शनाप उपयोग के कारण एक बहुत बडी आबादी आज पानी की कमी से बेतरह त्रस्त है या पस्त है कहना ज्यादा समीचीन जान पड्ता है.
                आदमी का शुरूआती समाज अपनी आवश्यकता की वस्तुओं के स्त्रोतों के प्रति ना केवल सजग हुआ करता था,बल्कि उन स्त्रोतों के प्रति उसमें आदर का भाव भी हुआ करता था(भले आप यह कह लो कि यह आदर भय-जनित था!)और इस वजह से उस समाज ने इन स्त्रोतों की ना सिर्फ़ रखवाली ही की बल्कि उनका "उत्पादनभी किया,यहां तक कि उनकी पूजा भी की !!और आप जिनकी पूजा करते हो उसे अनदेखा कभी नहीं कर सकते,उसे लतिया कभी नहीं सकते अगर आप सच में उसकी पूजा ही करते हो !!इस प्रकार आज से सैंकडों बरस पूर्व तरह-तरह की चीज़ों के प्राक्रितिक स्त्रोत जगह-जगह बल्कि कदम-कदम पर पाये जाते थे और यही मनुष्य उनकी रक्षा किया करता था,यह बात हम दूर ना भी जायें तो घर में ही उपस्थित हमारे बुजुर्गों की सलाह माने तो संभव हो सकता है,जो आज भी चीज़ों के सम्यक (जितना आवश्यक हो बस उतना भर ही)की राय देते हैं,मगर "लोचातो यह है कि बहुत सारी अन्य चीज़ों की तरह पानी की उपलब्धता भी आदमी के एक छोटे से वर्ग को इतनी आसानी से हो चुकी है कि वह पानी का समुचित उपयोग तो भला क्या जाने...उसका समुचित मुल्य तक भूल गया है..यही वो बिन्दु है,जहां समस्या के जन्म का एक बहुत बडा कारण मौजूद है!
            शहरी-करण ने जिस तरह धरती के समस्त साधनों को एक छोटे से वर्ग को आप्लावित कर बाकि के सारे लोगों को उन साधनों से वंचित कर दिया है,उसी तरह पानी का भी यही हाल है.मालूम हो कि इस धरती के कुछेक हज़ार शहरों में कुछ करोड पक्के मकान हैं और कुछ लाख ऊंची-ऊंची ईमारतें और सबसे अहम कुछेक लाख होटल्स,जिनकी छतों के ऊपर छोटी और मध्यम से लेकर बडी-बडी विशालकाय तक टंकियां हैं,जिनमें एक बहुत बडा नहीं भी कहें,तो छोटा-मोटा समन्दर तो अवश्य ही है,जिसमें बिना-किसी रुकावट के इतने-इतने अधिक पानी की उपलब्धता है,एक बटन दबाया कि पानी नीचे से छर्र-छर्र-छर्र-छर्र ये जा-वो जा ऊपर....पेशाब किया....और छर्र...छर्र....छर्र....छर्र....बटन दबा...और फ्लश साफ़....एकदम चकाचक....मज़ा यह कि जितना आपने पेशाब नहीं किया है,उससे कई गुना पानी उसे बहाने के लिया बहा दिया आपने.....इस प्रकार पानी इन जगहों पर किस तरह उपयोग में आता होगा यह पानी,यह सचमुच शोध का ही विषय है,और यकीन जानिये यह मैने किया भी है !!
                    इस सामान्य से शोध में एक बडी सामान्य-सी बात उभरकर सामने आती है कि पानी की अत्यन्त आसान उपलब्धता के कारण शहर में जीने वाला एक सुविधाभोगी वर्ग पानी का एकदम ही नाजायज उपयोग करता है,रसोई,में बाथरूम में तथा अन्य जगह पर इसके द्वारा किया जाने वाला पानी का गैर-जायज उपयोग एकदम से चिंतनीय है,इनके बच्चे जिस तरह पानी का दुरुपयोग करते पाये जाते हैं उसे देखकर किसी को भी आश्चर्य हो जाए और तो और तमाम प्रकार के होटलों में इसी जमात के द्वारा किया जाने वाला अपव्यय एकदम से निन्दनीय है,किन्तु ना तो इस तरफ़ किसी का ध्यान ही जाता है और इस प्रकार ना ही इस सबको कोई रोकने या टोकने वाला ही है सच तो यह है कि दुनिया के तमाम शहरों के छ्त के उपर मौजूद इन टंकियों में भरे पानी की मात्रा किसी भी प्रकार से किसी समन्दर से कम नहीं ठहरेगी !!
             मगर शहरवासियों की सोच की महिमा भी अपरम्पार है क्योंकि पानी के संकट की बात आज से नहीं बल्कि बहुत समय से कही जा रही है,मगर शहर की ऊंची बिल्डिंगों में रहने वाले लोगों को शायद इस सबसे कोई सरोकार ही नहीं है,क्योंकि जिस प्रकार इस वर्ग की किसी प्रकार की सुविधा में कोई कटौती नहीं होती है,उसी प्रकार उनके द्वारा पानी के उपयोग में भी कोई कमी नहीं होती ! इस तरह हो यह रहा है कि एक तरफ़ सरकार और तरह-तरह के संगठन पानी कम-पानी कम चिल्लाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर इस वर्ग द्वारा अपनी करनी द्वारा इसकी खिल्ली उडाए जा रहे हैं,मगर सच तो यह है कि यह सब अब बहुत ज्यादा दिन नहीं चलने को,क्योंकि आज न कल धरती के भीतर का पानी खत्म होने को ही है, अगर अब भी यह वर्ग नहीं चेता तो कल अपनी ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों की खिडकियों में बैठे ये लोग पानी कम-पानी कम चिल्लाते रह जाएंगे और नीचे वाले लोग इनकी खिल्ली उडाएंगे कि और नाचो…और करो पानी की ऐसी की तैसी…अब हुई ना तुम्हारी ऐसी की तैसी…पानी का बेतरह अपव्यय करने वाले लोग पच्चीस-पचास लाख और करोडों रुपये में फ़्लैट और बंगले खरीदने वाले लोग जरा-सा और खर्च कर पानी की रिचार्जिंग कर इस समस्या को तक्ररीबन सदा के लिये टाल सकते हैं,मगर यह तभी सम्भव है जब इन्हें होश आये या फिर अक्ल आ जाये…वरना कभी अगर धरती ने अपनी दिशा बदली तो शायद मरुस्थल में भी पानी बरस जाये…मगर इन टंकियों का समन्दर कभी अगर सूख गया तो हमेशा के लिये मरुस्थल बन जायेगा…!!
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