मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
गरज-बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला
चिडियों को दाने , बच्चों को , गुडधानी दे मौला !!
कई दिनों से आँखें पानी को तरस रही थीं
और अब जब पानी बरसा तो कई
दूसरी आँखें पानी से तर हो गयीं हैं,
पानी उनकी झोपड़-पट्टियों को लील लिए जा रहा है....पानी
जो सूखे खेतों को फसलों की रौनक लौटने को बेताब है
वहीं शहरों में गरीबों को लील जाने को व्यग्र...!!
पानी को कतई नहीं पता है कि उसे कहाँ बरसना है और कहाँ नहीं बरसना !!
शायर ने कहा भी तो है, "बरसात का बादल है.....दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है,किस छत को बिगोना है !!
तो प्यारे दोस्तों ,यूँ तो प्रकृति हमारी दोस्त है
...और सदा ही दोस्त ही बनी रही है....
लेकिन हम सबने अपनी-अपनी हवस के कारण
इसे मिलजुल कर अपना दुश्मन बना डाला है....
प्रकृति को हमने सिर्फ़ अपने इस्तेमाल की चीज़ बना डाला है....
और अपने इस्तेमाल के बाद अपने मल-मूत्र का संडास....
ऐसे में यह कहाँ तक हमारा साथ निभा सकती है.....
और जो यह हमारा साथ नहीं निभाती...
तो यह हम पर कहर हो जाती है....
कारण हम ख़ुद हैं...!!!!
और यह सब समझबूझकर भी...........
यही सब करते रहने को अपनी नियति बना चुके
हम लोगों को भविष्य में इस कहर से कोई भी नहीं बचा सकता.....
उपरवाला भी नहीं...!!
पानी भी तो हमारा दोस्त ही है....
और हमारी तमाम कारगुजारियों के बावजूद भी
हर साल हमारी मदद करने,
हमें जीवन देने के लिए ही आता है !
हम कब ख़ुद इसके दोस्त बनेंगे ??
ख़ुद तो दुश्मनों के काम करना,
और इसके एवज में कोई इसकी प्रतिक्रिया व्यक्त करे
तो उसे पानी पी-पी कर कोसना,
क्या यही मनुष्यता है??
प्यारे मनुष्यों,
मैंने तुम्हें यही बताना है..........
कि अपनी हवस को वक्त रहते लगाम दे दो ना...
अपने लालच को थोड़ा कम कर दो ना....!!
तुम्हारे जीवन में सुंदर फूल फिर से खिल उठेंगे....
तुम्हारा जीवन फिर से इक प्यारी-सी बगिया बन जाएगा..!!
जैसा कि तुम सदा से कहते रहे हो...."धरती पर स्वर्ग"...
तो इस स्वर्ग को बनाने का भी यत्न करो....
कि नरक बनाए जाने वाले कृत्यों से "स्वर्ग"नहीं निर्मित होता...
कभी नहीं निर्मित होता....यही सच है....!!
मगर शायद आदमी के संग सबसे बड़ी दिक्कत तो यही है
कि वह समझता तो बहुत है और बातें भी अपनी समझ से बहुत ज्यादा करता है
....मगर काम अपनी बतायी गयी बातों के ठीक विपरीत ही करता है....
हर समय अपने किये गए कार्यों के परिणाम की बाबत रोता भी रहता है....
और ठीक उसी क्षण वो वही कार्य करने भी लग जाता है....
आदमी की लीला शायद भगवान् भी नहीं जानता....
सो पानी पानी बरस रहा है...तो कहीं बरसता ही जा रहा है....
और कहीं वह धरती से इतनी दूर है कि लगता ही नहीं कि कभी बरसेगा भी....
उफ़...कैसा है यह आदमी.....
उफ़ कब सुधरेगा ये आदमी....
उफ़ क्या होगा इस आदमी का.....
उफ़ कौन समझ पायेगा इस नामाकूल-से भूत की ये बात.........!!!???!
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कौन समझेगा इस नामाकूल-से भूत की बात......??!
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
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2 टिप्पणियां:
bhootnath ji,
mere blog par aane keliye aabhaar aapka.
bahut sundar aalekh, samajhdaari ki baaten ab sirf bhoot(ghost and past) hin karte wartmaan( present & human) nahin. wartmaan ko ab koi ishwar bhi nahin samajh sakta, aur prakriti ko to asambhaw...
पानी को कतई नहीं पता है कि उसे कहाँ बरसना है और कहाँ नहीं बरसना !!
शायर ने कहा भी तो है, "बरसात का बादल है.....दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है,किस छत को बिगोना है !!
bahut achha likha hai aapne, rochak shaily.
bahut shubhkaamnaayen.
जब हम आदमी को समझ जाएँगे....प्रकृति तो समझ में आ ही जाएगी.....
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