भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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छोड़ ना गाफिल....जाने दे......!!

रविवार, 27 दिसंबर 2009

पिघल रही है अब जो यः धरती तो इसे पिघल ही जाने दे !!
बहुत दिन जी लिया यः आदम तो अब इसे मर ही जाने दे !!
आदम की तो यः आदत ही है कि वो कहीं टिक नहीं सकता
अब जो वो जाना ही चाहता है तो रोको मत उसे जाने ही दे !!
कहीं धरम,कहीं करम,कहीं रंग,कहीं नस्ल,कितना भेदभाव
फिर भी ये कहता है कि ये "सभ्य",तो इसे कहे ही जाने दे !!
ताकत का नशा,धन-दौलत का गुमान,और जाने क्या-क्या
और गाता है प्रेम के गीत,तू छोड़ ना, इसे बेमतलब गाने दे !!
तू क्यूँ कलपा करता है यार,किस बात को रोया करता है क्यूँ
आदम तो सदा से ही ऐसा है और रहेगा"गाफिल" तू जाने दे !!
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2 टिप्‍पणियां:

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

इस अच्छी रचना के लिए
आभार .................

Apanatva ने कहा…

कहीं धरम,कहीं करम,कहीं रंग,कहीं नस्ल,कितना भेदभाव
फिर भी ये कहता है कि ये "सभ्य",तो इसे कहे ही जाने दे !!

bahut sacchee baat aur gahara bhav liye hai aapkee ye rachana.........

ise umr me bhee bhoot naam se hee dar lagata hai par aapkee rachana ne to sara dar bhaga diya........:)

 
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