ऐ भाई मुझसे पूछ ना आदमी चाहता क्या है.....आदमी तो सिर्फ़-व्-सिर्फ़ मस्ती और भोग चाहता है....बदकिस्मती से उसे धरती पर कर्म ही करने पड़ते हैं,कर्म करना ही तो दुःख हैं !! जो चाँदी की चम्मच मुंह में लेकर आते है वो कहाँ कर्म करते हैं,उन्हें भोग से फुर्सत ही कहाँ!!ऐसे लोगों को देखना भी तो दुःख का ही एक दूसरा रूप है..और तुझे क्या-क्या बताऊँ !!
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आदमी चाहता क्या है
शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008
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