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कोई अकुलाहट है सदा मेरे भीतर,जिसे व्यक्त करने को व्यग्र रहता हूँ,मैं मुझसे मिल पाने के लिए पागल बना रहता हूँ...जीते-जी शायद न हो पाए खुद से मिलना...इसलिए भूत बना हुआ सारे जहां में आवारा फिरता हूँ....!!
हम पुरुषों की तमाम खामियों के बावजूद हमारा वैवाहिक जीवन सफल है इसके लिए स्त्रियों को अनंत धन्यवाद दीजिये और अहसान मानिए उन समझदार स्त्रियों का जो हमारी तमाम लंठ-गिरी के बावजूद हमें माफ़ किए रहती है .....इसका १% भी अगर वे हों तो धक्के मार कर हम उन्हें घर से बहार कर देन!!(घर तो हमारा या हमारे बाप का है ना !!)