- bhoothnath said...
- मोनिका जी ,औरतों की बराबरी की बात करना और बात है...उसे अपनी जिंदगी के व्यवहार में शामिल करना और बात ....हममे से किसी की भी बहन राह में किसी से बातें करती नज़र आ जाए... हमारी असलियत तुरत बाहर आ जाती है ...हममे से किसी की बीवी ऊंचे स्वर में आवाज़ निकाले हमारा पौरूष जैसे जाग जाता है.. लेखकों की बातों का भरोसा क्या... किसी के भी घर में झांकिए ...वही सब कुछ है.. कहीं दबा- ढंका. कहीं उघाडा - नंगा.... सच सिर्फ़-व्-सिर्फ़ यही है कि औरत को हमने वस्तू माना है ... ख़ुद औरत ने भी अपने-आप को वैसा ही बना लिया है ...सुंदर.. साफ़-सुथरी ... गोया कि सजाकर रखने लायक ..या पकाकर खाने लायक ....!! मै हैरान हूँ मगर मै क्या कर सकता हूँ, क्यूंकि मै तो भूत हूँ !!!
Visitors
बुधवार, 15 अक्टूबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें