चिंताएं...एक लम्बी यात्रा है....अंतहीन....
चिंताएं....एक फैला आकाश है....असीम.....
चिंताएं....हमारे होने का इक बोध है.....
चिंताएं....हमारे अंहकार का प्रश्न भी...
चिताएं...कभी दूर नहीं होती हमसे....
...हमारे कामों से ही शुरू होती हैं....
हमारी अनंत....अंतहीन...चिंताएं....और.
हमारे बुझे-बुझे कामों के बर-अक्स...
हरी-भरी होती जाती है हमारी चिंताएं....
एक काम ख़त्म...तो दूसरा शुरू....
दूसरा ख़त्म...तो तीसरा....
दरअसल.......
हमारे काम कभी ख़त्म नहीं होते....
इसके एवज में....
चिंताएं भी खरीद ली जाती हैं.....
चिंताएं हमारी कैद है...हमारा फैलाव भी....
चिंताएं हमारा समाज है..हमारा एकांत भी....
चिंताएं हमारा अहसास हैं....और...
हमारी जिन्दगी के लिए पिशाच भी....
चिंताएं प्रश्न है...और उसका उत्तर भी....
चिंताएं इस बात का पुख्ता प्रमाण हैं...
कि हम कुछ नहीं कर सकते चिंता के सिवा...
और जिसे हम अपना किया हुआ समझते हैं...
होता है कोई और ही वो हमसे करवा....
मजा ये कि मानते हैं हम....
उसे अपना ही किया हुआ....!!
उसी से तो निकलती हैं...हमारी चिंताएं....
और हमें जलाती भी हैं...बुझाती भी....
.....चिंताओं में अगर...गहरा जायें हम....
तब जान सकते हैं हम.....
अपने अस्तित्व का भ्रम...
हमारे होने की अनुपयोगिता.....
और................
हमारी चिंताओं की असमर्थता....
हमारे हाथ-पैर मारने की व्यर्थता....
और हमारे तमाम दर्शन का पागलपन....
बेशक हमारा कार्य हमारा धर्म है.....
दरअसल..........
दूर आसमान में एक खूंटा बंधा है....
उस खूंटे से अगरचे हम.....
अपनी चिंताओं को बाँध सकें....
तो ही आजाद हो सकते हैं......
अपनी चिंताओं के कैदखाने से हम........!!
चिंताएं तो दरअसल
हमारे चिंतन का अंत है
इस तरह चिंताएं
दरअसल हमारा ही अंत हैं !!
2 टिप्पणियां:
badi saari chintaayen khayi jaa rahi hai aapko. Abhi tak to bahut moti ho chuki hogi chinta
अरे हाँ..बिल्कुल मेरी तरह मोटी..हा..हा..हाहा..
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