...आदमी का तो काम ही यही है भाई....
पहले नागफनी उगाना...
फ़िर उसके काँटों में
ख़ुद ही फंस भी जाना...
बेशक उसके बाद भी
वो कुछ नहीं सीखता....
फूलों से भरे पौधों में से
फूल तोडे जाते हैं....
और कांटे वहीं-के वहीं....
फूल फ़िर उगते हैं..
फिर तोड़ लिए जाते हैं......
टूटे हुए फूल
आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....
फूल ख़त्म हो रहे हैं....
और कांटे बढ़ते जा रहे....
और आदमी का ,दामन ....
खून से तर......!!
1 टिप्पणी:
फूलों से भरे पौधों में से फूल तोडे जाते हैं....और कांटे वहीं-के वहीं....फूल फ़िर उगते हैं..फिर तोड़ लिए जाते हैं......टूटे हुए फूल आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....फूल ख़त्म हो रहे हैं....और कांटे बढ़ते जा रहे....और आदमी का दमन....खून से तर......!!
भूतनाथ जी
सच्ची बात अपने ही अंदाज़ मैं
अक्सर ऐसा ही होता है, पर लेखन तो वो होती है जो ऐसे ही शब्दों को काव्य मैं पिरो ले
बहुत सुंदर, अति उत्तम, सुंदर सुंदर सुंदर भाई
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