इस हकीकत की ओर मगर किसी का भी ध्यान नहीं है....सबको बस विकास की धून सवार है....इस विकास से कितनों को क्या,कैसे,कितना,कब हासिल होगा और उसके अनुपात में किसको कितना,क्या,कैसे,कब,हासिल होगा....दरअसल इस टाइप का विकास भारत जैसे श्रम-बाहुल्य-घनी आबादी वाले देश और देश के अकुशल लोगों के लिए सही एवम सम्यक अर्थों में लाभकारी है भी की अथवा नहीं, इस विषय पर शोध करना तो दूर,इस पर सोचा भी नहीं गया है...आई टी और अन्य क्षेत्रों का विकास तो ठीक बात है....मगर उसके लिए ग्रामीण क्षेत्र भूख...जमीन से बेदखली...अंतत भूखों मरने की कामत चुकाए...किसी कमीने को भी न्यायपूर्ण नहीं लग सकती....मगर पिछले दशकों में हमारे विद्वान राजनेताओं ने बहुराष्ट्रीय सिद्दांतों को अपना लिया है...दरअसल उन्हें तो फर्क भी नहीं पड़ता है कि उनके देश के असंख्य लोग भूखे मरते हैं...नंगे रहते हैं...घरविहीन हैं...या शिक्षा से वंचित हैं.... सच तो यही इसीके एवज में तो उनके अरबों डालर स्विस बैंकों में जमा हैं....धन्य है ऐसे देशभक्तों को पालता-पोसता हमारा देश.....लेकिन मेरी तो भगवान् से यही कामना है कि वो इन्हें कभी माफ़ ना करे...इन्हें इसी जन्म में कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे...और ये शैतान तक के रहमों-करम को तरस जायें......!!
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विकास.............????????????
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
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