मेरी प्यारी-प्यारी रात.....!!
और भी तनहा कर जाती है
तनहा-तनहा बहती रात ....
चुपके-चुपके पैर दबाकर
जाती है ये आती रात......
अक्सर आकर खा जाती
है ख्वाबों को भी काली रात
गम रोये तो आँचल देकर
मुझे सुलाती प्यारी रात....
प्यारा सपना आते ही दूर
चली जाती है सारी रात....
आँखों को मूँद लेता हूँ तो
आखों में भर जाती रात....
शाम गए जब घर लौटूं तो
जख्मों को सहलाती रात....
मुझसे तो अक्सर ही प्यारी
बातें करती प्यारी रात....
कुछ मुझसे सुनती है और
कुछ अपनी भी सुनाती रात.....
2 टिप्पणियां:
bahut sundar.
kitne bhaav jaga jaati raat!kavita ek banaa jaati raat----bhoot naath ko raat pyari lagati hai...aap ne to blog ka page bhi kalaa kar rakha hai!interesting...very very interesting
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