दिल में बेकली हो तभी हर शाम गुनाहगार लगे है तभी....
शिद्दत हो गर दिल में तो...अपने ही यार लगे है सभी...!!
यार दो बोल मीठा भी बोल दे तो मान जाऊं मैं अभी...
नफरत से लबालब तिरे ये हर्फ़ तो तलवार लगे है सभी....!!
भीतर जो देख ले आदम तो ख़ुद को बदल ही दे अभी...
बाहर तो इक अपने अपने सिवा खतावार ही लगे है सभी..!!
हर कोई हर किसी को माफ़ कर दे तो सब बदल जाए...
मन में बोझ लेकर जीने से जीना भी दुश्वार लगे है सभी..!!
चन्द साँसे ही सौगात में लेकर आयें हैं हम सब यहाँ...
हर नेमत को आपस में बाँट लें,कि यार लगे है सभी....!!
मुहब्बत भरा दिल ये जो अपने पास ना हो "गाफिल"
चूम कर कलियाँ कहें फूल को,कि खार लगे हैं सभी....!!
4 टिप्पणियां:
रचना सचमुच बहुत अच्छी है. फ़िर भी मुझे थोड़े से हेर-फेर की गुंजायश लगी. लिखते रहें.
लम्हे कहें शब्दों को चूमकर, यार लगे हैं सभी
भाई जी बहुत बढ़िया।
और हां www.imeem.com पर जाकर साइन करें और अपनी फाइल अपलोड़ करें। अपलोड हो जाने के बाद उसका कोड लें, लेकिन कोड लेने से पहले ऑटो प्ले पर क्लिक करना न भूलें। बस फिर क्या, उस कोड की जावास्क्रिप्ट को अपने ब्लॉग की बगल पट्टी में डाल दें।
हो गया काम।
कल तक मुझे भी नहीं पता था, लेकिन बिना किसी के सलाह के एक्सपेरिमेंट करते करते आ गया। कोई समस्या आए तो बताइएगा। और हां pyala.blogspot.com पर ज़रूर आना
aadarsh bhaayi dhanyavad...ab apna music taiyaar karun..tab aage badhungaa...aur ye kya ki aapke blog par aanaa bhul jaaungaa...kyaa baat karte ho aap...??
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