तुम्हारे बिखराए हुए शब्दों के कणों को चुन रहा था मैं...
जो जमी में बेतरतीब थे धूल से सने हुए.....
बड़े प्यार से मैंने उन्हें उठाया वहां से...
हल्का-हल्का झाडा-पोंछा उन्हें...
और थोड़ा थपथपाया...
तभी तो उनका रूप निखर-कर
ऐसा सामने आया......
जमीं पे जब देखा था उन्हें..
कुछ चमकती हुई-सी वस्तू-से लगे थे..
हाथ में जब लिया,तब लगा...
अरे ये तो मोती हैं...
फिर बाहर नहीं छोडा उन्हें...
दिल के भीतर रखकर घर ले आया...
और अब उनका दीदार कैसे कराऊँ...
वो तो अब मेरे मन को मथ रहे हैं...
वो अब मेरी रूह को जज्ब कर रहे हैं....!!
8 टिप्पणियां:
kya khoob likha hai aapne. Shabdon ko aap bhi chunte ho ?
Bhai bhootnath ji,
Ap mere blog par aye meree khush naseebee.Achchi rachana ke roop men tippanee,padh kar achcha laga.Apkee teenon kavitaon Tumhare bikharae...,Chintayen,Ek tha bachpan..ne kafee kuch sochane par majboor kar diya.Aur dil men uthal puthal to machanee hee thee.Bhai vo shbd hee kya jo andar tak na mar karen.Choonki bachchon ke liye man bhee kam kar raha hoon isliye
Bachpn ne jyda prabhavit kiya.Meree badhai aur shubhkamnaen.
Hemant Kumar
बहुत खूब कहा आपने... बधाई स्वीकारें..
aap-sabon kaa prem paakar main abhibhut hun....
Bahut achcha likha hai aapne. Badhai.
bahut hi sunder shabdon ka jaal buna hai aapane bhootnathji!...mere blog par upasthiti ke liye dhanyawad!
उम्दा रचना।
और वो प्लेबैक वाली प्रक्रिया थोड़ी जटिल है। यदि आपको भी वैसा करना है तो मैं आपके लिए भी खुद इस तरह का रिकॉर्ड करके उसका लिंक कोड आपको दे दूंगा। इसके लिए आप बस विषय वस्तु बता दें कि क्या कहना है.
संगीत सहित लगाउंगा।
धन्यवाद।
शब्दों की रूह के ज़ज्बे का अहसास
ले आयी आप की रचना हमारे पास
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