सीने में जो छुपा बैठा है॥वो भी है दर्द......
आंखों में जो सजा बैठा है...वो भी है दर्द....!!
दर्द की मेरे साथ हो गई है आशिकी इतनी.....
सूखे आंसुओं से जो रोता है...वो भी है दर्द....!!
राहें आसान किया करता है सदा ही वो मिरी..
राहों में जो कांटे बिछा देता है...वो भी है दर्द....!!
जिस्म के छलनी हो जाने की आदत हो गई है....
दिल को जो छलनी करता है ...वो भी है दर्द...!!
कभी तो ख़ुद से ख़ुद को भी ऐसा भुला देता है
और जो लाज़वाब कर देता है......वो भी है दर्द...!!
इक साँस को दूसरी पर अख्तियार नहीं रहता
हर साँस धौकनी-सी चला देता है वो भी है दर्द !!
दर्द ही जैसे इक जिन्दगी की तलाश है "गाफिल"
अब तो जो मज़ा देने लगा है...वो भी है दर्द....!!
2 टिप्पणियां:
दर्द को भी दर्द से बयान किया ये भी दर्द ही है.....बहुत खूब!
जिस्म के छलनी हो जाने की आदत हो गई है....
दिल को जो छलनी करता है ...वो भी है दर्द...!!
bahut umda khoobasoorat rachana.
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