आज बहुत उदास-उदास सा है दिल...
क्यूँ भला इस तरह नासाज सा है दिल....
तरन्नुम भी कोई धीमा-धीमा सा है....
कफस में जैसे किसी कैद-सा है दिल....
कुछ बोलने को जी नहीं करता है....
कुछ बोलने को जी नहीं करता है....
इक गूंगे की आवाज़-सा है दिल.....
किसी का इसपर ध्यान नहीं जाता...
बेवजह बजता साज-सा है दिल.....
दिल से दुश्मनी क्या करें "गाफिल"
किसी मुहब्बते-नाकाम सा है दिल...
2 टिप्पणियां:
उम्दा रचना
कुछ बोलने को जी नहीं करता है....
इक गूंगे की आवाज़-सा है दिल.....
gungey ki awaaz sa....!
बेवजह बजता साज-सा है दिल.....
bahut khuub!
achchee lagi rachna
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