भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

Visitors

रविवार, 30 नवंबर 2008

जीवन तो है इक आग.....!!

कतरा-कतरा क्या मिला....कतरा-कतरा आग कतरा-कतरा सूर है... और कतरा-कतरा राग !!जीवन का तो मर्म क्या समझ पाये....आदम थोड़ा-सा तो कर्म है और थोड़ा अपना "भाग" !!इतना सपना मत देख..सपना इतना सच नहीं सच तो सामने है देख..आँखे खोल और जाग !! हाँ भइया मुश्किल तो बहुत है जीना मेरे प्यारे लेकिन मुश्किल में जीना ही तो जीवन का राग !!अजीब है ये जीवन कि कुछ लोग तो हैं खुशहाल कुछ लोगों का बेहाल, और दामन भी है चाक !!राख हो रहे हैं हर पल ख़ाक...
रविवार, 30 नवंबर 2008

प्यारे पी.एम् साहेब....!!

प्यारे प्रधानमंत्री जी, आपको इस देश के तमाम लोगों का राम-राम ,आशा है सकुशल और सानंदित होंगे.....वैसे तो हम सब आम लोग आप लोगों की खुशियों के लिए भगवन से प्रार्थना करते हैं...मगर ना भी करें तो आप लोगों को क्या फर्क पड़ता है... (गलती से भगवान् लिख दिया है..आप अपनी सुविधानुसार खुदा..गाड...वाहे गुरु,जो भी चाहे कर लें...क्या करें हम हिंदू तो सम्प्रायवादी हैं...साले हम आज तलक भी आते-जाते लोगों को राम-राम ही करते चल रहे...
शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

हम क्या करे गाफिल....??!!

वहाँ कौन है तेरा...मुसाफिर....जायेगा कहाँ.....दम ले ले.....दम ले...दम ले ले...दम ले ले घडी भर...ये समा पायेगा कहाँ...पिघलता सा जा रहा है हर ओरकिसी बदलती हुई-सी शै की तरह.....किसका कौन-सा मुकाम है...किसी को कुछ पता भी तो नहीं....कभी रास्ते खो जाते हैं...और कभी तो...मुकाम ही बदल जाते हैं....बदलता ही जा रहा है सब कुछ....वजह या बेवजह...किसी को कुछ भी नहीं पता और जो कुछ पता है हमें...वो कितना सोद्देश्य है...या कितना निरक्षेप....और...
गुरुवार, 27 नवंबर 2008

रिश्ते......और ब्लोगिंग....!!

(रचना जी की कविता पर...) ब्लोगिंग इन्टरनेट की देन है......, ....और रिश्ते आदमी का इजाद...!! ...........ब्लोगिंग एक शौक है...., .........और रिश्ते एक जरूरत....!! ब्लोगिंग हमारी सोच है......., और रिश्ते सोच का सार्थक अंत....!! रिश्ते अगर किसी भी चीज़ से बनते हैं...., तो उन्हें बेशक बन ही जाने दें....!! रिश्ते बाकी ही कहाँ रहे... अब भला आदमियत में....!! अब तो सिर्फ़ आदमी है...., और ढेर सारे उसके शौक...!! इनके बीच अगर थोड़े-से रिश्ते.. पैदा...
गुरुवार, 27 नवंबर 2008

अरे भाई राज....कहाँ हो....!!??

अरे भाई राज कहाँ हो...........?? ...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक...
गुरुवार, 27 नवंबर 2008

अरे भाई राज.....कहाँ हो....!!??

अरे भाई राज कहाँ हो...........?? ...........अरे भई राज कहाँ हो आज तुम...?देखो ना अक्खी मुंबई अवाक रह गई है कल के लोमहर्षक हादसों से.....चारों और खून-ही-खून बिखरा पड़ा है..और धमाकों की गूँज मुंबई-वासियों को जाने कब तक सोने नहीं देगी....और जा हजारों लोग आज मार दिए गए है...उनकी चीख की अनुगूंज एक पिशाच की भांति उनके परिवार-वालों के सम्मुख अट्टहास-सी करती रहेगी...हजारों बच्चे...माएं...औरते...बूढे...और अन्य लोग.....यकायक हुए इस हादसे...
सोमवार, 24 नवंबर 2008

शुक्रिया दोस्तों.....!!

भूतों को नींद तो आती नहीं है ;सो यूँ ही ऊंघ रहा था तो किसी भूत ने बताया कि यार रात को जो जो तुम ऊट-पटांग बडबडा रहे थे उसकी कुछ तारीफ़ वगैरह हुई है भूतों की क्या तो तारीफ़ और क्या तो निंदा !!फिर भी मन में आया कि अगर ऐसा है तो अपन भी पलटवार कर ही देते हैं!!तो दोस्तों आप सबों को इस भूत का तहेदिल से धन्यवाद् ,बाकी मै दिन में तो निकलता नहीं ,बस अभी आपका शुक्रिया अदा करने आ गया ,आपसे बात करने तो रात को ही आऊंगा तब तक नॉन कमर्शियल...
सोमवार, 24 नवंबर 2008

मैं भूत बोल रहा हूँ........!!

मैं भूत बोल रहा हूँ !! मेरी गुजरी हुई जिन्दगी के प्यारे-प्यारे दोस्तों,अब बड़ा प्यार उमड़ता है आपलोगों के ऊपर!!जबकि जब तक मैं जिन्दा था,आपसबों से झगड़ता ही रहता था!!मैं और मेरे जैसे अनेक लोग अक्सर ऐसी-ऐसी बातों पर झगड़ते थे कि आज जब मई उन बातों को सोचता हूँ,तो ख़ुद पर बड़ा आश्चर्य होता है,कि उफ़ हाय मैं ऐसा था?यदि मैं ऐसा था तो जीते-जी मुझे इस बात कि अक्ल क्यूँ नहीं आई ,आदमी होते हुए मुझमें आदमियों जैसा विवेक क्यों नहीं जागृत...
रविवार, 23 नवंबर 2008

ओ चोखेरबालियों......!!

यहाँ आता जाता रहता हूँ....पढता हूँ...महसूस करता हूँ....कमेन्ट नहीं दे पाता.....क्या लिखूं कि जो इन आलेखों के परिप्रेक्ष्य में आंदोलित होता हुआ-सा लगे...क्या करूँ कि आदमी जात...वर्ग...लिंग...धरम...और अन्य विसंगतियों से उबर सके...और इन सब से ऊपर उठ कर एक सुंदर-सा जीवन जी सके....अपने-आप की तो गारंटी लेता हूँ.....मगर जो भी लोग उपरोक्त चीजों...(विसंगतियों) के कारण सबका जीना हराम किए देते हैं....उन्हें किन शब्दों में और क्या तो...
शनिवार, 22 नवंबर 2008

गाफिल इतना सस्ता नहीं है...!!

इतना तनहा रहना भी अच्छा नहीं है.... सबसे जुदा रहना भी अच्छा नहीं है....!! हर बात पर हैरत से आँखें फैला दे आदमी अब इतना भी बच्चा नहीं है....!! खुदा के नाम पर दे खुदा को ही गच्चा.... पक गया है ये अक्ल का कच्चा नहीं है..!! आदमी के साथ मिल-बैठ मैंने जाना है ये आदमी में अब रत्ती-भर भी बच्चा नहीं है..!! आओ सब मिलके मुहब्बत को दफन कर दें कि इसके बगैर तो अब कोई रास्ता नहीं है !! तू आए और तेरे आते ही तेरे साथ चल दे...? ओ कज़ा,"गाफिल"अभी...
शनिवार, 22 नवंबर 2008

कोशिश करता हूँ छुपाने की.....!!

जो तुम पढ़ते हो मेरे चहरे पर... कोशिश बहुत करता हूँ छुपाने की !! हरदम हंसता रहता हूँ ना मैं... तो कोशिश करो मुझे रुलाने की..!! जिन्दगी तो हर किसी की गोया.. ख्वाब हो इक पागल दीवाने की !! चेहरे की लकीरें उसकी हैं ऐसी... छिपने की और ना छिपाने की !! जिन्दगी जीने की खातिर भईया जरुरत है किसी नए बहाने की !! ख्वाब-ख्वाब..ख़याल-ख़याल...बस हयात है महज इक अफ़साने सी !! अब तो जरुरत है भाई "गाफिल" तुझको भी यहाँ से भाग जाने की ...
शनिवार, 22 नवंबर 2008

मैं तेरा क्या लगूं.....!!

कितना भी रहूँ ग़मगीन मगर हंसता हुआ लगूं... कोई बद-दुआ भी दे तो उसे बन कर दुआ लगूं !! ये कड़ी धूप और कभी जो हो बादलों की छाँव... हर मौसम में मैं फूल सा खिलता ही हुआ लगूं...!! कई धरम हैं यहाँ और रिवायतें भी हैं कई.... हर किसी को मैं उसके धरम का मसीहा लगूं..!! अभी तो मैं रात का सन्नाटा बुन रहा हूँ "गाफिल" दिन में आकर पूछना सूरज कि मैं तेरा क्या लगूं.....
गुरुवार, 20 नवंबर 2008

गुनाहगार लगे हैं सभी....!!

दिल में बेकली हो तभी हर शाम गुनाहगार लगे है तभी.... शिद्दत हो गर दिल में तो...अपने ही यार लगे है सभी...!! यार दो बोल मीठा भी बोल दे तो मान जाऊं मैं अभी... नफरत से लबालब तिरे ये हर्फ़ तो तलवार लगे है सभी....!! भीतर जो देख ले आदम तो ख़ुद को बदल ही दे अभी... बाहर तो इक अपने अपने सिवा खतावार ही लगे है सभी..!! हर कोई हर किसी को माफ़ कर दे तो सब बदल जाए... मन में बोझ लेकर जीने से जीना भी दुश्वार लगे है सभी..!! चन्द साँसे ही सौगात...
मंगलवार, 18 नवंबर 2008

तुम्हारे बिखराए हुए शब्द....!!

तुम्हारे बिखराए हुए शब्दों के कणों को चुन रहा था मैं... जो जमी में बेतरतीब थे धूल से सने हुए..... बड़े प्यार से मैंने उन्हें उठाया वहां से... हल्का-हल्का झाडा-पोंछा उन्हें... और थोड़ा थपथपाया... तभी तो उनका रूप निखर-कर ऐसा सामने आया...... जमीं पे जब देखा था उन्हें.. कुछ चमकती हुई-सी वस्तू-से लगे थे.. हाथ में जब लिया,तब लगा... अरे ये तो मोती हैं... फिर बाहर नहीं छोडा उन्हें... दिल के भीतर रखकर घर ले आया... और अब उनका दीदार...
सोमवार, 17 नवंबर 2008

चिंताएं !! ...हमारा अंत हैं.....!!

चिंताएं...एक लम्बी यात्रा है....अंतहीन.... चिंताएं....एक फैला आकाश है....असीम..... चिंताएं....हमारे होने का इक बोध है..... चिंताएं....हमारे अंहकार का प्रश्न भी... चिताएं...कभी दूर नहीं होती हमसे.... ...हमारे कामों से ही शुरू होती हैं.... हमारी अनंत....अंतहीन...चिंताएं....और. हमारे बुझे-बुझे कामों के बर-अक्स... हरी-भरी होती जाती है हमारी चिंताएं.... एक काम ख़त्म...तो दूसरा शुरू.... दूसरा ख़त्म...तो तीसरा.... दरअसल....... हमारे...
सोमवार, 17 नवंबर 2008

एक था बचपन.......!!

एक था बचपन....बड़ा ही शरारती....बड़ा ही नटखट...., वह बड़ों को करता था.....बार-बार ही डिस्टर्ब....., और छोटों से करता था...हर वक्त ही मारधाड़...., वो कुछ काम तो...करता भी नहीं था...., खेलता ही रहता था.....हर वक्त...., कभी ये तोडा...तो कभी वो....., और कभी-कभी तो..., हाथ-पैर तक तुड़वा बैठता था.... खेल-खेल में ही बचपन... तो कभी कुछ जला भी लेता था... अनजाने में ही बचपन.....!! बचपन तो किसी की कुछ..... सुनता भी तो नहीं था..... बस...
रविवार, 16 नवंबर 2008

कांटे..फूल...आदमी....!!

...आदमी का तो काम ही यही है भाई.... पहले नागफनी उगाना... फ़िर उसके काँटों में  ख़ुद ही फंस भी जाना... बेशक उसके बाद भी  वो कुछ नहीं सीखता.... फूलों से भरे पौधों में से  फूल तोडे जाते हैं.... और कांटे वहीं-के वहीं.... फूल फ़िर उगते हैं.. फिर तोड़ लिए जाते हैं...... टूटे हुए फूल  आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं.... फूल ख़त्म हो रहे हैं.... और कांटे बढ़ते जा रहे.... और आदमी का ,दामन .... खून से तर......
रविवार, 16 नवंबर 2008

प्रेम के मायने क्या हैं.....!!

हम किसी को भी कोई सहारा नहीं दे पाते....सिवाय अपनी बातों के....और किसी हद तक अपने प्रेम को प्रदान करने के...जो प्रकृति ने हमें प्रदत्त किया है...हमें भी...जानवरों को भी....प्रेम हमेशा सेक्स ही नहीं होता....प्रेम एक घनिष्ठता है....प्रेम एक अंतरंगता है...प्रेम किसी के साथ अपनी एकरूपता है....प्रेम का कोई एक रूप भी नहीं....प्रेम ना तो पवित्र है....और ना पाप....वो तो बस नैसर्गिक है....और सबको ही प्रदान है...ईश्वर द्वारा...और जिनके...
शनिवार, 15 नवंबर 2008

गुलजार.....क्या हैं....!!

......गुलजार.....क्या....हैं...??...गुलजार....बस...और क्या...!!....क्या वो गुलजार नाम के इस छोटे-से शब्द में समा भी पाते है......बल्लीमारान की वो छोटी-छोटी पोशीदा-सी गलियाँ......गुल्जार को सुनना भी एक गजब-सा अहसास है....जो उनके गले से निकल कर...हमारे दिमाग के तंतुओं से होता हुआ...हमारे दिल को साँस-सी देता हुआ...हमारे जिस्म के पोर-पोर को सराबोर कर देता है......अपने अहसास को वो जिन शब्दों में व्यक्त करते हैं....वे शब्द आम-से...
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008

जिन्दगी क्या है......??

जिन्दगी बड़ी कीमती चीज़ है....हम इसको बचाएं कैसे.....हर महफ़िल में आना-जाना चाहते हैं लेकिन जाएँ कैसे...!! जिन्दगी एक ख्वाब की तरह उड़नछू होती जा रही है...वक्त सरपट भागता......जा रहा....!!इस दौड़ में हम कहाँ हैं....इस दौड़ का मतलब क्या है....समझ से परे है...... उलझने....जद्दोजहद.....खुशी....उदासी..... तिकड़म...हार-जीत और भी ना जाने क्या-क्या....यह खेल- सा कैसा है और इसका मतलब क्या है....समझ से बाहर है...सब कुछ समझ से ही बाहर...
गुरुवार, 13 नवंबर 2008

.......................... कुछ शेर......................

उसकी नज़रों से कुछ टपकता हुआ..... अब्र हो जैसे धुप में चमकता हुआ..... ०००००००००००००००००००००००००० थोडा बैठ जायें और करें किसी का इंतज़ार.... अब होता है तो होता रहे दिल बेकरार...... ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० आँख से आँख मिलीं और यकायक खुशी चहक पड़ी.... बड़े दिनों से चाहती थी चिडिया अपने पर खोलना..... ००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००० मुहब्बत के मारे हों का जरा साथ भी दें.... चलो हम भी किसी...
बुधवार, 12 नवंबर 2008

कितना प्यारा है दर्द......!!

सीने में जो छुपा बैठा है॥वो भी है दर्द...... आंखों में जो सजा बैठा है...वो भी है दर्द....!! दर्द की मेरे साथ हो गई है आशिकी इतनी..... सूखे आंसुओं से जो रोता है...वो भी है दर्द....!! राहें आसान किया करता है सदा ही वो मिरी.. राहों में जो कांटे बिछा देता है...वो भी है दर्द....!! जिस्म के छलनी हो जाने की आदत हो गई है.... दिल को जो छलनी करता है ...वो भी है दर्द...!! कभी तो ख़ुद से ख़ुद को भी ऐसा भुला देता है और जो लाज़वाब...
मंगलवार, 11 नवंबर 2008

आज बहुत उदास है दिल.....!!

आज बहुत उदास-उदास सा है दिल... क्यूँ भला इस तरह नासाज सा है दिल.... तरन्नुम भी कोई धीमा-धीमा सा है.... कफस में जैसे किसी कैद-सा है दिल....कुछ बोलने को जी नहीं करता है.... इक गूंगे की आवाज़-सा है दिल..... किसी का इसपर ध्यान नहीं जाता... बेवजह बजता साज-सा है दिल..... दिल से दुश्मनी क्या करें "गाफिल" किसी मुहब्बते-नाकाम सा है दिल... ...
सोमवार, 10 नवंबर 2008

वो क्यूँ रोता है....!!

वो क्यूँ रोता है.....!!चुपके से वो रोता तो है… रोते-रोते सपने भी बोता है…… ख़ुद को संभालता भी जाता है हर पल ख़ुद को कहीं खोता है… अक्सर ही वो अकेले में … तन्हाई को आंसुओं से भिगोता है… किसी को भूल जाने के लिए… यादों को नश्तर चुभोता है… अभी तो वो हंस रहा था… और जाने क्यूँ अब रोता है… अब तो ऐसा लगने लगा है कि … यादें समंदर भरा एक लोटा है… ख़ुदको भूलने के लिए “गाफिल” …खुदा में ख़ुद को डुबोता है...
सोमवार, 10 नवंबर 2008

मेरी प्यारी-प्यारी रात.......!!

मेरी प्यारी-प्यारी रात.....!! और भी तनहा कर जाती है तनहा-तनहा बहती रात .... चुपके-चुपके पैर दबाकर जाती है ये आती रात...... अक्सर आकर खा जाती है ख्वाबों को भी काली रात गम रोये तो आँचल देकर मुझे सुलाती प्यारी रात.... प्यारा सपना आते ही दूर चली जाती है सारी रात.... आँखों को मूँद लेता हूँ तो आखों में भर जाती रात.... शाम गए जब घर लौटूं तो जख्मों को सहलाती रात.... मुझसे तो अक्सर ही प्यारी बातें करती प्यारी रात.... कुछ मुझसे सुनती...
रविवार, 9 नवंबर 2008

जो कुछ अच्छा है.......!!

वन्दे मातरम् !सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,शस्यश्यामलाम् मातरम् !शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्सुखदाम् वरदाम् मातरम् !वन्दे मातरम् .....
शनिवार, 8 नवंबर 2008

पैसा ही सब कुछ है......????

पैसे के भीतर ही नंगापन है...जो पैसा आते ही पैसेवाले में दृष्टिगत होता है....बेशक यह सापेक्षिक है....मगर इस सच को झुठलाने की चेष्टा भी भला कितनों ने की है ....????पैसा एक ऐसी अथाह..असीम....अंतहीन...एकदम नंगी...यहाँ तक कि वीभत्सता की हद तक नंगी एक ऐसी वासना है, जिसके लिए आदमी जान तक दे सकता है...और हर पल दे भी रहा है..!!....सरोकार,जिस शब्द की हम जैसे टुच्चे,घटिया और सो कॉल्ड संवेदन-शील लोग दिन-रात ड्रमों आंसू बहते हैं...कलपते हैं...चीखते हैं...चिल्लाते हैं.... इस शब्द से पैसे वालों कोई "सरोकार" नहीं होता...बल्कि उन्हें...
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

विकास.............????????????

इस हकीकत की ओर मगर किसी का भी ध्यान नहीं है....सबको बस विकास की धून सवार है....इस विकास से कितनों को क्या,कैसे,कितना,कब हासिल होगा और उसके अनुपात में किसको कितना,क्या,कैसे,कब,हासिल होगा....दरअसल इस टाइप का विकास भारत जैसे श्रम-बाहुल्य-घनी आबादी वाले देश और देश के अकुशल लोगों के लिए सही एवम सम्यक अर्थों में लाभकारी है भी की अथवा नहीं, इस विषय पर शोध करना तो दूर,इस पर सोचा भी नहीं गया है...आई टी और अन्य क्षेत्रों का विकास तो ठीक बात है....मगर उसके लिए ग्रामीण क्षेत्र भूख...जमीन से बेदखली...अंतत भूखों मरने की कामत...
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008

vichaar

====================================================================== ....भारत में तो आज शिक्षा ही क्या हर क्षेत्र में कार्य और उसकी योजना के मामले में एक सा ही हाल है... ये जो विकास आदि हमें दिख पड़ता है...या उसकी बातें चारों और सुनाई देती हैं....वो भारत कौन सा है और कितना सा है, समझ ही नहीं आता...हमारे चारों तरफ़ यह जो भूखा,नंगा,बिना छत का,सम्मान से विहीन,नख-दंतहीन,श्रीहीन भारत मुझे,हमें,हम सबको दिखलाई देता है....कहीं यह हमारा भ्रम ही तो नहीं,बल्कि सच्चा भारत वो ही हो,जिसकी चर्चा आज चारों ओर  व्याप्त है...जो...
बुधवार, 5 नवंबर 2008

पलट जाता अगर................!!

पलट जाते हम अगर.... पूरी दास्ताँ ही बदल जाती... जो विरह से भर तुम्हें....ऐसी तन्हाई मिल ना पाती.....!! अपने दिल पे जज्ब करके ख़ुद को तुझसे दूर किया.... वगरना कहाँ तुम्हे इस सागर-सी गहराई मिल भी पाती...!! सुकून है मुझे अब तन्हां-तन्हां वीरान-सा फ़िर रहा हूँ , मेरी तन्हाई तक मुझसे मिलने मुझतक आ नहीं पाती !!...
बुधवार, 5 नवंबर 2008

एक पुलक.......एक हँसी......!!

 पुलक...और एक हँसी,कि जैसे हो ..... यही जिन्दगी !! आँखों में जल लिए बैठा हूँ, मुझसे...रूठी..है..मेरी तिश्नगी !! होठों पे हैं लफ्ज प्यार के ,दिल्लगी...दिल्लगी...दिल्लगी...!! फूल बटोर कर ले आया हूँ मैं,आती नहीं मगर मुझे बंदगी !! जो भी होता है वो होता रहेगा,कर भी क्या लेगी यह जिंदगी !! आसमान जैसे है इक दीवाली, और तारो-ग्रहों की है फुलझडी !! इतना सपाट तुम रहते हो क्यूँ,लगते हो मुझको इक अजनबी !! ये लो तुम अपनी प्रीत...
दूसरों के लिए जाने या अनजाने जब हम परेशानी का सबब बनते हैं.....तब ये ख़याल भी हमें नहीं आता कि दरअसल ये हम अपने ऊपर लौटा रहे हैं और जब वो सचमुच हमपर वापस लौटती हैं तब हमारे मुंह से उनके लिए गाली निकल जाती है ....मगर हमें ख्याल भी नही आता कि.....बाकि हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते....हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी........
बुधवार, 5 नवंबर 2008

जीवन कि मंजिल का पता कैसे पायें !!

जीवन की मंजिल का पता हम कैसे पायें , इस मंजिल के पीछे जान निकल न जाए !! आपस में भागा-दौडी,कितनी भागा-भागी, डरते हैं कि हम रब को कहीं भूल न जाएँ !! करता हूँ सबसे मुहब्बत,ये है सच्चा सौदा , मुहब्बत ही तो रब है,रब से क्या शर्मायें !! भूखे हैं पेट जिनके,जो रहते हैं बे ठिकाने , सोचूं हूँ तो अक्सर ये आँखे हैं भर आयें !! सोना-जागना-खाना-खेलना-बतियाना , जीवन गर यही है,जीवन से बाज आयें !! जीने की खातिर करनी पड़े अगर बेईमानी , इससे तो बेहतर है कि आदम ही मर जाए !! आदम के बारे में सोचूं,आदम की बातें करूँ, जाना कहाँ आदम को,आदम...
सोमवार, 3 नवंबर 2008

आँखे निखर गई !!

जमीं बिछी थी नीचे....पैरों में धूल भर गयी... इक कतरा जो मिला....बीज को फूल कर गई !! ऐसा गया वो जो.....फिर लौट कर ना आया , रो-रो कर "गाफिल" मेरी आँखें भी निखर गयीं ...
सोमवार, 3 नवंबर 2008

मुझको बड़ा ही प्यारा है ये दिल !!

मुझको बड़ा ही प्यारा है ये दिल !! अक्सर बड़े सवाल करता है ये दिल .... अक्सर ही मुझसे रूठ जाता है ये दिल !! पहना हुआ है मैंनें इसपे तो ख़ुद को.... अक्सर मुझे उघाड़ जाता है ये दिल !! तनहा भी रहना चाहूँ तनहा होने न दे... अक्सर मुझपे सवार हो जाता है ये दिल !! करता हूँ जब भी मैं बुद्धि भरी जो बातें.... अक्सर जा के दूर बैठ जाता है ये दिल !! शरमाया-शरमाया रहता तब मुझसे है.... अक्सर किसी पे जब आता है ये दिल !! प्यार बहुत ही करता हूँ हाय इससे मैं .... मुझको बड़ा ही प्यारा "गाफिल" है ये दिल ...
सोमवार, 3 नवंबर 2008

हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!

हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !! हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें.... किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !! मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर , दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !! अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा , अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !! आदमियों के बीच भी वीराना लगता है , बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !! सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा , क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !! सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" , जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें...
सोमवार, 3 नवंबर 2008

आने वाला........!!

तकते-तकते......राह...... आँख थक गई होगी.... रूह जिस्म से निकल कर.... कहीं और चली गई होगी..... आने वाले के कदम..... किसी और दिशा में...... मुड़ गए होंगे..... रात भी थक कर.... सो गई होगी..... सुबह किसी बच्चे-सी निकल, मचल गई होगी..... आने वाला कुछ सोचता होगा.... सबा बहकती हुई-सी...... कानों में कुछ कहती-सी होगी.... जिस्म से इक...... धुंआ-सा निकलता होगा.... सोच में कुछ पिघलता.... हुआ-सा होगा.... आने वाला आता ही होगा.... साँस भी थम-सी गई होगी... आने वाला बस..... अभी ही आने को है...... दिल की हर धड़कन... सुबक कर रह गई...
रविवार, 2 नवंबर 2008

हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !!

हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !! आंखों को आँख नहीं अशआर किया करते हैं, तबियत को नासाज बार-बार किया करतें हैं !! परवानों को जलने का कोई डर नहीं होता , ख़ुद को हर शै आग के आर-पार किया करते हैं !! "सीमाओं" को किसी दुश्मन का डर नहीं होता , सीमा पर वो दुश्मन को ललकार किया करते हैं !! जो लोग ख़ुद तो जीना जानते नहीं हैं वही अक्सर , सारी दुनिया का जीना बेवजह दुश्वार किया करते हैं !! कमाने-खाने के लिए इस कदर पागल हुए जाते हैं कि, ख़ुद को हर वक्त हवा के घोडे पे सवार किया करते हैं !! तेरी दुनिया भी अजीब दुनिया हो गई...
शनिवार, 1 नवंबर 2008

ईश्वर......कहाँ हो.....??

....ईश्वर तो यकीनन है......एक बार की बात है ईश्वर अपने लिए एकांत खोज रहा था....मगर अनगिनत संख्या में मानव जाती के लोग उसे एकांत या विश्राम लेने ही नहीं देते थे.....नारद जी वहां पहुचे...ईश्वर का ग़मगीन चेहरा देख,परेशानी का सबब पूछा....कारण जान हसने लगे ...ईश्वर हैरान नारद बजाय सहानुभूति जताने के हँसते हैं....नाराज हो गए....तो नारद ने उनसे कहा "भगवन,आदमी बाहर ही आपको खोजता रहता है..अपने भीतर वो कभी कुछ नहीं खोजता...आप उसीके...
शनिवार, 1 नवंबर 2008

आंखों में क्या है....!!

Saturday, November 1, 2008 आखों में क्या है !! आंखों में क्या है.......सच्चाई !! सीने में क्या है......दुःख दाई !! साँसों में क्या है....तन्हाई !! बांहों में क्या है.....रूसवाई !! खून का इक समंदर है रगों में क्या है......रौशनाई !! ये पल उस पल की बरसी है जीवन क्या है...जगहंसाई !! सकते में है गाफिल हर कोई होठों पे क्या है....तिशनाई !! पुरसुकून नहीं हूँ मैं मगर लफ्जों में क्या है रहनुमाई !! अब तो "गाफिल" को सोने...
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