मैं तो यहीं हूँ ना.....तुम कहाँ हो.....!!





इक दर्द है दिल में किससे कहूँ.....
कब तलक यूँ ही मैं मरता रहूँ !!
सोच रहा हूँ कि अब मैं क्या करूँ
कुछ सोचता हुआ बस बैठा रहूँ !!
कुछ बातें हैं जो चुभती रहती हैं
रंगों के इस मौसम में क्या कहूँ !!
हवा में इक खामोशी-सी कैसी है
इस शोर में मैं किसे क्या कहूँ !!
मुझसे लिपटी हुई है सारी खुदाई
तू चाहे "गाफिल" तो कुछ कहूँ !!
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दूंढ़ रहा हूँ अपनी राधा,कहाँ हैं तू...
मुझको बुला ले ना वहाँ,जहाँ है तू !!
मैं किसकी तन्हाई में पागल हुआ हूँ
देखता हूँ जिधर भी मैं,वहाँ है तू !!
हाय रब्बा मुझको तू नज़र ना आए
जर्रे-जर्रे में तो है,पर कहाँ है तू !!
मैं जिसकी धून में खोया रहता हूँ
मुझमें गोया तू ही है,निहां है तू !!
"गाफिल"काहे गुमसुम-सा रहता है
मैं तुझमें ही हूँ,मुझमें ही छुपा है तू !!
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चुपके-चुपके कुछ कहता है...
कौन है मुझसे छुपा रहता है !!
आग तो सब ख़ाक कर देती है
और धुंआ ही बस रह जाता है !!
बनता हुआ-सा सब दीखता है
बन-बन कर मिट जाता है !!
राम कहने से क्या डरता है
आख़िर में राम ही रह जाता है !!
ख़ुद के भीतर समाया हुआ जो
इतना हल्ला वो क्यूँ करता है !!
तन-मन-धन की बात ना कर
इनसे क्या तू चिपका रहता है !!
कुछ और ही मैं कहना चाहता हूँ
"गाफिल" क्यूँ बीच में आ जाता है !!
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कुछ शब्द मेहमान हैं इस महीने में
और डूबते जाते हैं वो मेरे पसीने में !!
किसी ने कहा आगे सब ठीक होगा
और आ गए कुछ गम इस महीने में !!
गम को गम कहना ज्यादती लगती है
चलो इसे खुशी कहा जाए इस महीने में !!
आ कुछ रंगीन बना देते हैं इन दिनों को
गिनती के तो दिन होते होते हैं महीने में !!
आज तुझको डुबाकर ही दम लूँगा यारब
मैं ख़ुद हूँ ही नहीं"गाफिल"मेरे सफीने में !!
5 टिप्पणियां:
सुन्दर कविता ...
अलग अलग भावों को पढ़कर आनंद आ गया।
बेहतरीन रचनाऐं है जी...बधाई लो!!
वाह...एक साथ तीन रचनाएँ....याने एक के साथ दो फ्री....बहुत खूब लिखा है आपने...लाजवाब...
नीरज
बहुत सुंदर ... अच्छी रचनाएं हैं।
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