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पहली पंक्ति अभय जी की....!!
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
अभय मिश्रा भाई.............आपकी एक पंक्ति चुराई है....इस पर माफ़ करेंगे........करेंगे ना....पहली पंक्ति ही आपकी है....मुझसे रहा नहीं गया....मैंने भी...........आप समझ गए ना......!!
जज़्बातों की राख में कोई तपिश नहीं होती......
जिनके भीतर कुछ करने की जुम्बिश नहीं होती !!
आदमी भूल गया है कि उसे कुछ करना भी है....
वगरना जमीं पर उसकी पैदाईश हुई नहीं होती...!!
हम खुशियों को भी संभालकर नहीं रख पाते....
अगर ग़मों से हमारी आजमाईश हुई नहीं होती...!!
अगर कुछ करना चाह ही लेते हैं हम " गाफिल "
तो फिर किसी शक सुबहा की गुंजाईश नहीं होती !!
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6 टिप्पणियां:
बेहतरीन रही .
अगर कुछ करना चाह ही लेते हैं हम " गाफिल "
तो फिर किसी शक सुबहा की गुंजाईश नहीं होती !!
बेहतरीन पंक्तियां . धन्यवाद.
" hmmm pehli line Abhay ji ki churai, or chitr khan se ..,.?????????? ha ha "
regards
sundar rachna.....
अगर कुछ करना चाह ही लेते हैं हम " गाफिल "
तो फिर किसी शक सुबहा की गुंजाईश नहीं होती !!
behad umda bat kahi aapne sahab,.. bahot khub likha hai aapne .. us chori ko sach sabit kar diya ke chori behatari ke liye kiya tha bahot hi umda likha hai aapne.. dhero badhai magar ye tasvir kahan se lagai hai aapne???/ seema ji ke sawal ka jawab????? ha ha koi nahi.
regards
arsh
हम खुशियों को भी संभालकर नहीं रख पाते....
अगर ग़मों से हमारी आजमाईश हुई नहीं होती...!!
khuub likhtey hain aap!
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