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अब यहाँ और नहीं....बस....!!
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
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कोई अकुलाहट है सदा मेरे भीतर,जिसे व्यक्त करने को व्यग्र रहता हूँ,मैं मुझसे मिल पाने के लिए पागल बना रहता हूँ...जीते-जी शायद न हो पाए खुद से मिलना...इसलिए भूत बना हुआ सारे जहां में आवारा फिरता हूँ....!!
6 टिप्पणियां:
आप कह तो ठीक ही रहे फर्क कोई नहीं पड़ता लेकिन आप जो लोगों को जगाने का काम कर रहे हैं वो बेहद सराहनीय है और अगर एक बी आदमी बदले तो समझिये काम पूरा धीरे-धीरे सब सीधा होगा। आप कहीं न जाओ भूत नाथ
बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।लेकिन कह्ते है ना ,उम्मीद पर दुनिया कायम है।इस लिए कोशिश जारी रहनी चाहिए।
आज से इस जगह पर वीराना छा जाएगा......और सन्नाटा गूंजेगा.....सरसराती हुई हवा गुजरेगी....और इस खाली हुई जगह पर धूल का बवंडर उडाती हुई घूमा करगी.....यहाँ अब भूतनाथ कदमताल नहीं करेगा....!!
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ummid to rakhni hi chahiye. waise bhi itni mehnat se kiye hua kaam ka prinaam bhi achha hota hai
वैसे आपने तो हमारे दिल की बात कह दी। सीधे साधे शब्दों से जिदंगी के बड़े सवाल कह दिये। मैं इसको कई बार पढ गया। वैसे दोस्त आपने पिछले संडे का जनसता पेपर पढा हैं या नही। जहाँ बताया गया कैसे कुछ लोगो ने "गाँधी की आत्मकथा" पढ कर अपने आप को बदल दिया। वैसे आखिर में यही कहूँगा कि हमारा फर्ज है कर्म करना और बाकी समय पर छोड़ देना।
janaab hindi blogging ki duniya mein Ranchi ka naam dekhke khincha chalaa aaya hai
aur aisa kamaal ka blog dekhke badi khushi huyee..aapne humare antarman ko is lekh se chhhua,aapka uddeshy poora hua..yakeenan kuch logo par iska asar to hoga..to bas aapki ye baatein ki bhoothnaath yahaan ab nahi aayega,umeeed karoonga aisa nahi hoga kuchh :)
sirf hungama khadaa karna mera maksad nahi,
shart ye hai ki tasveer badalni chhaiye..
likhte rahiye...
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