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ये क्या है....
शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008
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कोई अकुलाहट है सदा मेरे भीतर,जिसे व्यक्त करने को व्यग्र रहता हूँ,मैं मुझसे मिल पाने के लिए पागल बना रहता हूँ...जीते-जी शायद न हो पाए खुद से मिलना...इसलिए भूत बना हुआ सारे जहां में आवारा फिरता हूँ....!!
1 टिप्पणी:
काश!! ये मनोकामनाऐं पूर्ण हों..शुभकामनाऐं.
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