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क्या हत्या एक खेल है....!! न बाबा ना !!!
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008
क्या बोलूं....क्या लिखूं मैं....कि मोशे का दर्द दूर हो सके.....वो पता नहीं कैसे..कब तलक दूर होगा....??जिंदा इंसानों को बेबात मौत की नींद सुला देने वाले लोग कैसे होते हैं....उनकी चमड़ी...उनका मांस...उनकी हड्डी....उनके उत्तक....उनका पेट...उनकी नसें....उनके पैर...उनके हाथ....उनका माथा....उनके दांत....उनकी जीभ... उनकी मज्जा...उनका लीवर...उनकी किडनी....उनकी आंत.....उनके तलवे.....उनकी हथेली.....उनकी ऊँगली.....उनके नाखून...............उनका.........खून.........उनका...... दिल........उनका दिमाग.........उनकी रूह.........मैं समझना-जानना-देखना-पढ़ना चाहता हूँ....कि बेवजह गोली-बन्दूक-बम-बारूद-ग्रेनेड..........यानि कि हर पल आदमी की मौत को अंजाम देते लोग...खुदा का काम ख़ुद करते लोग कैसे होते हैं....मेरे भीतर इक मर्मान्तक-आत्मा-भेदी छटपटाहट जन्म ले चुकी है....कि जो भी इसान किसी भी प्रकार के गैर-इंसानी काम को दिन-रात ही करते चलते हैं...वो भला कैसे होते हैं...मैं उन्हें झिंझोड़कर पूछना चाहता हूँ कि ये सब उन्होंने क्यूँ किया....ये सब वो क्यूँ करते हैं....खून-का-खून बहा कर उन्हें कैसा आनंद मिलता है....किस सुख को प्राप्त करते हैं ये वहशी...मासूमों को मरता हुआ देखकर....!!??....मैं पूछना चाहता हूँ उनसे कि अपनी जिन माँ-बहनों-भाईओं और एनी रिश्तेदारों को वो अपने घर हंसता हुआ छोड़कर आए हैं.......उनमें से किसी भी एक को,जिन्हें वो सबसा कम प्यार भी करते होंवों.....,को लाकर अभी-की-अभी कुत्ते-बिल्ली या किसी भी तरह की हैवानियत भरी मौत उन्हें मारूं....उन्हें उनकी आंखों के सामने तड़पता हुआ छोड़ दूँ....उन्हें आँखें खोल कर ये सब देखने को मजबूर भी कर दूँ....तो अभी-की-अभी वे बताएं कि उन्हें कैसा लगेगा....!!??......यदि सचमुच ही अच्छा....तो अभी-की-अभी मैं उन्हें कहूँ...कि आओ सारी धरती के लोगों को ख़त्म कर डालो.....या फ़िर एक दिन वो ऐसा ही कर डालें...कि अपनी ही माँ-बहनों का कत्ल कर डाले...और उन्हें तड़पता हुआ....मरता हुआ देखते रहें.....??!!ये कैसी नफरत है.....??ये नफरत किसके प्रति है.....??इस नफरत का कारण क्या है....??और इस नफरत का क्या यही अन्तिम मुकाम है......??क्या हत्या के अलावा....या विध्वंस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है....और क्या ये विध्वंस या हत्या का मार्ग...उनकी मंजिल-प्राप्ति में किसी भी प्रकार से सहायक हो भी रहा है.....??कितने वर्षों से ये लोमहर्षक कृत्य किया जाता चला आ रहा है.....क्या इससे सचमुच कोई सार्थक मुकाम हासिल हो पाया है....??या महज ये अपनी ताकत का प्रदर्शन-भर है.....!!यदि यह ताकत का प्रदर्शन भी है तो किसलिए....किसके लिए.....??आख़िर इस प्रदर्शन का कोई उपयोग भी है कि नहीं....या कि मज़ाक-ही-मज़ाक में ह्त्या का खेल चल रहा है.....!!??ये मज़ाक क्या है....??ये ताकत कैसी है....क्या ताकत का रूप सदा वहशी ही होता है....??क्या ताकत आदमी को आदमी और उसकी जान को जान नहीं समझती....??और यदि ऐसा है भी है तो इस तमाम प्रकार के लोगों को सबसे पहले अपनी ही जान क्यूँ नहीं ले लेनी चाहिए.....??अगर जेहाद का मतलब जेहाद है तो अपनी जान लेना तो उसका परम-परिष्कृत रूप होगा.....!!जेहाद का महानतम जेहाद...क्यूँ ठीक है ना....!!......इसलिए तमाम प्रकार के जान लेने वालों को मेरी सलाह है कि बजाय किसी अन्य की जान लेने के सीधे ख़ुद की जान लेकर उपरवाले के पास परम पद प्राप्त कर लेवें....उससे आने वाली मानवता भी उनकी अहसानमंद रहेगी.....वो भी सदा के लिए......!!!!
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4 टिप्पणियां:
बहुत बढिया लिखा है।असल मे इन जेहादीयो का इस्तमाल कुछ कट्टरपंथी कर रहे हैं।लेकिन यह बात सोचने वाली ही कि क्या यह खुद अच्छे बुरे काम की पहचान नही कर सकते। जरूर इन सब के पीछे धन और धर्मान्धता की नीति काम कर रही है।
" हत्या जैसा खौफनाक ......कृत्य खेल कैसे हो सकता है "
badhiya hai
सोच रहा हूँ में आपके ब्लॉग पर पहले क्यों नहीं आता था ?क्या भूत की तस्वीर से डर जाता था /आपका आक्रोश स्वाभाविक है कि आप पूछना चाहते हैं कि क्यों किया या क्यों करते है /जब राम और खर ,दूषण , त्रिशरा में युद्ध हो रहा था तो प्रेत पिशाच बेताल मृतकों की आंतें एक दूसरे से छीन रहे थे तब एक बुजुर्ग ने उसे समझाया था कि क्यों झगडा करते हो इतनी इकट्ठा होंगी कि तुमसे खाते नहीं बनेगा /भूतनाथ जी ये आपका नाम नहीं है इसलिए आपको ब्लॉग के नाम से ही संबोधित कर रहा हूँ /आपका आलेख क्रोध ,आक्रोश व भावुकता में बहकर लिखा गया है और सीधा इंटर नेट पर ही टाइप किया गया है /एक पुरानी कहाबत की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा ""चीज़ न राखे आपने चोरन गारी देत ""
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