प्यार से गले लगाया जब सिसकती मिली रात....
पास जब उसके गया तब सिमटती मिली रात...!!
रात जब आँखे खुलीं उफ़ तनहा-सी बैठी थी रात...
साँस से जब साँसे मिलीं तो लिपटती मिली रात !!
रात को जब कायनात भी थक-थकाकर सो गई
रात को जब कायनात भी थक-थकाकर सो गई
रात भर भागती फिरी बावली जगमगाती रात !!
रात को इक कोने में मुझको गमगीं-सा पाकर
सकपकाकर रोने लगी यकायक कसमसाती रात !!
मैं दिखाता उसे नूर-ऐ-सबा,सौगाते-सुबह की झलक
सुबह से पहले ही मगर सो गई वो चमचमाती रात
रात जब रात का मन ना लगा तब यूँ "गाफिल"
की पेट में गुदगुदी तो हंसने लगी मदमदाती रात !!
8 टिप्पणियां:
सुबह हो गई मामू
bahut khuub!
भूतनाथ जी मज़ा आगया सचमुच /प्यार माँगा तो सिसकते हुए अरमान मिले ,चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले ""/रात जब रात का मन न लगा"" पर, में आपके पास होता तो कसम से आपके हाथ चूम लेता और मुझको दुखी पाकर रोने लगी रात पर आपके चरण छू लेता /मैंने इसे नोट करली है आप की ये गजल दिमाग से नहीं दिल से पढी है
सिसकियाँ दूर तक सुनी जाती हैं विरानो में ,
श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो !
बढ़िया है...बढ़िया है.....!!से काम नही चलेगा विचारणीय विषय पर सार्थक बहस उठाई है जारी रखें ,समाज का हित भी इसी में है ,वरना मेरी कही बात '' पता नही हमारे महान देश भारतवर्ष के तथाकथित महान प्रबुद्ध लोग "धर्म" शब्द से इतना डरते क्यों हैं ?" को ही सिद्ध करेंगे!!! चौपाल आगमन का आभारी हूँ
बड़े दिनों बाद आया हूं आपके ब्लौग पर और मुँह से निकला "वाह"
एक सुंदर रचना के लिये बधाई
waah dil khush ho gaya,bahut sundar rachana badhai
Bhootnathji!... raat ab pehale waali kaali-raat nahi rahi!...to din ke ujaale mein bhi nikalaa karo to baat bane!.... kavita ka aanand anubhav kar rahe hai hum!
badiya hai.. bahut acha hai :-)
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