
इस नंगे-पन का कोई अंत नहीं है क्या......?
एक कमीनापन यहाँ के माहौल पर तारी है.
ये कमीनापन हम सब पर ही तो भारी है....!!
इस कमीनेपन को हम कहाँ तक ढोएँ बाबा...
ये कमीनापन कुछ लोगों की ख़ास सवारी है !!
देश-राज्य-शहर किसी की कोई कीमत नहीं है...
यहाँ हर कोई अपने जमीर का व्यापारी है !!
देश पर मर-मिटने की कीमत है कुछ लाख..
और ओलोम्पिक विजेता करोड़ों का खिलाड़ी है !!
हर इक दफ्तरी काम में याँ इक घोटाला है....
हर इक जगह खेल फर्रुखाबाद का जारी है !!
इमानदार हों,ये तो कभी हो ही नहीं सकता
मत्री-संत्री-पुलिस-अफसर-सेठ सभी की यारी है !!
ईमान की कीमत पैसा कैसे हो सकता है भला
सदियों से ये सवाल "गाफिल" हम पर भारी है !!
3 टिप्पणियां:
Nice Poem!
Mujhe aapka nick "bhoothnath" aur wah bhoot ki tasveer bahut achchi lagti hai :)
RC
इमानदार हों,ये तो कभी हो ही नहीं सकता
मत्री-संत्री-पुलिस-अफसर-सेठ सभी की यारी है !!
" sach hi to hai"
आज के समय पर गहरा प्रहार करती सुंदर रचना
पेश हैं कुछ लाइनें
नेताओं की कैसी ये दुकानदारी है
कुछ बिक गए अब हमारी बारी है
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