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ये कोई ग़ज़ल नहीं....!!
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008
मैं मिन्नतें करता हूँ और करता है वो मुझसे तकरार है....
कह नहीं सकता मगर मुझे अल्लाह से कितना प्यार है !!
बहुत ही तेज़ हम चले कि,घड़ी की सुई भी पीछे छुट गई....
वक्त का पता नहीं पर,मुआ ये किस घोडे पर सवार है....!!
मुसीबतें कई तरह की हमारे साथ में हैं लगी ही हुईं
शरीर से है बीमार कोई तो कोई मन से गया हार है !!
बन गए मशीन हम और अपनी ही आदतों के गुलाम भी
काम इतने कि हर कोई गोया दर्द की लहर पर सवार है...!!
उडा रहा है हमारी ये पतंग कौन कितनी लम्बी डोर से...
और सोचते हैं हम ये कि हम अपनी सासों पे सवार हैं...!!
बही जा रही है अपनी नाव किस दिशा में बीच समंदर
किसी और के हाथ में"गाफिल" इस नाव की पतवार है !!
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2 टिप्पणियां:
बढ़िया !
घुघूती बासूती
bahot hi badhiya likha hai aapne wah dhero badhai aapko....
arsh
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