मैं तो बहुत छोटा हूँ...मैं इस पर क्या लिखूं....,
हाँ मगर सोचता हूँ...मैं तुझे नगमा-ख्वा लिखूं....!!
एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...
जलते हुए सूरज को अब मैं फिर क्या लिखूं.....??
इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...
नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!
सुबह को देखे हुए शाम तलक मुरझाये हुए देखे..
सदाबहार काँटों की बाबत लिखूं तो क्या लिखूं...??
चाँद ने अक्सर आकर मेरी पलकों को छुआ है..
इस छुवन के अहसास को आख़िर क्या लिखूं...??
कुछ लिखूं तो मुश्किल ना लिखूं तो और मुश्किल
ना लिखूं तो क्या करूँ,अब लिखूं तो क्या लिखूं,
अजीब सी गफलत में रहने लगा हूँ मैं "गाफिल"
तमाम आदमियत के दर्द को आख़िर क्या लिखूं...??
4 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया लिखा है।
एक चिंगारी तो मेरे शब्दों के पल्ले पड़ती नहीं...
जलते हुए सूरज को अब मैं फिर क्या लिखूं.....??
bahot khub likha hai sahab aapne dhero badhi aapko...
इक महीन सी उदासी दिल के भीतर है तिरी हुई...
नहीं जानता कि इस उदासी का सबब क्या लिखूं...!!
yun to puri nazam hi bhot badhi hai pr ye paktiyan chu gayin...
...बहुत बढ़िया लिखा है।
बधाई स्वीकारें।
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
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…Ravi Srivastava
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