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उधेड़-बुन (राहुल उपाध्याय के ब्लॉग से साभार !!)
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
About Me
Rahul Upadhyaya
राह चलते सबसे मिला/ हुआ नहीं किसी से गिला/ लगातार चले ये सिलसिला// उसी आस में जी रहा/ पानी घाट-घाट का पी रहा/ ध्वज मैं कोई लहराता नहीं/ यारों से मैं कतराता नहीं/ यहीं सच है कि मैं हूं एक सैलानी/ upadhyaya@yahoo.com
Monday, December 1, 2008
मंज़र हिंदुस्तान के
आओ यू-ट्यूब पर तुम्हें दिखाऊँ
विडियो हिंदुस्तान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है जलते मकान की
वन डे यहाँ पर बम
वन डे वहाँ पचास खतम
ये रहा वो ताज होटल
जहाँ रईस मनाते थे रंगरेलियाँ
यहाँ चली थी बंदूके दनदन
यहाँ चली थी गोलियाँ
शिवसेना-निर्माण सेना के महारथी
सो रहे थे खा के नींद की गोलियाँ
'आमची मुम्बई, आमची मुम्बई' की
जो लगाते थे बोलियाँ
होश ठिकाने आ गए उनके
जो डींगे हाँकते थे बलिदान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है भाषण देते हैवान की
ये रहा स्कूल जहाँ पर
बच्चे पाते हैं डिग्रियाँ
डिग्रियाँ तो मिलती हैं लेकिन
नहीं मिलती हैं नौकरियाँ
पढ़ा-लिखा देख के इनको
माँ-बाप ब्याह देते हैं बेटियाँ
कमा-धमा जब पाते नहीं हैं
तो निकालने लगते हैं रैलियाँ
कोई करे कलकत्ता बंद
तो कोई उखाड़े पटरियाँ राजस्थान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है लुटती दुकान की
ये रहा संसद भवन
जहाँ लोग बैठे पहन के चूड़ियाँ
आए दिन सांसद बिकते हैं
जैसे बिकती हैं भेड़-बकरियाँ
रोज विभाजन होते हैं
रोज बनती नई-नई टोलियाँ
कोई करे चारा घोटाला
कोई दबाए सीमेंट की बोरियाँ
धीरे-धीरे ऐसी-की-तैसी
इन्होंने कर दी भारत महान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है उजड़ते उद्यान की
जब भी आतंकवादी हाथ में आया
जात-देश उसकी पूछते हैं
'गर अपने ही देश का निकले
तो बगले झांकने लगते हैं
'गर निकले वो पड़ोसी देश का
तो अनाप-शनाप उन्हें फिर बकते हैं
और वो हो गुजरात-बंगाल-आंध्र का
तो उन्हें कुछ नहीं कहते हैं
कब तक हम निकालते रहेंगे
गलतियाँ श्री लंका-पाकिस्तान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है ख़ुद के ही संतान की
ये रहा इस देश का कैलेंडर
जो बात-बात पर करता है छुट्टी
ये रहे आरक्षण के आँकड़े
जो जात-पाँत की उलझाते गुत्थी
ये रहे इस देश के युवा
जो क्रोध में भींच रहे अपनी मुट्ठी
ये रही विसा लेती प्रतिभाएँ
जो देश से कर रही हमेशा की कुट्टी
कौन भला बचेगा पीछे
जो सोचेगा भारत के उत्थान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है खोते स्वाभिमान की
जितने मुँह हैं, उतनी बाते
हर कोई देता है प्रवचन
धरम-करम भी अलग-थलग है
भाषाएँ भी हैं पूरी दर्जन
फूट डालने की सबको छूट है
किसी पर नहीं है कोई बंधन
कहीं करे कोई अल्लाह-ओ-अकबर
तो कहीं पुकारे कोई अलख-निरंजन
चीख-चिल्लाहट के इस माहौल से
उम्मीद नहीं है शांतिपूर्वक समाधान की
इस क्लिप पर क्लिक करो
ये क्लिप है ज़हर में डूबे तीर्थस्थान की
सिएटल,
1 दिसम्बर 2008
(प्रदीप से क्षमायाचना सहित)
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यू-ट्यूब = YouTube
विडियो = video
क्लिप = clip
क्लिक = click
वन डे = one day
रैलियाँ = rallies
कैलेंडर = calendar
विसा = visa, a permit to live and work in another country
Posted by Rahul Upadhyaya at 2:23 PM 1 comments Links to this post
Labels: India, intense, New, news, parodies
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1 टिप्पणी:
Bahut achche.
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