भारत का संविधान

"हम भारतवासी,गंभीरतापूर्वक यह निश्चय करके कि भारत को सार्वभौमिक,लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाना है तथा अपने नागरिकों के लिए------- न्याय--सामाजिक,आर्थिक,तथा राजनैतिक ; स्वतन्त्रता--विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,आस्था,पूजा पद्दति अपनाने की; समानता--स्थिति व अवसर की व इसको सबमें बढ़ाने की; बंधुत्व--व्यक्ति की गरिमा एवं देश की एकता का आश्वासन देने वाला ; सुरक्षित करने के उद्देश्य से आज २६ नवम्बर १९४९ को संविधान-सभा में,इस संविधान को अंगीकृत ,पारित तथा स्वयम को प्रदत्त करते हैं ।"

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सोमवार, 27 सितंबर 2010

बोलो जी तुम अब क्या कहोगे....??

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!                     ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका होओ,मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं,जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना...क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है ऐसी बातें आज भी हम आये दिन,बल्कि रोज ही सुनते हैं....और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी "जुमला-प्रूफ"हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से...मगर जैसा कि मैं रो देखता हूँ कि स्त्री की सुन्दरता...
शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

ये हमारी प्यारी धरती,और हम है यहाँ के राजा......!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! ये हमारी प्यारी धरती,और हम है यहाँ के राजा......!! अरे हम सब मिलकर बजाते हैं हम सब का ही बाजा !!  अरे हमने धरती के गर्भ को चूस-चूस कर ऐसा है कंगाल किया  पाताल लोक तक इसकी समूची कोख को कण-कण तक खंगाल दिया  ये हमारी प्यारी धरती,और हम है यहाँ के राजा.....!! हमने सारे आसमान का एक-एक बित्ता तक नाप लिया  जहां तक हम पहुंचे अन्तरिक्ष को अपनी गन्दगी से पाट दिया  ये हमारी प्यारी धरती,और हम है यहाँ के राजा.....!! इस धरती का रुधिर हमारे तन में धन बन बन कर...
मंगलवार, 21 सितंबर 2010

रो मत मेरी बच्ची !!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!                                                         रो मत मेरी बच्ची !!                   मेरी प्यारी-प्यारी बच्ची !!तुझे बहुत-बहुत-बहुत प्यार और तेरी माँ तथा तेरे भाई बहनों को भी मेरा असीम प्रेम !!                  मेरी बिटिया मैं तेरा...
इस उदासी का सबब क्या है  तुझमें छिपा ऐसा दर्द क्या है !!मेरे अरमानों को भी ले ले तू इतना रोता है बेसबब क्या है !!इस उदासी का सबब क्या है......तेरे सारे आंसू पोंछ डालूँ मैं कुछ तो बोल,इत्ता चुप क्या है !!इस उदासी का सबब क्या है......तेरी सूरत नज़र से हटती नहीं बाहर आ तू,मुझमें छिपा क्या है !!इस उदासी का सबब क्या है......तेरे रु-ब-रु बैठ,तुझे देख रहा हूँमेरे भीतर तेरा ऐसा कुछ क्या है  इस उदासी...
सोमवार, 13 सितंबर 2010

आंकडे यदि सच्चाई होते तो......!!!

                                                       एक सवाल !!!!""जैसा कि कहा जाता है कि औरत की बुद्धि उसके पैर के घुट्नों में होती है तो फिर एक तीस-चालीस-पचास-साठ-सत्तर-अस्सी यहां तक कि नब्बे वर्षीय "पुरुष"भी अठ्ठारह-बीस वर्षीय अपनी बेटी-पोती-नाती-परपोती समान लड्की के साथ के साथ "ब्याह" कैसे रचा डालता है?क्या पुरुष की बुद्धि उसके पैर की कानी अंगुली में होती है??होती भी...
सोमवार, 13 सितंबर 2010

भारत विश्व की एक महाशक्ति बन सकता है बशर्तें.....!!.

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मंगलवार, 7 सितंबर 2010

एक देश-द्रोही का पत्र..........सरकार बनाने वालों के नाम.....!!!

                           एक सवाल !! "जैसा कि कहा जाता है कि औरत की बुद्धि उसके पैर के घुट्नों में होती है तो फिर एक तीस-चालीस-पचास-साठ-सत्तर-अस्सी यहां तक कि नब्बे वर्षीय "पुरुष"भी अठ्ठारह-बीस वर्षीय अपनी बेटी-पोती-नाती-परपोती समान लड्की के साथ के साथ "ब्याह" कैसे रचा डालता है?क्या पुरुष की बुद्धि उसके पैर की कानी अंगुली में होती है??होती भी है या कि नहीं...??" मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! मेरे प्यारे सम्मानीय दोस्तों...... सचमुच मैं ऐसा...
सोमवार, 6 सितंबर 2010

"lafz" ke sampaadak ke bahaane aap sabko ek paigam....!!!!

मैं भूत बोल रहा हूँ..........!! आदरणीय विनय कृष्ण उर्फ़ तुफ़ैल जी,                               राम-राम               अभी-अभी मेरी आजीवन सदस्यता वाली "लफ़्ज" का सितम्बर-नवम्बर २०१० का अंक पढ रहा था पेज बारह पर छ्पे श्री शंकर शरण जी के आलेख "माओवाद का अंधगान" के मूल स्वर से यूं तो मैं सर्वथा सहमत हूं,मगर कुछ बातें जो मैं अपने चालीस-इकतालीस वर्षीय जीवन में समझ बूझ कर जीवन के प्रति कुछ ठोस समझ विकसित कर पाया हूं,उस समझ के अनुसार कुछ बातें कहने से खुद को मैं रोक नहीं पा रहा हूं,और आशा है कि ये बातें आपको मेरी गज़लों की तरह कूडा ना लगें.उपरोक्त आलेख के छ्ठे पैरे के एक वाक्यांश पर आता हूं,जो इस प्रकार उद्त है (अरुंधति के शब्दों में)"....लोकतंत्र तो मुखौटा है,वास्तव में भारत एक ’अपर कास्ट हिन्दू-स्टेट है,चाहे कोई भी दल सता में हो, इसने मुसलमानों,ईसाइयों,सिखों, कम्युनिस्टों,दलितों, आदिवासियों और गरीबों के विरूद्द युद्ध छेड रखा है,जो उसके फ़ेंके गये टुकडों को स्वीकार करने के बजाय उस पर प्रश्न उठाते हैं..." उसके बाद के अगले पैरे में शंकर जी खुद कहते हैं कि यही पूरे लेख की केन्द्रीय प्रस्थापना है,जिसे जमाने के लिए अरुंधती ने हर तरह के आरोप,झूठ,अर्द्धसत्य घोषनाओं और भावूक लफ़्फ़ाजियों का उपयोग किया है..............."               कभी-कभी जब हम एक ही विषय पर दो अलग-अलग तरह की बातें देखते-पढते या सुनते हैं तो अक्सर एक ही बात होती है,वो यह कि हम एक को लगभग बिना किसी मीन-मेख के स्वीकार कर लेते हैं और हमारे ऐसा करते ही वह दूसरी बात हमारे द्वारा एकदम से दरकिनार कर दी जाती है,मतलब यह कि यह भी अनजाने में तय हो जाता है कि उस दूसरी बात में कोई "सार" ही नहीं था,जबकि अक्सर हमारा ऐसा करना गलत...
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