जिन्दगी है कि क्या है....!!
कभी रेत के टीलों को बुहारती हुईकभी जंगल की घास-फूस को समेटती हुई
जिन्दगी चली ही जा रही है
मेरे क़दमों के निशाँ को निहारती हुई
बिल्ली की पदचाप की तरह बेहद चुपचाप
इक साए की तरह मेरे जिस्म के साथ
चिपकती हुई चल रही है हर पल
और मौत भी मेरे ही संग
चल रही है अपना आँचल संभालती हुई
चिड़िया की तरह फुर्र हो जायेगी
एक दिन कमबख्त यह मस्तानी जिन्दगी
"सोच" फिर भी दाने चुग रही है मेरे मन में
हर सांस में मेरे ख्यालों को निखारती हुई
कभी अवसर ही नहीं देती मेरे पावों को दौड़ने का
खुद को मुझपर सवार कर चलाये जाती है
जिन्दगी के सीने में गम का कोई घर नहीं है कहीं
वो चली आ रही है जिन्दगी
आज फिर मुझे मेरे गमखाने के
हर कमरे से बाहर निकालती हुई
कभी आगे धूप और पीछे साया
कभी पीछे धूप और आगे साया
कभी तो सर के ऊपर
खडा है सूरज फुफकारता हुआ
कभी निगल जाता है सिर
समूची धूप पूरी-की-पूरी
और तब भीतर से निकल पड़ती है
गर्मी अपने पाँव पसारती हुई !!
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एक तड़पता हुआ हुआ मैं जुनूँ हूँ !!
उफ़ ये आसमान से कैसी आग बरस रही है
गुस्से से ये जमीन रो-रोकर फफक रही है
एक तड़पता हुआ हुआ मैं जुनूँ हूँ
मेरी आवाज़ मेरे गले से निकल कर
इस तड़पती हुई सड़क पर बिछ रही है
मेरे रहनुमाओं का नारा है शाईनिंग-शाईनिंग
और इस कठोर अँधेरे में जाने कितनी ही
बेबस-लचर जाने पिस रही है,कलप रही है
एक तड़पता हुआ हुआ मैं जुनूँ हूँ !!
एक तड़पता हुआ हुआ मैं जुनूँ हूँ !!
कोई गुस्सा या जज्बा कहीं भी नहीं है
बस इक कैरियर के लिए ये आँखें थक रही है
पत्थर की तरह होता जा रहा है अब जीना
जीने की प्यास रूह के भीतर कलप रही है
सांस लेना ही अगर जिन्दगी जीना कहा जाता हो
तो हाँ,भारत माता भी जी रही है,जी रही,जी रही है !!
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चारों तरफ देख ये कितना विकराल है सूखा
मगर इस देश के किसान से ज्यादा
इस देश का सांसद और विधायक है भूखा....!!
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जिन्दगी को किसी ने नहीं देखा ना....???
जिन्दगी अगर इक घाव है तो फिर
सारे अहसास भी मवाद बन जाते हैं
जिन्दगी एक अभाव है तो फिर
ये हाथ खुले-के-खुले ही रह जाते हैं
ये हाथ खुले-के-खुले ही रह जाते हैं
जिन्दगी अगर तनाव है तो फिर
तो हर व्यवहार एक तनी हुई रस्सी
जिन्दगी अगर इक धोखा हो जाए तो
जिंदगानी आग-ही-आग हो जाती है
जिन्दगी हर वक्त बजता हुआ गीत तो नहीं है
मगर संगीत तो कभी भी बज सकता है
सब कुछ मन-माफिक कभी नहीं हुआ करता
सूर कभी उलटे तार में भी पिरोए जा सकते हैं
जिन्दगी को एक अभिव्यक्ति ही समझ लो ना
कविता की तरह कह सकते हो अपनी जिंदगानी
बीते हुए हर इक लम्हे को अपने घट में
भर-भर कर जिन्दगी चली जाती है और
भर-भर कर जिन्दगी चली जाती है और
तुम्हे एकदम से खाली कर जाती है
आखिरी वक्त तक तुम मुट्ठी बांधे हुए हो अगर
तो यह कसूर जिन्दगी का तो नहीं है
जिन्दगी ने दिया है सबको कुछ-ना-कुछ
और मौत से भी तो कोई आज तक बिछड़ा नहीं है....!!
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कैसे अच्छे शब्द लिखूं.....???
अभी-अभी बढ़ा लिया है इन्होने अपना वेतन
कहते हैं इस वेतन से उनका काम नहीं चलता
मैं सोचता हूँ उनके बीच यह समृद्धि कैसी है ??
कम वेतन में वो देश का हित नहीं कर पा रहे
ज्यादा वेतन से वो देश का कितना अहित कर पाएंगे ??
देश की समूची समूची संपदा को जैसे
कुछ उठाईगिरों ने आपस में बाँट लिया है !!
और बाकी संपदा को दे दिया है किराए पर कंपनियों को
भविष्य तक मिल-बाँट कर खाने के लिए !!
दो कौड़ी का वेतन था जब इनका
तब भी अट्टालिकाएं बना लेते थे ये पहरूए
अब तो चाँद तक ऊँची इमारत बना लेंगे शायद !!
ये बेशर्म ऐसे हैं कि सब कुछ क़ानून-सम्मत बताते हैं
कुछ भी कहो तो संविधान के पन्ने पलट कर दिखाते हैं
दो रुपये की चीज़ को ये बीस में खरीदे ये दो सौ में
यह किसी का बाप भी नहीं बता सकता
हर रोज़ ये ऐसी हज़ारों खरीदारी कर रहे हैं
मगर कोई साला इन्हें चोर नहीं बता सकता !!
धोखा....धोखा....धोखा....और बस धोखा....
इनके खून में आखिर ऐसा क्या है
जिस वीर्य से पैदा हुए हैं ये
उसमें ऐसी घाल-मेल है क्या है ??
ए भाई.....!!
कोई एतराज मत करो इनके कारनामों पर
मार डालेंगे ये तुम्हें कहकर देशद्रोही अभी
हाँ दोस्तों सिर्फ माँ की इज्ज़त लूटने वाले
भारत माता के वीर सपूत हैं......
और उन्हें रोकने की कुचेष्टा करने वाले हम सब
महा-पापी....राक्षस और यहाँ तक कि देश द्रोही
इस इतिहास को मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ...
कौन से अच्छे शब्द रचूँ....
कैसे अच्छे शब्द लिखूं....!!!
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और कभी यूँ भी हो कि.......
तुम्हारे अहसासों में बीत जाए ये रात
और सुबह को जिस्म में भरा हो उसांसों का ताप
जब उठूँ तो तुम्हारी आँखें मुझे देखती मिले
और एक नया सवेरा देखूं उन नवीली आँखों से....... !!
==================================मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति,
बहुत - बहुत धन्यवाद इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया देने के लिए.
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया! बेहतरीन प्रस्तुती!
इतनी आग उगलोगे भूत जी तो इंसान बन जाओगे, फिर भूतों की बस्ती से निकाल दिये जाओगे.......
'कैसे अच्छे शब्द लिखूं....!!!'
- अच्छे शब्द, अच्छे विचार और अच्छा व्यवहार करना ही पडेगा |
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