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मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!
गुरुवार, 10 सितंबर 2009
यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है
मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!!
कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगी
हर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!!
अब तो मैं अपने ही लहू को पीऊंगा
इक दरिंदगी भरी अब मेरी प्यास है!!
मेरे भीतर तो तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा
मुझपर ऐ दोस्त अंधेरों का लिबास है!!
हर तरफ पानियों के मेले दिखलाती है
उफ़ ये जिंदगी है या कि इक अजाब है!!
हर लम्हा ऐसा गर्मियत से भरा हुआ है
ऐसा लगता है कि हयात इक आग है !!
हम मर न जाएँ तो फिर करें भी क्या
कातिल को हमारी ही गर्दन की आस है!!
रवायतों को तोड़ना गलत है "गाफिल"
यही रवायतें तो शाखे-दरख्ते-हयात हैं!!
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4 टिप्पणियां:
अब अंधेरों का लिबास उतार भी दीजिये ...यूँ आग को लपेटे ना रखिये ..
बहुत शुभकामनायें ..!!
Bahut sundar rachna..bas yun hi likhte rahen..mubarakvad !!
बात पुरानी में दिखी नई बात |मर न जाएँ तो फिर क्या करें ""यूं तो घबराके वो कह्देते हैं मर जायेंगे ,मर कर भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे ""मेरे चरों तरफ आग है -""दहकता ख्याल ,तपता बदन ,आग ही आग ,कहाँ पे छोड़ गया कारवां बहारों का ""मेरे भीतर तुम्हे कुछ नहीं मिलेगा =""अपने हाथों की लकीरें तो दिखादूं लेकिन ,क्या पढेगा कोई किस्मत में लिखा ही क्या है ""कातिल को हमारी गर्दन की आस है -""दौनों ही पक्ष आये हैं तैयारियों के साथ ,हम गर्दनों के साथ है वो आरियों के साथ ""
bhoot bhai ,
bahut hi acchi gazal , bahut si baate kahati hui aur dil ko chooti hui ..
meri badhai sweekar karen..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
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